राजस्थान में 13 नवंबर को 7 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। ये भजनलाल सरकार की पहली बड़ी राजनीतिक परीक्षा होगी। सात में से केवल एक सीट (सलूंबर) को छोड़ बाकी सीटों पर BJP के विधायक नहीं थे।
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बीजेपी के पास उपचुनाव में खोने के लिए सिर्फ 1 सीट है, लेकिन प्रतिष्ठा पूरी सरकार की दांव पर है। हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत के बाद बीजेपी का मनोबल बढ़ा हुआ है।
उपचुनावों के पुराने इतिहास और मौजूदा समीकरणों से बीजेपी के रणनीतिकार भी सचेत हैं। दो सीटों पर बीएपी ने तो एक पर आरएलपी ने समीकरण बिगाड़ दिए हैं।
उपचुनावों में मंत्री किरोड़ीलाल फैक्टर ने पूर्वी राजस्थान की दो सीटों पर बीजेपी के समीकरण प्रभावित किए हैं तो कांग्रेस को एक हॉट मुद्दा भी दे दिया है। टिकटों की घोषणा के बाद समीकरण और ज्यादा स्पष्ट हो जाएंगे।
पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
किस सीट पर क्या समीकरण बन रहे…
झुंझुनूं : दलित-मुस्लिम वोटों के बंटवारे से तय होंगे नतीजे
- उपचुनाव की वजह : झुंझुनूं सीट चार चुनावों से लगातार कांग्रेस जीत रही है। यह सीट कांग्रेस विधायक बृजेंद्र ओला के सांसद बनने के बाद में खाली हुई है। इस सीट पर दिग्गज कांग्रेस नेता शीशराम ओला के परिवार का ही दबदबा रहता आया है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत और वहां बने जातीय समीकरणों का कुछ असर यहां भी देखने को मिल सकता है।
- सबसे बड़ा फैक्टर : कांग्रेस का एक खेमा ओला परिवार से बाहर टिकट देने की मांग कर रहा है। कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा मुस्लिम समुदाय भी खुद के लिए टिकट मांग रहा है। बीजेपी में भी यहां टिकट को लेकर एक राय नहीं है और कई खेमे बने हुए हैं। असली समीकरण यहां दोनों दलों के टिकट सामने आने के बाद ही सामने आएंगे। पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा यहां लंबे समय से सक्रिय होकर हरियाणा की तर्ज पर चुनाव को जाट बनाम गैर जाट समीकरण की तरफ मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
दौसा : पायलट और किरोड़ी फैक्टर हावी
- उपचुनाव की वजह : दौसा सीट कांग्रेस विधायक मुरारी लाल मीणा के सांसद बनने के बाद खाली हुई है। इस सीट पर पायलट का प्रभाव है। मुरारी लाल मीणा की भी पकड़ है और किरोड़ी फैक्टर भी हावी रहेगा। यहां से किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा बीजेपी से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही भीतरघात का खतरा है। आखिर में बनने वाली जातीय समीकरण ही हार और जीत पर फैसला करते हैं।
- सबसे बड़ा फैक्टर : बीजेपी से किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को टिकट मिलता है या नहीं आगे के सियासी समीकरण इस पर भी बहुत निर्भर करेंगे। बीजेपी में यहां लंबे समय से गुटबाजी है। किरोड़ी लाल मीणा विरोधी खेमा भी मजबूत है। ऐसी हालत में बीजपी के लिए बड़ी चुनौती है।
देवली-उनियारा : कड़े मुकाबले की उम्मीद
- उपचुनाव की वजह : सचिन पायलट समर्थक कांग्रेस विधायक हरीश मीणा के टोंक सवाई माधोपुर से सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हुई है। इस सीट पर लगातार दो बार से कांग्रेस जीत रही है। अब उपचुनाव में दोनों पार्टियों के बीच ही मुख्य मुकाबला होने के आसार हैं। कांग्रेस में हरीश मीणा के परिवार या उनके समर्थक नेता टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।
- सबसे बड़ा फैक्टर : यहां सचिन पायलट का भी दखल रहेगा। कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला पिछली बार हारे थे। इस बार फिर दावेदार हैं। पूर्व मंत्री प्रभु लाल सैनी और पूर्व विधायक राजेंद्र गुर्जर सहित दावेदारों की लंबी कतार है। पायलट फैक्टर के अलावा किरोड़ी और बैंसला फैक्टर अहम रहेंगे। दोनों ही पार्टी में अंदरुनी गुटबाजी है।
