UP BJP Internal Conflict Regional and district presidents could not find new team | अध्यक्ष नए, टीम पुरानी… भाजपा में टकराव की नई कहानी: क्षेत्रीय और जिला अध्यक्षों को नई टीम नहीं मिल पाई, शिकायत- पुराने सहयोग नहीं करते – Lucknow News

मुख्यमंत्री योगी के क्षेत्र गोरखपुर के क्षेत्रीय अध्यक्ष सहजानंद राय पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह सेंधवार से परेशान हैं। सहजानंद ने लखनऊ से दिल्ली तक धर्मेंद्र की शिकायत भी की। उनका आरोप है- क्षेत्र में पूरी टीम धर्मेंद्र की है। वह टीम उन्ह

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टकराव की यह कहानी सिर्फ गोरखपुर क्षेत्र की नहीं है, बल्कि प्रदेश के अधिकतर जिलों और क्षेत्रों का यही हाल है। प्रदेश स्तर के साथ जिले से लेकर क्षेत्रीय स्तर पर संगठन में टकराव बढ़ रहा है। क्षेत्रीय अध्यक्ष को नई टीम बनाने का मौका नहीं मिला। दूसरी ओर पुरानी टीम का सहयोग नहीं मिलने से दुखी हैं। जिलाध्यक्ष इस बात से दुखी हैं कि संगठन की सत्ता अभी भी पूर्व जिलाध्यक्ष के हाथों में है। क्षेत्रीय अध्यक्ष को 16 महीने और जिलाध्यक्ष को 11 महीने से पुरानी टीम के साथ काम करना पड़ रहा है।

पहले कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र की स्थिति देखिए…
कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के अध्यक्ष प्रकाश पाल पूर्व अध्यक्ष मानवेंद्र सिंह से पीड़ित हैं। प्रकाश पाल को भी अपनी टीम बनाने का अवसर नहीं मिला। प्रकाश पाल ने प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह के समक्ष अपना दुखड़ा सुनाया है। उनका आरोप है- मानवेंद्र सिंह लंबे समय तक क्षेत्रीय अध्यक्ष रहे। जिलाध्यक्ष से लेकर क्षेत्रीय टीम के सभी पदाधिकारी उनके गुट के हैं। वह कामकाज में सहयोग नहीं करते हैं।

डेढ़ साल हो गए क्षेत्रीय अध्यक्ष बने, टीम नहीं बना पाए
भाजपा ने 25 मार्च 2023 को पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष घोषित किए। अवध क्षेत्र में कमलेश मिश्रा, कानपुर-बुंदेलखंड में प्रकाश पाल, काशी क्षेत्र में दिलीप पटेल, गोरखपुर में सहजानंद राय, पश्चिम क्षेत्र में सत्येंद्र सिसोदिया और ब्रज क्षेत्र में दुर्विजय शाक्य को क्षेत्रीय अध्यक्ष बनाया गया।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, क्षेत्रीय अध्यक्षों ने कई बार प्रदेश नेतृत्व के समक्ष अपनी नई टीम बनाने का प्रस्ताव रखा। नई टीम के सदस्यों के नाम भी प्रस्तावित किए। लेकिन, प्रदेश स्तर पर सहमति नहीं बन पाने के कारण 16 महीने से ज्यादा समय बीतने के बाद भी वह अपनी टीम नहीं बना सके हैं। अवध को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रीय अध्यक्षों की शिकायत है कि पुराने क्षेत्रीय अध्यक्ष का प्रभाव बरकरार है। पुरानी टीम कामकाज में सहयोग नहीं करती है। नतीजा यह कि पार्टी के कार्यक्रम और अभियानों पर अच्छे तरीके से काम नहीं हो पा रहा है।

टकराव की यह वजह…

1- जिलाध्यक्षों को भी नहीं मिली नई टीम: यूपी में भाजपा के 98 संगठनात्मक जिले हैं। भाजपा ने 15 सितंबर, 2023 को जिलाध्यक्षों की सूची जारी की। 98 में से 69 नए जिलाध्यक्ष बनाए गए। जिलाध्यक्ष भी कई बार अपनी नई टीम बनाने का प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उन्हें भी मौका नहीं मिला। उनकी भी शिकायत यही है कि पुरानी टीम कामकाज में सहयोग नहीं करती है। पुरानी टीम में बहुत से ऐसे पदाधिकारी हैं, जो खुद जिलाध्यक्ष बनना चाहते थे। लेकिन वंचित रहने के कारण अब भीतरघात करते हैं।

