7 घंटे पहले
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कल (25 अक्टूबर) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है, इसे विनायकी चतुर्थी कहा जाता है। ये व्रत भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए किया जाता है। खास बात ये है कि इस बार ये व्रत शनिवार को है। इस कारण इस चतुर्थी का महत्व और बढ़ गया है, क्योंकि शनिवार को शनि ग्रह की विशेष पूजा के साथ-साथ गणेश जी की आराधना करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।
विनायकी चतुर्थी का धार्मिक महत्व
विनायक शब्द स्वयं भगवान गणेश का पर्याय है। इस दिन गणेश जी की पूजा करने से व्यक्ति के सभी विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में सफलता के नए द्वार खुलते हैं। चतुर्थी तिथि के स्वामी स्वयं गणेश जी हैं। जो भक्त सच्चे मन से व्रत करता है, उसे ज्ञान, बुद्धि और निर्णय क्षमता की प्राप्ति होती है।
अगर ये चतुर्थी शनिवार को आए, तो इसका फल दोगुना माना गया है। कारण ये है कि शनिदेव को कर्म, न्याय और अनुशासन का देवता माना जाता है। शनिदेव की कृपा से व्यक्ति के जीवन से कष्ट दूर होते हैं और उसका कर्म मार्ग साफ होता है। इस दिन गणेश जी और शनिदेव दोनों की पूजा करने से कुंडली के ग्रहदोष भी शांत होते हैं और जीवन में स्थिरता आती है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, इस दिन शनि को तेल अर्पित करने और गणेश पूजन करने से आर्थिक समृद्धि, पारिवारिक सुख और मानसिक शांति मिलती है। शनि को प्रसन्न करने के लिए “ऊँ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का जप करना चाहिए। साथ ही अपराजिता के नीले फूल शनिदेव को चढ़ाने चाहिए।
विनायकी चतुर्थी की पूजा विधि
स्नान के बाद लाल या पीले वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके सूर्य देव को जल अर्पित करें। इसके पश्चात घर के मंदिर या पूजा स्थान में गणेश प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। पूजा आरंभ करने से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और यह संकल्प लें कि मैं चतुर्थी व्रत और पूजा पूर्ण श्रद्धा से करूंगा।
पूजन सामग्री और विधि
पूजन में गणेश जी को सिंदूर, दूर्वा (तीन पत्तों वाली घास), पुष्प, अक्षत (चावल), फल और मिठाई अर्पित करें। धूप और दीप जलाकर श्रीगणेश की आरती करें। पूजा में श्री गणेशाय नमः मंत्र का जप करें। पूरे दिन व्रत के नियम का पालन करें। व्रतधारी को इस दिन अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। फल, दूध, पानी या फलों का रस आदि लेकर फलाहार कर सकते हैं।
शाम के समय गणेशजी के समक्ष दीपक जलाकर पुनः पूजा करें। इस अवसर पर गणेशजी के 12 नामों का जप कम से कम 108 बार करना चाहिए। ये नाम इस प्रकार हैं—
- ऊँ सुमुखाय नमः
- ऊँ एकदंताय नमः
- ऊँ कपिलाय नमः
- ऊँ गजकर्णाय नमः
- ऊँ लंबोदराय नमः
- ऊँ विकटाय नमः
- ऊँ विघ्ननाशाय नमः
- ऊँ विनायकाय नमः
- ऊँ धूम्रकेतवे नमः
- ऊँ गणाध्यक्षाय नमः
- ऊँ भालचंद्राय नमः
- ऊँ गजाननाय नमः
इन नामों के जप से ज्ञान, सौभाग्य और सफलता की वृद्धि होती है।