रामगढ़ : कांग्रेस को सहानुभूति, बीजेपी को ध्रुवीकरण से उम्मीद
- उपचुनाव की वजह : कांग्रेस विधायक जुबेर खान के निधन की वजह से यह सीट खाली हुई है। इस सीट पर पिछली बार जुबेर खान की पत्नी सफिया जुबेर विधायक थीं। कांग्रेस सहानुभूति फैक्टर के लिए सफिया जुबैर या उनके बेटे को टिकट दे सकती है। बीजेपी में भी दावेदारों की लंबी कतार है।
- सबसे बड़ा फैक्टर : दोनों पार्टियों की टिकट सामने आने के बाद यहां असली मुकाबला होगा। धार्मिक समीकरणों के अलावा बीजेपी को हरियाणा चुनाव के बाद बने फैक्टर से भी काफी उम्मीद है। बीजेपी नए सिरे से अपनी चुनावी रणनीति बना रही है। कांग्रेस सहानुभूति फैक्टर के अलावा बीजेपी से नाराज तबके को अपने पक्ष में करने की कोशिश में है।
चौरासी: बीजेपी-कांग्रेस को BAP से चुनौती
- उपचुनाव की वजह : चौरासी सीट राजकुमार रोत के डूंगरपुर बांसवाड़ा से सांसद बनने के बाद खाली हुई है। इस सीट पर लगातार दो बार से रोत जीत रहे थे। इस बार भी यहां दोनों ही पार्टियों के लिए बीएपी बड़ी चुनौती बनी हुई है। बीएपी ने गठबंधन को लेकर स्थिति साफ नहीं की है। फिलहाल अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।
- सबसे बड़ा फैक्टर : राजकुमार रोत यहां से बड़े अंतर से विधानसभा चुनाव जीते थे। यही अंतर सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए चिंता का मुद्दा है। बीएपी फैक्टर को बैलेंस करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने ग्राउंड पर कोई ठोस प्रयास नहीं किए हैं। ऐसे में विधानसभा और लोकसभा चुनाव के वक्त बने हुए समीकरणों में फिलहाल कोई खास बदलाव नजर नहीं आ रहा है।
खींवसर : बेनीवाल काउंटर समीकरण बनाने में जुटे
- उपचुनाव की वजह : खींवसर सीट हनुमान बेनीवाल के नागौर से सांसद बनने के बाद खाली हुई है। बेनीवाल ने लोकसभा चुनाव कांग्रेस से गठबंधन करके लड़ा था। उपचुनाव में अभी गठबंधन को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। बेनीवाल की पार्टी आरएलपी से अभी टिकट तय नहीं हुआ है। टिकट तय होने के बाद ही असली समीकरण बनेंगे। बीजेपी और कांग्रेस में भी टिकट आने बाकी है।
- सबसे बड़ा फैक्टर : बेनीवाल कास्ट फैक्टर को साधने में जुटे हैं। हाल ही में नागौर में अमर छात्रावास में लाइब्रेरी के लिए सांसद फंड से काम करवाकर बेनीवाल ने उपचुनाव से पहले नए समीकरण बनाने का प्रयास किया है। बेनीवाल की काट के तौर पर बीजेपी इस बार जोर लगा रही है। कांग्रेस और बीजेपी के सामने इस सीट पर सबसे बड़ा चैलेंज जिताऊ उम्मीदवार का है।
सलूंबर : BAP ने कांग्रेस-बीजेपी के सामने पेश की नई चुनौती
- उपचुनाव की वजह : भाजपा विधायक अमृतलाल मीणा के निधन से खाली हुई इस सीट पर बीजेपी लगातार जीतती आ रही है। आदिवासी बाहुल्य इस सीट पर BAP ने कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए चुनौती बढ़ा दी है। पिछली बार BAP उम्मीदवार 51691 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहा था। इस सीट पर जीत का अंतर 15 हजार का था।
- सबसे बड़ा फैक्टर : बदले हुए समीकरणों में आदिवासी इलाके में भाजपा पहले से और मजबूत हुई है। ऐसे में इस सीट पर इस बार चुनौती और बढ़ गई है। बीजेपी को सहानुभूति फैक्टर से उम्मीद है। अगर कांग्रेस और BAP का गठबंधन हो जाता है तो इस सीट पर समीकरण उलट भी सकते हैं। अभी तक गठबंधन को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है और BAP ने अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।
बीजेपी को हरियाणा जीत के बाद परसेप्शन बदलने की आस हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद राजस्थान में भी पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है। वहीं स्थानीय समीकरणों को लेकर कई आशंकाएं भी तैर रही हैं।
