ओपन समोसा…यह नाम सुनकर आपको लग रहा होगा की यह कैसा समोसा है? सच तो यह है कि उदयपुर शहर की एक संकरी गली में करीब 62 साल पुराने छोटे से रेस्टोरेंट में यह समोसा खाने वाले बाजार की मशहूर दुकानें छोड़कर पहुंचते हैं।
.
ऐसा ही एक और जायका है पालीवाल की कचौरी जो सबसे महंगी हींग से तैयार होती है। कचौरी को लेकर दीवानगी ऐसी है कि खाने के लिए लोग लाइन में लगते हैं। हींग-कचौरी खाने के बाद लोग यहां देसी घी में तैयार होने वाली एक 500 साल पुरानी मिठाई को खाना तो बिल्कुल नहीं भूलते। तो चलिए आज राजस्थानी जायका में आपको लेकर चलते हैं उदयपुर….
चाहने वालों ने रख दिया नया नाम, ओपन समोसा
उदयपुर शहर के बड़ा बाजार में पारख जी के कोटे के सामने एक गली जाती है जिसका नाम है सिंघटवाड़िया स्ट्रीट। बस इसी में अंदर जाते ही रूपजी रेस्टोरेंट चलता है। एक पुराने घर के नीचे दुकान संचालित है। दो कमरों के इस रेस्टोरेंट में जगह जरूर कम है, लेकिन यहां के ओनर राजकुमार के हाथों से बनने वाले नाश्ते और उनके प्रेम से सब यहां चले आते हैं।
ओपन समोसा में समोसे का बेस पापड़ की शेप में तैयार किया जाता है।
इस रेस्टोरेंट पर कचोरी, समोसे और शाम बाद पकौड़े मिलते हैं। इन सबमें से एक खास जायका मिलता है, नाम है पापड़ मसाला। यहां सबका टेस्ट अच्छा है, लेकिन पापड़ मसाले की डिमांड सबसे ज्यादा है। लेकिन इसके चाहने वालों में यह ‘ओपन समोसा’ नाम से प्रसिद्ध है।
पिता ने शुरू किया रेस्टोरेंट, 62 साल पुराना जायका
रेस्टोरेंट संचालक राजकुमार बताते हैं कि उनके पिता रूपजी ने 62 साल पहले ये रूपजी रेस्टोरेंट खोला था। उन्होंने स्वाद और क्वालिटी से समझौता नहीं किया। तब मैं भी उनसे नाश्ता बनाने का तरीका सीखता था। 2016 में पिताजी के निधन के बाद मैं खुद संभालता हूं। रेस्टोरेंट सुबह 6 बजे शुरू होता है जो रात 9 बजे बंद होता है।
मैदा के पापड़ को डीप फ्राई कर तैयार करते हैं।
क्या है ओपन समोसा?
राजकुमार ने बताया कि ओपन समोसे को आप यूं समझ सकते हैं कि समोसे का कवर अलग और मसाला अलग। इस तरीके को मेरे पिताजी रूपजी ने इजाद किया था। इस पापड़ पर एक सीक्रेट रेसिपी से आलू-प्याज का मसाला तैयार कर परोसा जाता है। बस ओपन समोसा तैयार हो जाता है। कस्टमर की प्लेट में पापड़ और उसके ऊपर मसाला रखा जाता है और साथ में मिर्ची और चटनी बस ओपन समोसे खाने की शुरुआत हो जाती है।
पापड़ के ऊपर समोसे का मसाला रखा जाता है। इसे तली हुई हरी मिर्च के साथ खाते हैं।
राजकुमार ने बताया कि यहां बनाए जाने वाले नाश्ता कम स्पाइसी होता है, लेकिन टेस्ट ऐसा होता है कि यहां आने वाला ग्राहक एक पीस खाने के बाद दूसरा ऑर्डर जरूर देगा। खाएगा तो एक पीस से काम नहीं होगा दूसरे का ऑर्डर भी देगा। एक ओपन समोसे की कीमत महज 20 रुपए है।
ओपन समोसा के साथ केसर, पुदीने और गुलाब की चाय
राजकुमार बताते हैं रेस्टोरेंट पर तीन तरह की चाय बनाई जाती है। ओपन समोसा के नाश्ते के साथ लोग चाय का ऑर्डर करना नहीं भूलते। केसर, पुदीने और गुलाब की पत्तियों से तीन फ्लेवर की चाय बनाई जाती है। ग्राहक की जो मांग होती है वह चाय पिलाते हैं। केसर और पुदीने की चाय के 15 रुपए प्रति गिलास लेते है। कुल्हड़ में पीने पर दाम 20 रुपए होते हैं।
राजकुमार के साथ सेलिब्रिटी शेफ रणवीर बराड़। वे भी यहां के जायका का स्वाद चख चुके हैं।
विदेशी टूरिस्ट भी हैं दीवाने
यहां पर विदेशी टूरिस्ट भी बड़ी संख्या में आते हैं। राजकुमार बताते है कि यहां घूमने आने के बाद आसपास के लोग भी उनके दुकान बता देते हैं तो सोशल मीडिया से खोजते हुए भी टूरिस्ट उनके यहां आते हैं। एमडी सोनी कहते हैं कि मैं करीब 40 साल से यहां नाश्ता करने आ रहा हूं। शुद्ध और ताजा नाश्ता मिलता है। नाश्ता बहुत टेस्टी है और यहां की चाय का स्वाद भी बहुत अलग है।
आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का जवाब
लाइन लगाकर बिकती है ये कचौरी, सबसे महंगी हींग में करते हैं तैयार
