6 मिनट पहलेलेखक: वीरेंद्र मिश्र
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‘वाई चीट इंडिया’, ‘सुल्तान’, ‘संजू’ और ‘दिल बेचारा’ जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे किरदार निभाने के बाद एक्टर दुर्गेश कुमार को पंचायत सीरीज के जरिए खूब लोकप्रियता मिली। इसमें भूषण उर्फ बनराकस का किरदार इतना लोकप्रिय हुआ कि इसके खूब मीम्स बने। पंचायत सीजन 3 प्राइम वीडियो पर 28 मई से स्ट्रीम होने जा रहा है। हाल ही में दुर्गेश कुमार ने दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान बताया कि वे एक्टर नहीं बनना चाह रहे थे। व्यक्तित्व विकास (पर्सनैलिटी डेवलमेंट) के लिए थिएटर किए। इम्तियाज अली की फिल्म ‘हाईवे’ में काम मिला तो रिपरटरी की नौकरी से निकाल दिया गया।

पंचायत सीरीज से किस तरह से आप जुड़े और आप किरदार आगे कैसे बढ़ता गया?
इस सीरीज के असिस्टेंट कास्टिंग डायरेक्ट नवनीत रागा ने मुझे पहले एक फोटोग्राफर की भूमिका के लिए बुलाया था। लेकिन फोटोग्राफर का रोल किसी और को मिल गया और मुझे पहले सीजन में बवासीर वाला एक सीन दिया। दूसरा सीजन शुरू होने वाला था तो विनोद का किरदार इंट्रोड्यूज हो रहा था। महादेव लखावत इस किरदार का ऑडिशन तैयार कर रहे थे और मैं ऑडिशन में उनकी मदद कर रहा था। चीफ कास्टिंग डायरेक्टर गुलशन जी ने बताया कि आप क्यों किसी की मदद कर रहे हैं,आप को तो बड़ा रोल हो गया। दूसरे सीजन की मैंने 20 दिन की शूटिंग की। अब तीसरा सीजन आने वाला है,इस बार किरदार काफी रोचक है।

अब तो दर्शकों की अपेक्षाएं और बढ़ गई होगी। किरदार को लेकर अब कितनी तैयारी करनी पड़ी?
मैं लेखक पर बहुत बिलीव करता हूं। इस शो के राइटर चंदन कुमार बेस्ट राइटर हैं। वो स्क्रिप्ट में एक ग्राफ देते हैं, जिसे आपको सिर्फ फॉलो करना है। आप को नेचुरल रहना है। यही हमारा टास्क रहता है। शो के डायरेक्टर दीपक मिश्र का यही सुझाव रहता है कि आप नेचुरल एक्टिंग करें। अचानक शुद्ध हिंदी ना बोलने लग जाए। क्योंकि हमारे ग्रामीण इलाके में आज भी शुद्ध हिंदी नहीं बोली जाती है। इस तरह की बातों का ध्यान रखना पड़ा है।
यह तो हो गई आपके किरदार की बात, दुर्गेश कुमार यानी कि आपको कब लगा कि इस मायानगरी में आना है?
मैं कभी एक्टर नहीं बनना चाह रहा था। मेरे पिता डॉक्टर हरिकृष्ण चौधरी बिहार दरभंगा के सीएम आर्ट कॉलेज में कॉमर्स के प्रोफेसर रहे हैं। दरभंगा के सीएम साइंस कॉलेज से साइंस मैथमेटिक्स से इंटरमीडिएट की पढ़ाई की। उस बीच मेरे बड़े भाई डॉक्टर शिवशक्ति चौधरी दिल्ली यूपीएससी की तैयारी करने आ गए थे। मैं इंटरमीडिएट की परीक्षा देकर 9 दिसंबर 2001 को दिल्ली आया। मेरे घर में सभी शर्मीले हैं। पिताजी किसी को पैसे उधार दे दिए तो वापस पैसे मांगने में दिक्कत होती है। मेरे भाई और मुझमें भी यही व्यवहार था। मेरे भाई ने पर्सनैलिटी डेवलमेंट के लिए थिएटर ज्वाइन करा दिया, ताकि मैं बोल सकूं। अगर समाज में आपको सरवाइव करना है तो थोड़ा सा कुटिल तो होना ही पड़ेगा।

थिएटर के दौरान ही आपका रुझान एक्टिंग के प्रति हुआ और फिर आपने फिल्मों में करियर बनाने की सोची?
फिल्मों में एक्टिंग के बारे में कभी नहीं सोचा था। दिल्ली में थियेटर करता रहा और ग्रेजुएशन करने के बाद 2008 में एनएसडी ज्वाइन कर लिया। उसके बाद मुझे एनएसडी में ही रिपोटरी की जॉब मिल गई। वह छह साल का जॉब होता है। रोज नए – नए प्ले करने को मिलते हैं। उसमें आप काफी मजबूत हो जाते हैं। मैनें कभी नहीं सोचा कि मुंबई जाकर एक्टिंग करूंगा। मुझे लगा कि रिपोटरी की जॉब के बाद गुरुग्राम या दिल्ली के किसी थियेटर में पढ़ाऊंगा। इसी दौरान मेरे एक मित्र आकाश बड़दास ने डायरेक्टर राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘पीके’ के ऑडिशन के लिए बुलाया।

