Ujjwal Nikam Interview Update; kasab Case | BJP | तीन दशकों से मैं Z+ सुरक्षा में जी रहा हूं: हर केस श्लोक से शुरू करता हूं ,धमकियां मिलती हैं, लेकिन मैं ध्यान नहीं देता- उज्जवल निकम

अहमदाबाद13 घंटे पहलेलेखक: ध्रुव संचानिया

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‘कसाब केस के दौरान जितना मीडिया था इतना मीडिया अगर 1993 में होता तो मैं पूरी दुनिया में मशहूर हो गया होता। लेकिन अच्छा है कि लोगों की याददाश्त कमजोर होती है। जितना कम याद रखें, उतनी कम चिंता। ‘मुझे धमकियां तो मिलती रहती हैं, लेकिन मैं उन पर ध्यान नहीं देता और न ही उन्हें याद रखता हूं। मेरा जन्म हनुमान जयंती का है मैं किसी से डरता नहीं हूं।’

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यह कहना है उज्जवल निकम का, देश के सबसे मशहूर वकील। 1993 के मुंबई बम धमाकों से लेकर 26/11, अबू सलेम, गुलशन कुमार हत्या जैसे चर्चित केस लड़ने वाला चेहरा अब सांसद के रूप में नजर आएगा।

पब्लिक प्रॉसिक्यूटर पद्मश्री उज्जवल निकम ने गुरुवार को राज्यसभा सांसद के रूप में शपथ ली। उसी दिन दैनिक भास्कर ने उनसे बात की…

सर, आपके जीवन में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। आपने सांसद के रूप में शपथ ले ली है। पीछे मुड़कर अपनी रोमांचक जिंदगी को देखते हैं, तो क्या नजर आता है?

अभी पीछे देखकर कुछ सोचने का वक्त नहीं आया। क्योंकि मेरा पिछला अध्याय अभी बंद नहीं हुआ। मैंने सांसद के रूप में शपथ ली है, लेकिन वकील के रूप में मेरा सफर जारी रहेगा। मैं अब भी विशेष पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के रूप में काम करता रहूंगा। पहले मैं कोर्ट में जाकर न्याय की लड़ाई लड़ता था, अब मुझे उस कोर्ट में जाने का मौका मिला है, जहां कानून बनने की शुरुआत होती है।

कई लोग हमारे देश को चूना लगाकर घोटाले कर भाग जाते हैं। ऐसे लोगों को वापस लाने में हम कमजोर पड़ते हैं। हमारे संविधान में अभी कई खामियां हैं। मैं उन खामियों को ढूंढने और दूर करने पर खास ध्यान दूंगा।’

निकम ने कहा- मैने सांसद के रूप में शपथ ली है, लेकिन वकील के रूप में मेरा सफर जारी रहेगा।

निकम ने कहा- मैने सांसद के रूप में शपथ ली है, लेकिन वकील के रूप में मेरा सफर जारी रहेगा।

आपके करियर और उपलब्धियों से कोई अनजान नहीं है, लेकिन सबसे पहले किस केस से आपका नाम चर्चा में आया?

मैं 1977 से महाराष्ट्र के जलगांव में वकालत कर रहा था। वहां मैंने कई केस लड़े, जिसके कारण स्थानीय स्तर पर मेरा नाम काफी मशहूर हो गया था। 1993 में मुंबई बम धमाकों के बाद मुंबई पुलिस मेरे पास आई और अनुरोध किया कि आप इस केस में सरकार की तरफ से काम करें। मुझे खुशी हुई कि देश के लिए काम करने का मौका मिला। उस केस की वजह से मेरा नाम मशहूर हुआ और देश में लोग मुझे जानने लगे।

इसके बाद गुलशन कुमार हत्या, गेटवे ऑफ इंडिया बम धमाका, कसाब केस जैसे कई मामले लड़े और अभी भी लड़ रहा हूं।

1993 बम धमाके, 26/11 कसाब केस जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों में मीडिया और जनता बहुत ज्यादा शामिल होती है। ऐसे केस को आप मानसिक और भावनात्मक रूप से कैसे संभालते हैं?

