Unique worship of Ravana: Sometimes son-in-law and sometimes god | रावण जोधपुर-मंदसौर के दामाद, दहन पर शोक: विदिशा के बाबा, इंदौर में राम के साथ पूजे जाते हैं; दशहरा की अलग-अलग परंपरा – Madhya Pradesh News

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ इलाकों में रावण को पूजा जाता है।

विजयादशमी पर रावण का पुतला दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाया जाता है लेकिन मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में कुछ ऐसे स्थान हैं, जहां रावण को पूजते हैं। यहां रावण को या तो दामाद या फिर प्रथम पूज्य देवता मानकर आराधना होती है।

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दशहरा पर्व के मौके पर दैनिक भास्कर की टीम मध्यप्रदेश के मंदसौर, विदिशा, इंदौर, राजस्थान के जोधपुर और उत्तर प्रदेश के मेरठ पहुंची। मंदसौर में रावण को दामाद, विदिशा में प्रथम पूज्य देवता, इंदौर में 108 बार “राम” नाम लिखने पर एंट्री, मेरठ में नौ वीर सपूतों को श्रद्धांजलि और जोधपुर में पिंडदान करवाने की परंपरा है। पढ़िए, रिपोर्ट…

विदिशा: रावण दहन की जगह होता है भंडारा विदिशा जिले में एक ऐसा गांव है, जहां रावण की पूजा प्रथम पूज्य देवता के रूप में की जाती है। इस गांव का नाम भी रावण है। यह गांव विदिशा जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर है।

इस गांव में रावण को रावण बाबा कहा जाता है। उनकी अन्य देवताओं के साथ पूजा की जाती है। यहां रावण इतने पूजनीय हैं कि लोग कोई भी शुभ काम करने से पहले रावण की मूर्ति के सामने दंडवत प्रणाम कर उनकी नाभि में तेल लगाते हैं।

गांव में दशहरा विशेष पूजन कर मनाया जाता है, लेकिन रावण दहन नहीं होता। दहन की जगह भंडारा करवाया जाता है। रावण कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इस गांव में 90 प्रतिशत कान्यकुब्ज ब्राह्मण ही रहते हैं। रावण को वे पूर्वज और देवता की तरह पूजते हैं। रावण बाबा यहां आराम मुद्रा में विराजित है।

लेटी हुई अवस्था में प्रतिमा गांव के लोगों के बीच एक किंवदंती मशहूर है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में गांव के पास स्थित बूधे की पहाड़ी पर एक राक्षस रहता था। इस राक्षस को सिवाय रावण के कोई नहीं हरा पाता था। जब राक्षस रावण के सामने जाता था, तो उसकी ताकत कम हो जाती थी। इस बात का पता जब गांव वालों को चला, तो उन्होंने गांव में रावण की बड़ी मूर्ति बना दी। जिसके बाद से राक्षस गांव में नहीं आया।

दशहरे पर गांव के लोग रावण बाबा की पूजा कर उन्हें भोग अर्पित करते हैं। ग्रामीणों के मुताबिक, यहां सदियों से रावण की विशाल प्रतिमा जमीन पर लेटी अवस्था में है। इस प्रतिमा को आज तक कोई हिला भी नहीं पाया। श्रद्धालुओं के सहयोग से यहां रावण बाबा का मंदिर बन चुका है, जो देश में रावण बाबा का दूसरा मंदिर माना जाता है। दशहरे के दिन सुबह से रावण बाबा की पूजा की जाती है।

मंदसौर: रावण को दामाद मानते हैं मंदसौर में लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं और पूरे साल उनकी आराधना करते हैं। मंदसौर में रावण की करीब 41 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है, जहां नामदेव समाज के लोग विशेष रूप से पूजा-अर्चना करने आते हैं। इस अनूठी परंपरा के चलते पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखता है।

मान्यता है कि रावण मंदसौर के जमाई थे और प्राचीन शहर मंदसौर को दशपुर के नाम से जाना जाता था, जिसका मंदोदरी से संबंध है।

रावण की 41 फीट ऊंची प्रतिमा मंदसौर में रावण की पूजा के साथ ही एक और मान्यता जुड़ी हुई है। यहां लोग रावण के पैर में धागा बांधते हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि इससे बीमारियां दूर होती हैं। रावण को यहां बाबा कहकर पूजा जाता है और धागा दाहिने पैर में बांधा जाता है। इसके अलावा क्षेत्र की खुशहाली, लोगों को बीमारियों से बचाने और प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करने के लिए भी रावण से प्रार्थना की जाती है।

दशहरे के दिन नामदेव समाज के लोग रावण मंदिर में जमा होते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। शाम के समय राम और रावण की सेना निकलती है। रावण के वध से पहले लोग रावण के सामने खड़े होकर क्षमा-याचना करते हैं। इस दौरान वे कहते हैं कि रावण ने सीता का हरण किया था, इसलिए राम की सेना उनका वध करने आई है।

इंदौर: भगवान राम का निराला धाम इंदौर के वैभव नगर में “भगवान राम का निराला धाम” मंदिर है। इसकी विशेषता है कि यहां प्रवेश से पहले श्रद्धालुओं को 108 बार “राम” नाम लिखना अनिवार्य है। यह मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित है। इसकी दीवारों और गलियारों में रामायण के प्रमुख पात्रों की मूर्तियां स्थापित की गई हैं।

भगवान श्रीराम के साथ-साथ यहां रावण, कुंभकर्ण, मेघनाथ, विभीषण, त्रिजटा, शबरी, कैकेयी, मंथरा, शूर्पणखा, अहिल्या, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी और तारा जैसे पात्रों की भी मूर्तियां हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि रामायण का हर पात्र किसी न किसी रूप में पूजनीय है और उनके जीवन से कुछ न कुछ सीखना चाहिए।