2- पूर्व प्रभारियों का दखल भी बरकरार: क्षेत्रीय अध्यक्षों की शिकायत है कि पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष ही नहीं पूर्व क्षेत्रीय प्रभारी भी उनके क्षेत्र में दखल दे रहे हैं।

क्यों नहीं बन रही है नई टीम?
भाजपा के एक प्रदेश पदाधिकारी ने बताया- अधिकतर पूर्व क्षेत्रीय अध्यक्ष अब पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और MLC हैं। उनका लखनऊ में ज्यादा प्रभाव है। वह नहीं चाहते हैं कि क्षेत्र में उनकी टीम की जगह नई टीम काम करे। उनके प्रभाव के चलते ही क्षेत्रों में नई टीम गठित नहीं हो रही है।

काशी क्षेत्र के भाजपा अध्यक्ष दिलीप पटेल कहते हैं, लोकसभा चुनाव से पहले क्षेत्रों और जिलों की नई टीम बनाने पर बात हुई थी। लेकिन, फिर चुनाव के कारण उसे टाल दिया गया। अभी किसी भी क्षेत्र या जिले में नई टीम नहीं बनी है। थोड़ा बहुत असहयोग की बात तो रहती है। टीम में सभी तरह के लोग एक समान नहीं होते हैं।

प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र बोले- अब नए सिरे से होगा चुनाव
संगठन में खींचतान पर प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने दैनिक भास्कर से कहा- अब जिले और क्षेत्र की टीम घोषित नहीं होगी। पहले सदस्यता अभियान चलाया जाएगा। उसके बाद संगठन का नए सिरे से चुनाव होगा।

क्या भाजपा का कांग्रेसीकरण हो रहा? जानिए राजनीतिक विश्लेषक क्या कहते हैं…

राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि भाजपा में अब कांग्रेस की तरह केंद्रीकरण हो गया है। या यूं कहें की भाजपा का कांग्रेसीकरण हो गया है। भाजपा में अब संगठन की स्वायत्तता नहीं रही है। जिलाध्यक्ष और क्षेत्रीय अध्यक्ष बनाने की अनुमति भी केंद्र से लेनी पड़ती है। क्षेत्रीय अध्यक्ष और जिलाध्यक्षों को टीम नहीं बनाने देने से नुकसान हो रहा है। लोकसभा चुनाव की जो रिपोर्ट तैयार हुई, उसमें भी सामने आया है कि प्रत्याशी को कार्यकर्ताओं का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला।

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्‌ट कहते हैं, जिस तरह से भाजपा का माइक्रो मैनेजमेंट किया जा रहा है, यह भी उसकी लोकसभा चुनाव में विफलता का कारण है। भाजपा का प्रदेश नेतृत्व दिल्ली से जो बताया जाता है, उतना ही काम करता है। यूपी में कल्याण सिंह, कलराज मिश्र, राजनाथ सिंह, विनय कटियार जैसे कद्दावर नेता अध्यक्ष रहे हैं, जो अपने स्तर पर निर्णय लेते थे। लेकिन, अब प्रत्याशी चयन से लेकर पदाधिकारी चयन में भी केंद्रीय नेतृत्व का दखल ज्यादा है। संगठन की सत्ता का केंद्रीकरण हुआ है। अगर भाजपा कहती है कि संगठन सरकार से ऊपर है तो संगठन की स्वायत्तता को बहाल करना होगा। क्षेत्रीय अध्यक्ष और जिलाध्यक्षों को स्वतंत्र रूप से अपनी टीम बनाने के मौके देने चाहिए।

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भाजपा सरकार और संगठन में गुटबाजी के कारण निगम, आयोग और बोर्ड में करीब 11 हजार से ज्यादा राजनीतिक नियुक्तियां अटकी हुई हैं। करीब ढाई साल में कई दौर की बैठकों के बाद भी सरकार और संगठन के शीर्ष लोग नियुक्तियों को लेकर कोई निर्णय नहीं ले सके। यही वजह है कि अब बड़ी संस्थाओं में सहयोगी दलों की हिस्सेदारी और कार्यकर्ताओं की नियुक्ति का मामला दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व तक जा सकता है। पढ़ें पूरी खबर…

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