भावनात्मक होने की जरूरत ही नहीं है। मुझे व्यावहारिक रूप से सभी पहलुओं की जांच कर केस जीतना होता है। हां, जब मैं उस दुखद घटना के बारे में पहली बार सुनता हूं, तो दुख जरूर होता है। जब पुलिस मेरे पास आकर अपराधी की क्रूरता बताती है, तो मन व्याकुल हो जाता है। लेकिन मैं सिर्फ केस जीतने पर ध्यान देता हूं।

मेरे मन में हमेशा यही रहता है कि मुझे दुनिया में मिसाल कायम करनी है। अपराधी को फांसी या उम्रकैद की सजा दिलवाता हूं।

2016 में भारत सरकार ने उज्जवल निगम को पद्मश्री से सम्मानित किया। प्रेक्टिस करते हुए यह अवॉर्ड पाने वाले वे पहले एडवोकेट हैं।

2016 में भारत सरकार ने उज्जवल निगम को पद्मश्री से सम्मानित किया। प्रेक्टिस करते हुए यह अवॉर्ड पाने वाले वे पहले एडवोकेट हैं।

सर, आपके बारे में एक बात सुनी है कि 26/11 केस के दौरान आपने अपने परिवार को कहीं दूर अज्ञात जगह पर रखा था और रोज मुंबई आकर केस लड़ते थे। क्या यह सच है?

बात सच है, लेकिन इसे तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। उस केस के दौरान मेरा परिवार मुंबई से दूर था और मैं आना-जाना करता था, यह हकीकत है। लेकिन केस के लिए परिवार को दूर छोड़कर आया था, यह गलत है। दरअसल, 1993 में जब मैं मुंबई आया, तब से लेकर 2016 में मेरे बेटे की शादी तक मेरा परिवार जलगांव में ही रहा। वे मुंबई आए ही नहीं। मैं 23 साल तक मुंबई की होटल में रहा। हर शुक्रवार को जलगांव घर जाता और सोमवार सुबह वापस मुंबई होटल आकर काम शुरू करता। इसमें 26/11 का केस हो या कोई सामान्य केस, 23 साल तक मेरा यही टाइम टेबल रहा।’

ज्यादातर लोग आपको 26/11 या 1993 बम धमाकों जैसे केस से ही जानते हैं। क्या यह अन्याय नहीं लगता?

इससे क्या फर्क पड़ता? लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर होती है। कुछ साल बीतने दो, लोग कसाब की कहानी भी भूल जाएंगे और यह भी कि मैंने वह केस लड़ा था। मैं हमेशा मजाक में कहता हूं कि अगर 1993 या कसाब के समय जितना मीडिया होता, तो मैं पूरी दुनिया में मशहूर हो गया होता। लेकिन अच्छा ही है कि लोगों की याददाश्त कमजोर है। जितना कम याद रखें, उतनी कम चिंता।’

इतने बड़े-बड़े अपराधियों से आपका पाला पड़ा है। जान से मारने की धमकियां तो मिली ही होंगी! कितनी बार?

कई बार… लेकिन मैं उसे गिनता नहीं और न ही याद रखता हूं। मेरा जन्म हनुमान जयंती के दिन हुआ है मैं किसी से डरता नहीं। मेरा काम ही अपराधियों से पंगा लेने का है। उनके खिलाफ लड़ता हूं, तो एक्शन का रिएक्शन तो आएगा ही। मैं इसे गिनता नहीं। आप कोर्टरूम में केस को बहुत नाटकीय ढंग से लड़ते हैं। आपकी रणनीति क्या होती है?