धाम के संरक्षक श्रीराम, सेक्रेटरी भोलेनाथ इंदौर में मंदिर की स्थापना वर्ष 1990 में हुई थी। मंदिर में एक संदेश लिखा गया है, जो श्रद्धालुओं का ध्यान खींचता है- हे कलियुग वासियो, मुझे भस्म करना छोड़ दो। अपने भीतर के राग, द्वेष और अहंकार को भस्म करो। यह संदेश रावण की मूर्ति के पास अंकित है।

शनिदेव का भी एक संदेश लिखा गया है- मुझ पर तेल चढ़ाना छोड़ दो, सिर्फ राम नाम का जाप करो, मैं तुम्हें विपत्तियों से मुक्त कर दूंगा।

इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि इस मंदिर में संरक्षक श्री रामचंद्र जी, अध्यक्ष हनुमान जी, कोषाध्यक्ष कुबेर, सेक्रेटरी भोलेनाथ, सुरक्षा अधिकारी यमराज, लेखा-जोखा अधिकारी चित्रगुप्त और वास्तुविद् विश्वकर्मा बनाए गए हैं।

उज्जैन के चिकली गांव में रावण का मंदिर उज्जैन से करीब 20 किमी दूर स्थित चिकली गांव में दशहरा पर पहले रावण की पूजा होती है, फिर दहन किया जाता है। गांव में रावण का प्राचीन मंदिर है। यहां उनकी करीब 8 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। दशहरे पर सुबह ग्रामीण यहां पूजा-आरती करते हैं। शाम को प्रतीकात्मक दहन किया जाता है।

इस मौके पर मेला भी लगता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां मांगी गई मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं, इसलिए गुजरात, राजस्थान से भी लोग दर्शन करने पहुंचते हैं।

दशहरे पर उज्जैन के चिकली गांव में रावण की पूजा की गई।

दशहरे पर उज्जैन के चिकली गांव में रावण की पूजा की गई।

मेरठ: दशहरा पर शहीदों को देते हैं श्रद्धांजलि उत्तर प्रदेश में मेरठ के गंगोल गांव में 1857 की क्रांति में गांव के नौ वीर सपूतों ने आजादी के लिए प्राणों की आहुति दी थी। अंग्रेजी हुकूमत ने दशहरे के दिन गांव में पीपल के पेड़ पर उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया था। तभी से गांव के लोग इस दिन को शहीदों की शहादत का दिन मानते हैं और शोक मनाते हैं। शहीद होने वालों में श्रीराम सहाय सिंह, घसीटा सिंह, रम्मन सिंह, हरजस सिंह, हिम्मत सिंह, कढेरा सिंह, शिब्बा सिंह, बैरम सिंह और दरबा सिंह शामिल हैं।

गंगोल के बुजुर्ग बताते हैं कि इन नौ वीरों की शहादत के बाद गांव ने यह संकल्प लिया था कि जब तक यह परंपरा रहेगी, तब तक दशहरा नहीं मनाएंगे। रावण दहन यहां नहीं होगा। यही कारण है कि गंगोल के लोग शहीद हुए पूर्वजों की याद में इस दिन गर्व महसूस करते हैं। दशहरे पर शहीदों को याद कर श्रद्धांजलि दी जाती है। भजन-कीर्तन होता है।

जोधपुर: दशहरा को मानते हैं शोक का दिन राजस्थान में जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और मंदोदरी का मंदिर स्थित है। इसे गोधा गोत्र के ब्राह्मणों ने बनवाया है। इस मंदिर में रावण और मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमाएं हैं। दोनों को शिव पूजन करते हुए दिखाया गया है। मंदिर के पुजारी कमलेश कुमार दवे का दावा है कि उनके पूर्वज रावण के विवाह के समय यहां आकर बस गए। पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे, लेकिन 2008 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया।

दवे ने बताया कि रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे। ऐसे में कई संगीतज्ञ और वेद का अध्ययन करने वाले छात्र, रावण का आशीर्वाद लेने इस मंदिर में आते हैं। दशहरा हमारे लिए शोक का प्रतीक है। इस दिन हमारे लोग रावण दहन देखने नहीं जाते हैं। शोक मनाते हुए शाम को स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है और रावण के दर्शन करने के बाद भोजन किया जाता है।

रावण की कुलदेवी की भी पूजा श्रीमाली दवे ब्राह्मण समाज गोधा के लोग खुद को रावण के वंश का बताते हैं और वे भी उसी मां खरानना की पूजा करते हैं, जो रावण की कुलदेवी थी। वे कहते हैं कि रावण के अच्छे कामों के लिए उनकी पूजा करते हैं। वो महान विद्वान होने के साथ ही संगीतज्ञ भी थे। आज भी यहां संगीत के विद्यार्थी दर्शन के लिए आते हैं।

ऐसी मान्यता है कि मंदोदरी के साथ रावण का विवाह राजस्थान के जोधपुर में हुआ था। उस समय बारात में आए ये लोग यहीं पर बस गए। इन लोगों ने रावण का मंदिर बनवा रखा है और नियमित रूप से रावण की पूजा करते हैं। जोधपुर में वर्तमान में ऐसे 100 परिवार यहां रहते हैं जबकि फलोदी में 60 और गुजरात राज्य में डेढ़ हजार परिवार रहते हैं।

इनपुट: विदिशा से कपिल जैन, मंदसौर से शादाब चौधरी, इंदौर से संतोष शितोले, मेरठ से इरफान खान, जोधपुर से अरविंद सिंह।

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