16 मिनट पहले
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उस्ताद जाकिर हुसैन का सैन फ्रांसिस्को में 73 साल की उम्र में निधन हो गया। उस्ताद कहते थे-
तबले के बिना जिंदगी है, ये मेरे लिए सोचना असंभव है
20वीं सदी के सबसे विख्यात तबलावादक उस्ताद अल्लाह रक्खा कुरैशी ने जब अपने बेटे को गोद में लिया था तो कान में आयत नहीं पढ़ी, बल्कि तबले के बोल कहे। जब परिवार ने वजह पूछी तो कहा, तबले की ये तालें ही मेरी आयत है। वो बच्चा था जाकिर हुसैन, जिसने दुनियाभर को तबले की थाप पर झूमने का मौका दिया।
संगीत की विरासत को रगों में संजोए जाकिर हुसैन देश के उन फनकारों में से एक थे जिन्होंने वैश्विक स्तर पर न सिर्फ भारतीय शास्त्रीय संगीत के सम्मान में चार चांद लगाए, बल्कि तालवाद्यों की दुनिया में तबले को प्रमुख स्थान भी दिलवाया।
एकसाथ तीन ग्रैमी अवॉर्ड जीतने वाले इकलौते जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को महाराष्ट्र में उस्ताद अल्लाह रक्खा और बावी बेगम के घर हुआ था। बचपन पिता की तबले की थाप सुनते ही बीता और 3 साल की उम्र में जाकिर को भी तबला थमा दिया गया, जो फिर उनसे कभी नहीं छूटा। पिता और पहले गुरु उस्ताद अल्लाह रक्खा के अलावा जाकिर ने उस्ताद लतीफ अहमद खान और उस्ताद विलायत हुसैन खान से भी तबले की तालीम ली। जाकिर ने भारत में पहला प्रोफेशनल शो 12 साल की उम्र में किया था जिसके लिए उन्हें 100 रुपए मिले थे।
इसी साल उनके बैंड को ग्रैमी मिला शास्त्रीय संगीत में तो उन्हें पारंगत हासिल थी ही लेकिन कंटेंप्रेरी वर्ल्ड म्यूजिक यानी पश्चिम और पूर्व के संगीत को साथ लाने के सक्सेसफुल एक्सपेरिमेंट की वजह से उन्हें काफी यंग एज में ही इंटरनेशनल आर्टिस्ट के रूप में भी ख्याति मिली। मिकी हार्ट, जॉन मेकलॉफ्लिन जैसे आर्टिस्ट्स के साथ फ्यूजन म्यूजिक बनाने के दौरान ही उन्होंने अपना बैंड शक्ति भी शुरू किया।
इसी साल, 2024 में इस बैंड को ग्रैमी से नवाजा गया है। फ्यूजन म्यूजिक बनाने के बाद भी उन्होंने कभी तबले को नहीं छोड़ा, क्योंकि उनके मुताबिक तबला बचपन से उनके साथ एक दोस्त और भाई की तरह रहा।,
इसके अलावा जाकिर हुसैन उस दुर्लभ योग्यता के तबलावादक थे, जिन्होंने सीनीयर डागर ब्रदर्स, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब से लेकर बिरजू महाराज और निलाद्रि कुमार, हरिहरन जैसे 4 पीढ़ियों के कलाकारों के साथ तबले पर संगत की।
सिनेमा जगत में भी उस्ताद जाकिर हुसैन का योगदान अहम है, बावर्ची, सत्यम शिवम सुंदरम, हीर-रांझा और साज जैसी पुरानी फिल्मों के संगीत में उस्ताद की बड़ी भूमिका थी। सिर्फ संगीत ही नहीं लिटिल बुद्धा और साज़ जैसी फिल्मों में उस्ताद ने एक्टिंग भी की है।
सबसे कम उम्र में पद्मश्री साल 1988 में जाकिर हुसैन सबसे कम उम्र के नौजवान बने जिन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। तभी पहली बार पंडित रविशंकर ने जाकिर को उस्ताद कहकर संबोधित किया था। इसके बाद ये सिलसिला फिर कभी नहीं थमा। 1990 में संगीत नाटक अकैडमी अवॉर्ड, 1992 में जाकिर के को-क्रियेट किये गए एल्बम, प्लानेट ड्रम को ग्रैमी अवॉर्ड से नवाजा गया। इसमें हिंदुस्तानी ताल विद्या और विदेशी ताल विद्या को मिलाकर रिकॉर्डिंग की गई थी, जो उस वक्त दुर्लभ था।
यही वजह थी कि उस वक्त इस एल्बम के करीब 8 लाख रिकॉर्ड्स बिके थे. 2002 में पद्म भूषण, 2006 में कालीदास सम्मान, 2009 में उनके एक और एल्बम को ग्रैमी मिला. 2023 में पद्म विभूषण और इसी साल 4 फरवरी को 66वें एनुअल ग्रैमी अवॉर्ड्स में एक साथ 3 ग्रैमी अवॉर्ड्स जीत कर उन्होंने इतिहास रच दिया।
देश-दुनिया में जाकिर हुसैन के दीवाने संगीत प्रेमियों के लिए ये सभी अचीवमेंट्स बहुत बड़े हैं, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर जाकिर के लिए सबसे बड़ा अवॉर्ड था। जब पद्म श्री मिलने पर खुशी से गदगद गुरु और पिता उस्ताद अल्लाह रक्खा ने उन्हें हार पहनाया था। एक शागिर्द के लिए इससे बेहतरीन और यादगार क्षण और क्या हो सकता है।
साल 2010 में उस्ताद अल्लाह रक्खा इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक की तरफ से उन्हें पंजाब घराने के तबला वादन के सबसे बड़े गुरु होने की उपाधि दी गई।
उस्ताद के इंटरेस्टिंग किस्से
- उस्ताद जाकिर हुसैन ने तबला बजाने के अपने अनोखे अंदाज से दुनिया को ये समझाया कि भले ही तबला एक रिदमिक इंस्ट्रमेंट यानी तालवाद्य है, लेकिन क्योंकि संगीत का ए, बी, सी, डी सुर हैं इसलिए तबले में मधुरता यानी मेलोडी होना बेहद जरूरी है।
- तबले पर शंख, डमरू, बारिश की बूंदों और ट्रेन जैसी आवाजें निकालने की अद्भुत कला के धनी जाकिर हुसैन दुनियाभर के संगीत प्रेमियों को इंस्पायर करते हैं।
- जाकिर का फैमिली सरनेम कुरैशी है लेकिन फकीर के कहने पर उनकी मां ने उनका नाम जाकिर हुसैन रखा।
- जाकिर हुसैन पहले ऐसे भारतीय म्यूजीशियन थे जिन्हें व्हाइट हाउस में ऑल स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट के लिए बुलाया गया।
- एक इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछा गया कि उनके फेवरेट पर्फॉर्मर कौन हैं तो उनका जवाब था, मेरे पिता जी. इसके अलावा पंडित शिवकुमार शर्मा, पंडित बिरजू महाराज, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, उस्ताद अमजद अली खां, हरिहरन, शंकर महादेवन जैसे कलाकार भी इस लिस्ट में शामिल हैं
- सदी के सबसे महान सितार वादकों में से एक पंडित रविशंकर के साथ उस्ताद जाकिर हुसैन की जुगलबंदी की पूरी दुनिया मुरीद है।