सबने मान लिया है कि कोर्ट का माहौल गंभीर ही होना चाहिए। मैं हमेशा मानता हूं कि कोर्ट का माहौल जीवंत होना चाहिए। मैं जब भी केस शुरू करता हूं, तो संस्कृत के श्लोक से अपनी दलील शुरू करता हूं। जब कोई क्रूर अपराधी के खिलाफ केस हो, तो मैं कहता हूं:

‘तेऽमी मानुषराक्षसाः परहितं स्वार्थाय निघ्नन्ति ये ये तु घ्नन्ति निरर्थकं परहितं ते के न जानीमहे’ जो लोग अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को मार देते हैं, वे इनसान रूपी राक्षस हैं। और जो बिना स्वार्थ के दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं, उन्हें क्या कहें? मेरे पास शब्द नहीं हैं।

इससे फायदा यह होता है कि जज खुद थोड़ा हिल जाता है। मैं कोई भी दलील, सवाल या विरोध करता हूं, तो कुछ कहावत या श्लोक बोलता हूं, जिससे मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत फर्क पड़ता है। मैं मशीन की तरह रोजमर्रा का काम नहीं करता। यही कारण है कि लोगों को लगता है कि मैं मजाक करता हूं या ड्रामा करता हूं, लेकिन यह मेरी तकनीक है।

आपके हजारों केस में से सबसे यादगार केस कौन सा है, जिसमें आप संतुष्ट हुए?

‘रेणुका शिंदे केस’ मेरा सबसे यादगार केस है। घटना कोल्हापुर की थी। अंजनाबाई गावित नाम की महिला अपनी दो युवा बेटियों रेणुका और सीमा के साथ मिलकर 5 साल से छोटे बच्चों को किडनैप करती और क्रूरता से मार डालती। ये गरीब परिवारों के बच्चों को किडनैप कर उनके साथ लूटपाट करती थीं।

अगर पकड़ी जातीं, तो बच्चों को जोर से पटककर मार देती थीं। इससे लोग सोचते कि इन्होंने चोरी नहीं की होगी, क्योंकि कोई अपने बच्चों को मारता है क्या? इस तरह वे बच निकलती थीं, लेकिन बच्चे मर जाते थे।

मैं इस केस को सुप्रीम कोर्ट तक ले गया और तीनों को फांसी की सजा दिलवाई।

यह केस मेरे दिमाग में इसलिए बसा है, क्योंकि केस के बाद कोल्हापुर कोर्ट के सामने बहुत सारे बच्चे इकट्ठा हुए और उन्होंने मुझे खांड (बूरा) दी। उनका भाव था कि आपने इस राक्षसी को फांसी दिलाकर हमें बचाया। हमारे पास देने को कुछ नहीं, तो यह खांड स्वीकार करें।मेरे जीवन का यह सबसे यादगार किस्सा है। कोर्टरूम के अंदर या बाहर का कोई यादगार पल, जो आपको जीवनभर याद रहे?

कई केस में मुझे लोगों का ढेर सारा प्यार मिला। एक किस्सा सुनाता हूं…

प्रदीप जैन नाम के बिल्डर की हत्या के केस में मैंने अबू सलेम को उम्रकैद की सजा दिलवाई। अबू दिखने में स्मार्ट था, उसने एक्ट्रेस मोनिका बेदी से शादी की थी। लेकिन जब पहली बार ट्रायल के दौरान कोर्ट के बाहर वह मुझसे मिला, तो मैंने मजाक में हंसते हुए कहा, तेरे पिता वकील थे और तू ऐसा तुच्छ काम करता है? तुझे सजा तो मैं दिलाऊंगा, लेकिन अभी नहीं। पहले जेल में थोड़ी कसरत कर।

हर सुनवाई के दौरान मैं उससे बात करता था- जेल में क्या करता है? तबीयत कैसी है? कसरत करता है या नहीं? मैंने उसका केस अच्छे से लड़ा और उम्रकैद की सजा दिलवाई। लेकिन कुछ साल पहले जब वह जेल में बीमार था, तो उसका एक दोस्त कैदी मेरे पास उसका पत्र लेकर आया। मैंने पत्र पढ़ा, जिसमें अबू ने मेरी बहुत तारीफ की थी। पत्र को मैंने संभालकर रखा है।

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