मानसून सीजन में जब बारिश का दौर शुरू होता है, पर्यटकों का सबसे ज्यादा जमावड़ा उदयपुर के शहरकोट में पहुंचता है। यहां सबसे महंगी हींग से तैयार होने वाली एक खास कचौरी को खाने के लिए लोग लाइन में लगते हैं। इंतजार के बाद जब नंबर आता है तो लोग एक नहीं कम से कम दो कचौरी तो ऑर्डर करते ही हैं। इसके बाद यहां कि देसी घी की में बनी जलेबी का भी आनंद लेते हैं। ये है पालीवाल की फेमस कचौरी-जलेबी।
उदयपुर के जगदीश मंदिर से नीचे घंटाघर की तरफ जाने वाले जगदीश मार्ग पर ही पालीवाल कचौरी है। यहां लगी भीड़ की नजर दो जायकों पर रहती है। कचौरी और देसी घी में बनी ताजा गरम जलेबी। पालीवाल कचौरी के ओनर सत्यनारायण पालीवाल बताते हैं दुकान तो सुबह साढ़े चार बजे खुल जाती है। लेकिन यहां कचौरी मिलने का फिक्स टाइम है। दोपहर 2 बजे तक ही कचौरी मिलती है।
घंटाघर रोड स्थित पालीवाल कचौरी वाला।
43 साल पुराना जायका
सत्यनारायण पालीवाल बताते हैं कि 1981 से उनकी ये दुकान संचालित है। 43 साल से उनके यहां बनने वाली कचौरी ने लोगों के मन में खास जगह बनाई है। यहां वे अपने भाई मांगीलाल, हरीश और भतीजा दिलीप के साथ मिलकर चलाते हैं। पूरा परिवार इस काम में लगा है। घर में महिलाएं हरी मिर्च और धनिया की सफाई में मदद करती हैं।
कचौरी बनाने में सबसे महंगी हींग और RO का पानी
सत्यनारायण बताते हैं यूं तो कचौरी बेसन, मूंग दाल से ही तैयार करते हैं। लेकिन सब खास बात है इसमें डलने वाली हींग। बेहतरीन स्वाद के लिए 30 हजार रुपए किलो मिलने वाली हींग का इस्तेमाल करते हैं।
सत्यनारायण पालीवाल पिछले 43 साल से यह जायका बेच रहे हैं।
हींग जो वे उपयोग में लेते हैं, वह दिल्ली से आती है। सुबह जब वे हींग का छौंक देते हैं तो करीब 500 मीटर दूर जगदीश चौक तक लोगों को पता लग जाता है पालीवाल जी की कचौरी तैयार हो रही है।
कचौरी बनाने में पानी भी आरओ का उपयोग में लेते हैं। मिर्च और धनिया भी ताजा ही उपयोग में लेते हैं। मोगर से तैयार होने वाली कचौरी में प्याज और लहसुन नहीं डालते हैं।
खस्ता कचौरी दो दिन खराब नहीं होती
पालीवाल बताते है कि उनके यहां बनी कचौरी दो दिन खराब नहीं होती है। वे कचौरी की सिकाई बहुत देर तक करते हैं। मसाला भी अच्छे से सेकते हैं ताकि उसमें पानी की एक भी बूंद न रहे। ग्राहकों को बहुत जल्दी रहती है, लेकिन वे अपने हिसाब से ही पूरी सेंकने के बाद ही देते हैं। वे कहते है कि उनकी कचौरी अमेरिका भी लेकर जाते हैं। इसके अलावा देश में भी कई जगह लोग लेकर जाते हैं।
कचौरी को अच्छे से सेका जाता है ताकि उसमें एक बूंद भी पानी न बचे।
डेली बिक जाती हैं 1000 कचौरी
पालीवाल कहते है कि औसत एक हजार कचौरी बेचते है। एक जमाने में 25 पैसे प्रति कचौरी के थे, आज 15 रुपये प्रति कचौरी है। यहां देसी घी में जलेबी भी बनाते हैं। कचौरी के साथ यहां जलेबी की मांग भी ज्यादा है। पालीवाल कहते है कि सर्दी के समय कभी-कभी देसी घी के गुलाब जामुन भी बनाते हैं।
कचौरी के साथ गर्म जलेबी का आनंद
पालीवाल बताते हैं कचौरी के साथ लोग गर्मा-गरम जलेबी खाना खूब पसंद करते हैं। गर्मी हो या सर्दी जलेबी की डिमांड भी 12 महीने रहती है। खास बात यह है कि जलेबी केवल देसी घी में ही बनाते हैं।
यहां गरमा गर्म जलेबी देसी घी में तैयार की जाती हैं।
गुजरात के अहमदाबाद से आए दिलीप वैष्णव ने बताया कि वे जगदीश मंदिर दर्शन करने आए थे। सोशल मीडिया पर सर्च किया तो पालीवाल कचौरी का रिव्यू अच्छा था। हम सुबह यहां जगदीश मंदिर आए और फिर यहां आ गए कचौरी और जलेबी खाने। जो स्वाद मिला वो लाजवाब है।
पिछले राजस्थानी जायका में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर
ये है जयपुर की फेमस गुलकंद खीर। राजमाता गायत्री देवी के पोते देवराज सिंह के होटल जयमहल पैलेस के शेफ पंकज भारद्वाज ने बताया कि यहां हमेशा पूर्व राजपरिवारों की रॉयल रेसिपीज को राजस्थानी कुजिन और मेन्यू में शामिल किया जाता रहा है।
राजस्थान के ऐतिहासिक महत्व और गर्मी को ध्यान में रखते हुए शाही गुलकंद खीर को सिनेमन रेस्तरां के लिए फूड मेन्यू में 1992 में शामिल किया गया था। आज 32 साल से यह जायका लोगों की पसंद बना हुआ है…(CLICK कर पूरी स्टोरी पढ़ें)