अस्पतालों की ओपीडी में इस समय बुखार से पीड़ित मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है।
ग्वालियर के थाटीपुर इलाके की दर्पण कॉलोनी में रहने वाले 9 साल के अयांश की 12 अक्टूबर को डेंगू से मौत हो गई। इकलौते बेटे को खोने वाले पिता पवन कहते हैं कि उसे 5 अक्टूबर से बुखार आ रहा था। 7 तारीख को उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ी तो बिड़ला अस्पताल ले गए। वह
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डॉक्टर कहते रहे कि सेहत में सुधार हो रहा है, मगर उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। जब ज्यादा तबीयत खराब हुई तो डॉक्टरों ने अयांश को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल ले जाने की सलाह दी। हम उसे एम्बुलेंस में लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुए, लेकिन उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
ग्वालियर में डेंगू से ये पांचवीं मौत थी। दरअसल, मप्र में साल 2023 के मुकाबले इस बार डेंगू मरीजों की संख्या दोगुनी हो चुकी है। अलग-अलग शहरों में डेंगू के मरीजों की मौत भी हो रही है, लेकिन सरकार इन मौतों को नहीं गिन रही है। सरकारी रिकॉर्ड में इस साल अब तक केवल 1 मौत दर्ज की गई है।
यही वजह है कि हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव सहित अन्य अफसरों को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने पूछा है कि 2018 में डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया से बचने के लिए साफ-सफाई का जो एक्शन प्लान दिया था, उस पर अमल क्यों नहीं हुआ?
दैनिक भास्कर की इस रिपोर्ट में पढ़िए कि डेंगू कैसे पूरे प्रदेश में पैर पसार रहा है, इसके बढ़ने की क्या वजह है और इससे बचने के लिए क्या सावधानियां बरतने की जरूरत है?
सबसे पहले उस पीड़ित पिता का दर्द जिनके इकलौते बेटे की डेंगू से मौत हो गई
निजी अस्पतालों का इलाज से ज्यादा पैसे बनाने पर फोकस दर्पण कॉलोनी में रहने वाले पवन श्रीवास्तव कहते हैं कि हमारा बेटा अयांश सुपर एक्टिव था। उसकी डेंगू रिपोर्ट पॉजिटिव थी। वह पूरे सिस्टम पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि पूरा सिस्टम बिका हुआ है। ये जो फॉगिंग की बात करते हैं, ये सिर्फ कागजों में हो रही है। कोई पूछने वाला नहीं है।
हमने तो अपने बेटे को प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया था। हमारे पास तो पैसों की भी कमी नहीं है, लेकिन हम अपने बेटे को नहीं बचा पाए। अस्पतालों में डेंगू मरीजों के भर्ती होने के लिए बेड कम पड़ रहे हैं। लोग अपने परिजन-रिश्तेदारों को लेकर इलाज के लिए इधर से उधर भाग रहे हैं। प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ नहीं है। निजी अस्पतालों में डॉक्टर्स इलाज से ज्यादा पैसे बनाने पर फोकस कर रहे हैं।
मैंने ठान लिया है कि मैं इनके ऊपर केस करूंगा। अपने बेटे को खोने के बाद मैं नहीं चाहता कि किसी और के बच्चे के साथ ऐसा हो।
-पवन श्रीवास्तव, अयांश के पिता
डॉक्टर बोले- मच्छरों को फैलने से रोकना जरूरी है ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस यानी एम्स भोपाल के मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ. रजनीश जोशी बताते हैं कि ये डेंगू का दूसरा फेज है। इसकी वजह मानसून का देर तक सक्रिय रहना है। आमतौर पर सितंबर के आखिरी हफ्ते में बारिश का सीजन खत्म हो जाता है, मगर इस बार अक्टूबर में भी कई जगह बारिश होती रही। इससे जलभराव की स्थिति बनी है।