यानि कि फिल्मों में आपके एक्टिंग कैरियर की शुरुआत डायरेक्टर राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘पीके’ से हुई?
नहीं, ‘पीके’ में मेरा सलेक्शन नहीं हुआ। उस फिल्म के लिए मैंने लॉकेट छीनने वाला सीन का ऑडिशन दिया था। लेकिन उस किरदार के हिसाब से मेरी उम्र कम थी। वह किरदार थिएटर में मुझसे सीनियर राजेंद्र सिंह नानू को मिला। इसी बीच मेरा चयन इम्तियाज अली की फिल्म ‘हाईवे’ में हो गया। इस फिल्म में गुरुग्राम से लेकर जम्मू कश्मीर तक 45 दिनों तक शूटिंग किया। इस फिल्म में काम करने की वजह से रिपरटरी से मुझे निकाल दिया गया। अब दिल्ली में मेरे लिए कुछ नहीं बचा था। मेरे भाई ने सुझाव दिया कि थिएटर और फिल्म कर ही चुके हो, अब मुंबई में जाकर एक्टिंग के लिए ट्राई करो। मैं 7 नवंबर 2013 को मुंबई आ गया।

लेकिन आपको रिपरटरी से निकाला क्यों गया?
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा बहुत ही प्योर इंस्टीट्यूट है। उसके अपने नियम और कायदे हैं। आदमी 365 दिन सिर्फ एक्टिंग करता है। तीन साल तक सरकार रिपरटरी में आपको पैसे देती है। उस दौरान अगर आप फिल्म करते हैं तो वह एक अनुशासनहीनता हो जाती है। इसलिए मुझे निकाल दिया गया। इस बात की मैं इज्जत करता हूं। लेकिन उस समय बुरा लगा था क्योंकि एक सरकारी जॉब आपके हाथ से चली गई थी।

खैर, जब आप मुंबई आए तो थिएटर और इम्तियाज अली की फिल्म ‘हाईवे’ में काम करने का कितना फायदा मिला?
मुंबई आने के बाद तीन साल तक मैं उतना एक्टिव नहीं रहा। मेरी पहली फिल्म ‘हाईवे’ 21 फरवरी 2014 को रिलीज हुई। लोगों ने बहुत प्रशंसा की। मेरे काम को खूब सराहा गया। लेकिन कास्टिंग डायरेक्टर मुझ पर उतना ट्रस्ट नहीं कर पा रहे थे। सभी बड़े कास्टिंग डायरेक्टर से मिलता रहा। 2016 में कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबरा ने डायरेक्टर सोहेल खान की फिल्म ‘फ्रीकी अली’ के लिए एक छोटे से रोल में कास्ट किया। उसी दौरान मुझे यशराज फिल्म्स की ‘सुल्तान’ मिली, जिसमें कमेंटरी का रोल था। इस तरह से धीरे- धीरे सिलसिला आगे बढ़ता गया।

दिल्ली से मुंबई आने के बाद जब तीन साल तक काम नहीं रहा तो उस दौरान सरवाइव कैसे किया?
मेरे पास रिपरटरी का पैसा था। वैसे मैं ईमानदारी से बता दूं कि मैं कमजोर घर का रहने वाला नहीं हूं। मेरे पिता डॉक्टर हरिकृष्ण चौधरी बिहार दरभंगा के सीएम आर्ट कॉलेज में कॉमर्स के प्रोफेसर रहे हैं। मेरे भाई साहब केमिस्ट्री के टीचर हैं। आर्थिक स्थित मेरी कभी खराब नहीं रही, लेकिन जब काम नहीं होता है तो टेंशन बना रहता है।

इंडस्ट्री के लोगों का बाहर से आने वाले एक्टर को लेकर एक अलग ही नजरिया होता है। कभी इस तरह की प्रॉब्लम को फेस किया?
अभी हम लोग उस सर्कल में नहीं गए। हम लोग अभी बहुत नीचे लेवल पर हैं। मैंने कभी भी यह सब फेस नहीं किया। मैं एक ही बात समझता हूं कि आप प्रैक्टिस करते जाइए। आप प्रैक्टिस करते रहेंगे तो ऑडिशन अच्छा होगा। प्रेक्टिस नहीं करेंगे तो अच्छा ऑडिशन नहीं होगा। अच्छे ऑडिशन से आपको अच्छे काम मिलगें। मेरे जीवन में तीन बड़ा काम मिला। पंचायत, शाहरुख खान के प्रोडक्शन की फिल्म भक्षक और आमिर खान के प्रोडक्शन की ‘लापता लेडीज’। आज मुझे सभी बड़े कास्टिंग डायरेक्टर काम देते हैं।