Union Budget Interesting Facts; Officers Lock In | Budgeting Process Explained | तहखाने में क्यों कैद हैं बजट बनाने वाले अफसर: 1 फरवरी को सुबह 11 बजे ही क्यों पेश होता है बजट; 9 दिलचस्प बातें

अंग्रेजों के समय फरवरी के आखिरी दिन शाम 5 बजे बजट पेश करने की परंपरा थी। दरअसल, भारत का समय, ब्रिटिश समय से 4 घंटे 30 मिनट आगे है। इसलिए अंग्रेज अफसरों ने अपनी सुविधा के लिए बजट पेश करने का समय शाम 5 बजे तय कर दिया था।

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139 साल बाद 1999 में अटल सरकार ने ये परंपरा में तोड़ दी और बजट सुबह 11 बजे पेश किया जाने लगा। अटल सरकार ने ऐसा क्यों किया? जानेंगे ऐसे ही 9 दिलचस्प सवालों के जवाब…

सवाल 1: क्या बजट बनाने वाली टीम को तहखाने में बंद रखा जाता है? जवाब: जी हां, यह सच है। लोकसभा में बजट पेश होने से पहले उसे बनाने में शामिल करीब 100 अफसर और कर्मचारियों को वित्त मंत्रालय के बेसमेंट में 7 दिन के लिए ताले में बंद रखा जाता है। सभी के मोबाइल फोन ले लिए जाते हैं। इस दौरान न तो वे किसी से मिल सकते हैं और न घर जा पाते हैं। मकसद है- बजट वाले दिन यानी 1 फरवरी को वित्तमंत्री का भाषण पूरा होने तक बजट को गोपनीय रखना, ताकि कालाबाजारी और मुनाफाखोरी रोकी जा सके। सोचिए, अगर किसी को पता चल जाए कि किसी खास इंडस्ट्री पर टैक्स कम होने वाला है तो वह भारी मात्रा में उस इंडस्ट्री से जुड़ी कंपनियों के शेयर खरीद लेगा। उधर, बजट में यह ऐलान होते ही उस इंडस्ट्री के शेयर तेजी चढ़ेंगे और वह शख्स मोटा मुनाफा कमा लेगा। वहीं आम निवेशकों से यह मौका छिन जाएगा।

अफसरों के इस लॉक-इन के दौरान वित्त मंत्रालय के बेसमेंट में लगी प्रिंटिंग प्रेस में बजट की कॉपियां छापी जाती हैं। 1950 से पहले तक बजट की कॉपियां राष्ट्रपति भवन में लगी एक सरकारी प्रेस में छपती थीं। 1950 में वित्तमंत्री जॉन मथाई के दौर में इस प्रेस से कुछ डाक्यूमेंट्स लीक हो गए। मथाई पर कुछ बड़े उद्योगपतियों की मदद का आरोप लगा। इसके बाद बजट की छपाई दिल्ली के मिंटो रोड स्थित दूसरी सरकारी प्रेस में होने लगी।

30 साल बाद 1980 में इसी प्रेस को नॉर्थ ब्लॉक यानी वित्त मंत्रालय के बेसमेंट में शिफ्ट कर दिया गया। उसी साल बजट को फाइनल करने और उसकी छपाई में शामिल स्टाफ को दो हफ्ते के लिए बेसमेंट में बंद कर दिया गया। तब से यह प्रक्रिया जारी है।

2021-22 से ‘यूनियन बजट मोबाइल ऐप’ पर डिजिटल बजट जारी होने लगा। इसके चलते बजट की छपी हुई कॉपियों की जरूरत बेहद कम हो गई। नतीजतन स्टाफ का लॉक-इन पीरियड भी 2 की जगह 1 सप्ताह का हो गया।

सवाल 2: हलवा सेरेमनी क्या है, बजट से पहले हर साल यह क्यों होती है? जवाब: बजट पेश होने से कुछ दिन पहले खबरों में हलवे की चर्चा होने लगती है। हलवे की कढ़ाई के साथ वित्त मंत्री की तस्वीरें आने लगती हैं। दरअसल, भारत में किसी भी शुभ काम की शुरुआत मीठे से करने की परंपरा है। देश का साल भर का बजट बनाना भी शुभ काम माना जाता है। इसलिए नॉर्थ ब्लॉक की प्रेस में बजट की छपाई शुरू होने से पहले हलवा बनाया जाता है।

वित्त मंत्री अपने हाथ से स्टाफ को कढ़ाई से हलवा परोसती हैं। इस ‘हलवा सेरेमनी’ के तुरंत बाद स्टाफ का लॉक-इन पीरियड शुरू हो जाता है। इसलिए हलवा सेरेमनी को इन लोगों के प्रति आभार जताने का एक तरीका भी माना जाता है। इस बार 24 जनवरी को हलवा सेरेमनी हुई थी।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जुलाई 2024 में बजट से पहले हलवा परोसतीं हुईं। इस बार हलवा सेरेमनी की तस्वीरें सार्वजनिक नहीं की गई हैं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जुलाई 2024 में बजट से पहले हलवा परोसतीं हुईं। इस बार हलवा सेरेमनी की तस्वीरें सार्वजनिक नहीं की गई हैं।