डेंगू फैलने का सबसे बड़ा कारण मच्छर है। ये मौसम मच्छरों के प्रजनन के लिए मुफीद है। एम्स की ओपीडी में हर रोज 4 से 5 हजार मरीज आते हैं। उनमें से 800 से एक हजार के लगभग बुखार के मरीज है। अब ये बुखार डेंगू भी हो सकता है और वायरल फीवर भी इसलिए सभी की जांच की जाती है।
बुखार के इतने ज्यादा मरीज बढ़ने की वजह बताते हैं कि बारिश के मौसम के बाद मच्छरों को फैलने से रोकने के लिए उपाय किए जाने चाहिए। जिस तेजी से मरीजों की संख्या बढ़ी है उससे तो लगता है कि जिन एजेंसियों को ये उपाय करने चाहिए थे वो नहीं किए हैं। पानी का जमाव रोकना और उसमें मच्छरों का लार्वा न पनपे ये सबसे ज्यादा जरूरी है।
चार बड़े शहरों में डेंगू के 35 फीसदी मरीज
मप्र के बड़े शहर डेंगू की चपटे में है। इसकी सबसे बड़ी वजह साफ नगर निगम और स्वास्थ्य अमले के बीच कोऑर्डिनेशन न होना है। ग्वालियर में इस समय डेंगू के एक हजार से ज्यादा मरीज मिल चुके हैं। इसे लेकर हाईकोर्ट की बेंच ने नगरीय आवास एवं आवास विभाग के अपर मुख्य सचिव नीरज मंडलोई, कलेक्टर रुचिका चौहान, नगर निगम कमिश्नर अमन वैष्णव, जयारोग्य अस्पताल के सुपरिनटैंडैंट डॉ. सुधीर सक्सेना और सीएमएचओ सचिन श्रीवास्तव को नोटिस दिया है।
दरअसल साल 2018 में ग्वालियर के एडवोकेट अवधेश सिंह भदौरिया ने एक याचिका दायर की थी जिसमें कहा था कि नगर निगम की लापरवाही से शहर में डेंगू और दूसरी मौसमी बीमारियां फैल रही है। तब कोर्ट ने नगर निगम को एक्शन प्लान बनाने के लिए कहा था। इस बार जब डेंगू के मरीजों की संख्या बढ़ी तो एडवोकेट भदौरिया ने अवमानना याचिका दायर की और कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी कोई एक्शन प्लान नहीं बनाया गया।
एम्स के डॉक्टर बोले इस बार डेंगू के साथ चिकनगुनिया का ज्यादा खतरा
डॉ. रजनीश जोशी कहते हैं कि डेंगू मौसमी बीमारी है। हर बार बरसात के बाद होती है। चिकनगुनिया का एक साइकिल होता है जो सात से आठ साल में रिपिट होता है। इस बार मरीजों की संख्या देखकर लग रहा है कि चिकनगुनिया का भी अटैक हुआ है, क्योंकि ज्यादातर मरीज जॉइंट पेन की शिकायत लेकर आ रहे हैं।
वे कहते हैं कि डेंगू और चिकनगुनिया के प्रारंभिक लक्षण तो एक समान होते हैं दोनों में बुखार आता है, शरीर में दर्द होता है, लेकिन शरीर के साथ जोड़ों में दर्द हो तो चिकनगुनिया होने की ज्यादा संभावना होती है। दोनों के बारे में 5 दिन के बाद ही पता चलता है। यदि किसी को बुखार आ जाए और उसने दो दिन में ही डेंगू की जांच कराई है तो संभावना इस बात की ज्यादा है कि उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आए।
बच्चों और बुजुर्गों को ज्यादा एहतियात बरतने की जरूरत
डॉ. जोशी कहते हैं कि डेंगू फैल रहा है, मगर ज्यादा गंभीर मामले देखने को नहीं मिल रहे है। ज्यादा गंभीर होने पर मरीज को वैंटिलेटर की जरूरत पड़ जाती है। ब्लड प्रेशर लो हो जाता है। ऐसे मामले सामने नहीं आ रहे हैं।
डेंगू या चिकनगुनिया के वायरस में कुछ न कुछ बदलाव होता है ये नेचुरल प्रोसेस है। हालांकि क्या बदलाव हुआ है ये वैज्ञानिक रूप से नहीं बता सकते। इस बीमारी की चपेट में दो उम्र के लोग ज्यादा आते हैं एक बच्चे और दूसरे बुजुर्ग। इन्हें लेकर सावधानी बरतने की जरूरत है।