हरियाणा से सटी झुंझुनूं और अलवर की रामगढ़ सीट पर बीजेपी को जातिगत और धार्मिक पोलराइजेशन से समीकरण बदलने की उम्मीद है। हालांकि अभी यह केवल अनुमान है। सब कुछ उम्मीदवार चयन और आगे बनने वाले समीकरणों पर निर्भर करेगा।
जानकारों के मुताबिक, हरियाणा के नतीजों ने परसेप्शन के मोर्चे पर बीजेपी को भले ही राजस्थान में बूस्ट दिया हो, लेकिन कांग्रेस को भी सुधार करने के लिए बड़ा मौका दे दिया है।
टिकट के बाद तय होंगे सातों सीटों के असली समीकरण सातों सीटों पर अभी कांग्रेस और बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। असली समीकरण उम्मीदवार सामने आने के बाद ही तय होंगे। हर सीट पर नाराजगी और रूठने-मनाने का दौर भी उम्मीदवारों के सामने आने के बाद ही शुरू होगा। हालांकि इस बार चुनाव का टाइम टेबल इस तरह का है कि ज्यादा वक्त नहीं मिल रहा। बीजेपी के पास बागी उम्मीदवारों पर सियासी रूप से प्रेशर डालने के लिए सरकार होने से अपर हैंड होगा।
चुनौती : किरोड़ी के भाई को टिकट देने या नहीं देने से भी बदलेगा परसेप्शन किरोड़ी लाल मीणा फैक्टर पूर्वी राजस्थान की दोनों सीटों पर काफी अहम रहेगा। दौसा सीट पर किरोड़ी के भाई जगमोहन मीणा बीजेपी से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। वह लंबे समय से फील्ड में भी सक्रिय है। इस सीट पर अगर जगमोहन मीणा को टिकट नहीं मिलता है तो समीकरण जरूर बदलेंगे। जगमोहन मीणा लोकसभा चुनाव में भी टिकट के दावेदार थे, लेकिन उन्हें मौका नहीं दिया गया था।
किरोड़ी समर्थकों को लगता है कि सरकार में उन्हें वह पद और प्रतिष्ठा नहीं मिली, जिसके वह हकदार थे। किरोड़ी समर्थक शुरू से ही कहते रहे हैं कि कांग्रेस सरकार के दौरान उनके नेता ने लंबे समय तक अकेले ही आंदोलन किया। गहलोत सरकार को अनेक मोर्चों पर घेरा, लेकिन उसके मुकाबले उन्हें पद प्रतिष्ठा नहीं दी गई। यह मुद्दा अब भी जस का तस है।
किरोड़ी लाल मीणा फैक्टर पूर्वी राजस्थान की दोनों सीटों पर काफी अहम रहेगा।
मुद्दे क्या : पर्ची सरकार और यू-टर्न का जुमला लेकर चुनाव में जाएगी कांग्रेस, बीजेपी पेपर लीक पर घेरेगी विधानसभा उपचुनाव में पर्ची सरकार और यूटर्न सरकार का जुमला खूब चलने वाला है। कांग्रेस इन्हीं दोनों मुद्दों पर सरकार को घेरती रही है। यही चुनावी मुद्दा भी होगा।
विपक्ष सरकार के काम नहीं करने और पावर सेंटर कहीं और होने को लेकर लगातार हमलावर रहा है। यह जुमला अब चुनावी सभाओं और चुनाव प्रचार में भी प्रमुखता से सुनने को मिलेगा।
बीजेपी इसकी काट के तौर पर कांग्रेस राज के पेपरलीक और भाजपा सरकार के एक्शन को मुद्दा बनाएगी। उधर, किरोड़ीलाल मीणा के इस्तीफे पर असमंजस को भी कांग्रेस चुनावों में मुद्दा बनाएगी।
RLP और BAP से गठबंधन पर कांग्रेस में स्थिति स्पष्ट नहीं कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव आरएलपी और BAP से गठबंधन करके लड़ा था। उपचुनाव में फिलहाल गठबंधन को लेकर स्थिति साफ नहीं है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा कह चुके हैं कि गठबंधन लोकसभा चुनाव तक था। अब पार्टी सातों सीटों पर तैयारी कर रही है। हालांकि इसे लेकर फाइनल फैसला हाई कमान और केंद्र स्तर पर बनी हुई कमेटी करेगी।
कांग्रेस में गठबंधन को लेकर नेताओं की अलग-अलग राय है। एक धड़े के नेताओं का मानना है कि इंडिया गठबंधन के फाॅर्मूले पर ही उपचुनाव लड़े जाने चाहिए, जबकि दूसरा धड़ा गठबंधन के खिलाफ है। बीएपी से गठबंधन में कांग्रेस सलूंबर सीट मांग रही है और बदले में चौरासी सीट छोड़ने को तैयार है। इस पर अभी सहमति नहीं बनी है। वहीं खींवसर में भी बेनीवाल की पार्टी से गठंबधन पर बात फाइनल नहीं है।