सवाल 3: आम बजट 1 फरवरी को ही क्यों पेश किया जाता है? जवाब: अंग्रेजों के समय से लेकर 2016 तक बजट फरवरी महीने के आखिरी वर्किंग डे यानी 28 फरवरी या अगर लीप ईयर है तो 29 फरवरी को पेश किया जाता था। 21 जनवरी 2017 को मोदी सरकार ने आम बजट पेश करने की तारीख 1 फरवरी कर दी। तब के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसके पीछे दो वजहें बताई थीं-

1. बजट लागू करने में समय की कमी: बजट पेश करने से लेकर संसद से उसे पारित कराने और लागू करने में मई तक का समय लगता है। जेटली का कहना था कि 28 फरवरी की जगह 1 फरवरी को इसे पेश करने से बजट के नए बदलाव और नियम लागू करने के लिए ज्यादा समय मिलेगा।

2. रेलवे बजट का आम बजट में विलय: 2017 में रेल बजट का आम बजट में विलय कर दिया गया था। जेटली के मुताबिक, इसके चलते आम बजट लागू करने के लिए और ज्यादा समय चाहिए था।

सवाल 4: अब बजट 11 बजे पेश होता है, जबकि इससे पहले ये समय शाम 5 बजे था, ऐसा क्यों? जवाब: अंग्रेजों के समय फरवरी के आखिरी दिन शाम को 5 बजे बजट पेश किया जाता था। जैसा हमने शुरुआत में ही बताया कि उस समय ब्रिटेन में दोपहर के 12:30 बज रहे होते थे। इससे अंग्रेज अधिकारियों को सुविधा होती थी।

साल 1999 में अटल सरकार के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सुबह 11 बजे आम बजट पेश किया। तब सिन्हा बोले थे- ‘भारत अब ब्रिटिश कॉलोनी नहीं रहा, वह अपनी टाइम-टेबल खुद तय कर सकता है। इससे संसद में बजट पर चर्चा के लिए एक पूरा दिन मिल जाएगा।’ तब से अब तक आम बजट सुबह 11 बजे पेश किया जाता है।

28 फरवरी 1999 को पहली बार सुबह 11 बजे बजट पेश करने जाते वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा।

28 फरवरी 1999 को पहली बार सुबह 11 बजे बजट पेश करने जाते वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा।

सवाल 5: नया साल 1 जनवरी से शुरू होता है, लेकिन बजट 1 अप्रैल से 31 मार्च का क्यों होता है? जवाब: भारत में 1867 से वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक का होता है। इसलिए बजट में भी वित्तीय वर्ष के अनुसार 1 अप्रैल से 31 मार्च तक का हिसाब-किताब रखा जाता है। वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से क्यों शुरू होता है, इसके पीछे 2 वजहें हैं-

  1. फसल चक्र लगभग अप्रैल से शुरू होता है: भारत की अर्थव्यवस्था का 18% से 20% हिस्सा अभी भी खेती से आता है। वहीं, गेहूं जैसी रबी की बड़ी फसल की कटाई फरवरी-मार्च से शुरू होती है। ऐसे में खेती से जुड़े लोगों के पास पैसा मार्च से आना शुरू होता है। इसी हिसाब से अर्थव्यवस्था का एक बड़ा चक्र भी मार्च से शुरू होता है। यही वजह है कि भारत में वित्त वर्ष की शुरुआत 1 मार्च से होती है।
  2. ब्रिटिश वित्तीय वर्ष भी अप्रैल से शुरू होता है: ब्रिटेन में 6 अप्रैल को नया फाइनेंशियल ईयर शुरू होता है और 5 अप्रैल को खत्म होता है। आजादी से पहले तक भारत में अंग्रेजों ने यही व्यवस्था लागू रखी थी।

2016 में पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार शंकर आचार्य की अध्यक्षता वाली एक समिति ने भारत का वित्तीय वर्ष भी 1 जनवरी से शुरू करने का सुझाव दिया था। जनवरी 2019 में भी ये चर्चा हुई कि अब वित्तीय वर्ष बदला जा सकता है, लेकिन सरकार ने अब तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया है।

सवाल 6: वित्त मंत्री बजट भाषण के लिए लाल रंग के कवर (बही-खाता) में ही बजट के डॉक्यूमेंट क्यों लेकर आती हैं? जवाब: आजाद भारत का पहला बजट 26 नवंबर 1947 को भारत के पहले वित्त मंत्री आरके षनमुखम चेट्टी ने पेश किया था। वह अंग्रेजों की तरह चमड़े के भूरे रंग के ब्रीफकेस में बजट रखकर संसद पहुंचे थे। 2018 तक ‘चमड़े के ब्रीफकेस की परंपरा’ जारी रही।

इस परंपरा को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तोड़ा। 5 जुलाई 2019 को निर्मला पहली बार बजट को ब्रीफकेस के बजाय एक लाल रंग के कपड़े के कवर में रखकर संसद पहुंचीं।

इस कवर पर राष्ट्रीय चिह्न ‘अशोक स्तंभ’ बना हुआ था। तब के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने इस बदलाव को ‘पश्चिमी गुलामी से आजादी’ का प्रतीक कहा।

लाल कपड़े का इस्तेमाल भारतीय बहुसंख्यक हिंदुओं के धार्मिक अनुष्ठानों में भी होता है। कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘यह भारतीय परंपरा में है। यह बजट नहीं बही-खाता है।’

1 फरवरी 2021 को वित्त मंत्री सीतारमण ने ‘पेपरलेस बजट’ पेश किया था। वह लाल रंग के कपड़े के कवर में टेबलेट रखकर संसद पहुंची थीं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पहली बार 5 जुलाई 2019 को लाल कपड़े के कवर में बजट लेकर संसद पहुंचीं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पहली बार 5 जुलाई 2019 को लाल कपड़े के कवर में बजट लेकर संसद पहुंचीं।

सवाल 7: आम बिल राज्यसभा में भी पेश किए जा सकते हैं, लेकिन बजट को लोकसभा में ही क्यों पेश करते हैं? जवाब: कोई आम बिल राज्यसभा में भी पेश किया जा सकता है​​​, लेकिन बजट में मामले में ऐसा नहीं है। दरअसल, भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसकी लोकसभा में देश की जनता द्वारा सीधे चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। चूंकि सरकारी खजाने में जनता का पैसा होता है, इसलिए सरकार को टैक्स वगैरह के जरिए सरकारी खजाने में पैसा जमा करना हो या एक भी पाई निकालनी हो, इसमें लोकसभा की मंजूरी जरूरी है।

इसके लिए सरकार को लोकसभा से दो बिल पास करवाने होते हैं- खजाने में पैसा जमा के लिए फाइनेंस बिल और निकालने के लिए एप्रोप्रिएशन बिल। ये दोनों बिल पैसे से जुड़े हैं और बजट में शामिल होते हैं, इसीलिए बजट को ‘मनी बिल’ कहा जाता है। इसीलिए मनी बिल केवल लोकसभा में ही पेश किए जा सकते हैं।

हालांकि, बजट लोकसभा से पास होकर राज्यसभा में भी जाता है, लेकिन राज्यसभा अगर कोई बदलाव सुझाती है तो लोकसभा उसे मानने को बाध्य नहीं है। यानी किसी सरकार के पास अगर राज्यसभा में बहुमत नहीं है तो भी उसे बजट पास कराने में दिक्कत नहीं होगी।

सवाल 8: अमूमन बिल पारित होने के बाद राष्ट्रपति मंजूरी देते हैं, लेकिन बजट के मामले में पहले ही क्यों जरूरी है? जवाब: मनी बिल केवल सरकार ही पेश करे, ये सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रपति की पहले ही अनुमति लेना जरूरी है। इसका मतलब ये है कि संसद का कोई ऐसा सांसद जो सरकार में शामिल नहीं है, वह मनी बिल या बजट पेश नहीं कर सकता।

हालांकि, राष्ट्रपति को बजट में कोई बदलाव करने का अधिकार नहीं है। उनकी भूमिका सिर्फ बजट को रिसीव करने और उसे स्वीकार करने तक सीमित है।

सवाल 9: रेलवे बजट पहले अलग से पेश होता था, अब इसे आम बजट में क्यों शामिल कर लिया गया है? जवाब: साल 1924 से 2016 तक रेलवे बजट, आम बजट से अलग था। इसके पीछे सरकारों के दो प्रमुख तर्क थे-

  1. रेलवे देश का सबसे बड़ा मंत्रालय है। इसमें सबसे ज्यादा आम लोग और कर्मचारी जुड़े हैं।
  2. देश की तरक्की, सुरक्षा और उसे एकजुट रखने के लिए रेलवे बेहद जरूरी है। इसलिए इस पर अलग से फोकस किया जाना चाहिए।

पहली बार 1924 में अंग्रेजों ने रेलवे बजट को आम बजट से अलग किया गया था। तब अक्वर्थ नाम की एक रेलवे कमेटी ने भारत में रेलवे के राष्ट्रीयकरण और अलग-अलग निजी कंपनियों को एक करने के लिए ये सिफारिश की थी।

सितंबर 2016 में मोदी सरकार ने 92 साल पुरानी ये परंपरा तोड़ दी। तब के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था, ‘रेलवे बजट आम बजट की तुलना में बहुत छोटा है। इसलिए इसे अलग से पेश करना सिर्फ एक रस्म अदा करने जैसा है।’

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