Wounds of trauma center surfaced after 14 years, when the roof was dug to make a ward, iron rods came out | ट्रॉमा सेटर की छत का हाल: 14 साल बाद उभरे ट्रॉमा सेंटर के जख्म, वार्ड बनाने को छत खोदी तो सरिए निकल आए – Bikaner News


जगह-जगह से खोद कर छोड़ी। इनसैट में खुदाई के दाैरान निकल सरिए और हुआ सुराख।

पीबीएम हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर पर सेकंड फ्लोर के निर्माण को लेकर विवाद छिड़ गया है। आरएसआरडीसी ने मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल को पत्र लिखकर स्वतंत्र एजेंसी से पूर्व में हुए निर्माण कार्य की जांच कराने की मांग की है, जबकि ट्रस्ट का कहना है, ड्राइंग देखे बि

.

दरअसल विधानसभा चुनाव की आचार संहिता से पहले तत्कालीन गहलोत सरकार ने प्रदेशभर में कई परियोजनाओं के शिलान्यास और लोकापर्ण किए थे। उनमें ट्रॉमा सेंटर का उन्नयन भी शामिल था। अब इसका पत्थर ही खंडित होकर कचरे में पड़ा है। इसके लिए 1.99 करोड़ का बजट मंजूर हुआ था। इस रकम से ट्रोमा सेंटर की छत पर दो वार्ड, लिफ्ट और रैंप का निर्माण किया जाना है। निर्माण एजेंसी आरएसआरडीसी को बनाया गया। पहले टेंडर में कोई फर्म नहीं आई तो दूसरी बार टेंडर किए गए।

ठेकेदार ने पिलर तोड़कर सरियों वाले स्थान पर खुदाई शुरू कर दी। बीम के ऊपर दीवार उठाने के लिए वहां ट्रेंच खोदी तो आरसीसी की छत के सरिए निकल आए। तोड़ा फोड़ी में छत में छेद हो गया। परिणाम स्वरूप बारिश होने पर पानी भरने से ट्रोमा के एक बड़े हिस्से में फाल्स सीलिंग गिर पड़ी। पिछले 15-20 दिन से काम बंद है। दुबारा पानी ना जाए, इसलिए खोदे गए सभी पिलर को सीमेंट से बंद का उन पर पॉलिथीन लगा दी गई है। आरएसआरडीसी ने हाल ही में मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल को पत्र लिखकर निर्माण कार्य की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने का आग्रह किया है।

ट्रॉमा सेंटर की बिल्डिंग असुरक्षित

इस विवाद के चलते 15-20 दिन से ट्रॉमा सेंटर का एक हिस्सा बंद पड़ा है, जिसका खमियाजा मरीजों को उठाना पड़ रहा है। भास्कर ने एक्सपर्ट इंजीनियर नरेश जोशी की मदद से निर्माण कार्य की जांच कराई तो सामने आया कि आरसीसी की छत को खोदना ही गलत था। भवन तीन मंजिला डिजायन किया गया है। ऐसे में कोई एजेंसी छत की मोटाई से समझौता नहीं करेगी।

आरसीसी पर करीब सात इंच मोटी कंकरीट की लेयर है। ठेकेदार को काम शुरू करने से पहले भवन का नक्शा देखना चाहिए था। अब छत को जगह-जगह से खोद कर छोड़ दिया है। भवन असुरक्षित स्थिति में है। बिल्डिंग का गेट खुला रहता है। रात के समय गलती से मरीज के परिजन छत पर चले गए तो हादसे के शिकार हो सकते हैं।

रोज आते हैं 500 से अधिक मरीज ट्रॉमा सेंटर में रोज 500 से अधिक मरीज आते हैं। आपातकालीन में रोज 250 लोग जख्मी हालत में आते हैं। करीब इतने की सर्जरी और ऑर्थो के आउटडोर में आ रहे हैं। फॉल्स सीलिंग गिरने के कारण वेटिंग एरिया, लैब कक्ष, आईसीयू और पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड बंद कर दिए गए हैं।

इमरजेंसी वार्ड में ही गंभीर मरीजों को वेंटीलेटर पर लेटा रखा है, जहां संक्रमण का खतरा हर समय बना रहता है। क्योंकि वह एरिया खुला है। चौबीस घंटे लोगों की आवाजाही रहती है। डॉक्टर्स का कहना है कि काम जितनी जल्दी पूरा होगा, गंभीर मरीजों के लिए आईसीयू फिर से शुरू किया जा सकेगा।

2010 में हुआ था निर्माण चुन्नीलाल सोमानी ट्रोमा सेंटर का निर्माण कार्य 2010 में शुरू हुआ था। इसका आगे का भाग दानदाता और पीछे का निर्माण कार्य यूआईटी ने कराया था। इसके निर्माण पर करीब 18 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। बिल्डिंग को तीन मंजिला डिजायन किया गया था, लेकिन तीन साल पहले यूआईटी के पार्ट पर दो वार्ड बनाकर छोड़ दिए गए, जबकि ना रैंप बनाया ना ही लिफ्ट लगाई गई। इससे दोनों वार्ड किसी काम नहीं आ रहे। सेंटर का विस्तार करने के लिए रोड सेफ्टी फंड से 1.99 करोड़ का बजट दिया गया है। इस रकम से ट्रोमा की छत पर दो और वार्ड, रैंप, लिफ्ट लगाई जानी है। यह वार्ड पोस्ट ऑपरेटिव के लिए काम लिए जाएंगे।

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *