छत्तीसगढ़ के रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में आज से दो दिवसीय जनजातीय गौरव दिवस का आयोजन किया गया है। जिसका सीएम विष्णुदेव साय ने शुभारंभ किया। इस आयोजन में देश के कई राज्यों के साथ पूर्वोत्तर राज्यों के कलाकार भी अपनी संस्कृति की झलक बिखेरेंगे।
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दरअसल, 14-15 नवंबर को आयोजित होने वाले कार्यक्रम में प्रस्तुति देने के लिए पूर्वोत्तर भारत के पांच राज्यों मेघालय, मिजोरम, असम, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के कलाकार रायपुर पहुंच चुके हैं। वहीं, रायपुर रेलवे स्टेशन पर कलाकारों का तिलक और माला पहनाकर स्वागत किया गया। आदिवासी लोक नृत्य महोत्सव में 21 राज्यों के 28 दल प्रस्तुति देंगे।
रायपुर रेलवे स्टेशन पर कलाकरों का स्वागत किया गया।
फसल कटाई के बाद गारो आदिवासी करते हैं वांगला-रुंगला नृत्य
जनजातीय गौरव दिवस पर प्रस्तुति देने मेघालय से 20 सदस्यों की टीम रायपुर आई है। यह दल गारो जनजाति के फसल कटाई के बाद वांगला-रुंगला लोक नृत्य प्रस्तुत करेंगी। इसके कलाकार मेघालय की राजधानी शिलांग से करीब 200 किलोमीटर दूर नॉर्थ कर्व हिल्स (North Curve Hills) से आए हैं।
टीम के मानसेन मोमिन ने बताया कि, वांगला गारो जनजाति का लोकप्रिय त्योहार है। यह जनजाति कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। फसल कटाई के बाद उर्वरता (Fertility) के देवता मिसी सालजोंग को धन्यवाद देने के लिए यह नृत्य करते हैं।
वे फसल उपलब्ध कराने के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं, उनकी पूजा और नृत्य कर प्रार्थना करते हैं और नई फसल का भोग लगाते हैं। देवता मिसी सालजोंग को धन्यवाद देने से पहले किसी भी कृषि उत्पाद का उपयोग नहीं किया जाता है।
वांगला-रुंगला आदिवासी लोक नृत्य में महिला और पुरुष दोनों हिस्सेदारी लेते हैं। पुरुष नर्तक अपना परंपरागत ढोल लेकर नृत्य करते हैं। जिसे दामा कहा जाता है। वांगला-रुंगला लोक नृत्य में नर्तकों का नेतृत्व करने वाले को ग्रिकगिपा या तोरेगिपा कहा जाता है। इसमें महिलाएं संगीत की धुन पर अपनी हाथ हिलाती हैं, जबकि पुरुष अपने परंपरागत ढोल को बजाकर नृत्य करते हैं।
जन जातीय गौरव दिवस में रायपुर में अगल-अगल संस्कृति की झलक बिखेरेंगी।
दुश्मनों पर जीत के जश्न का नृत्य है सोलकिया, मंत्रोच्चार जैसे स्वर संगीत के साथ होता है नृत्य
मिजोरम की राजधानी आईजोल से रायपुर पहुंची लोक नृत्य दल सोलकिया नृत्य की प्रस्तुति देगी। इसके 20 सदस्यों के दल में 11 पुरुष और 9 महिलाएं शामिल हैं। यह नृत्य मुख्यतः मिजोरम की मारा जनजाति करती है। ‘सोलकिया’ का अर्थ दुश्मन के कटे हुए सिर से है।
सोलकिया नृत्य मूल रूप से दुश्मनों पर जीत का जश्न मनाने के लिए किया जाता था। खासकर उस मौके पर जब विजेता दुश्मन का सिर ट्रॉफी के रूप में घर लाया जाता था। लेकिन अब यह सभी महत्वपूर्ण अवसरों पर मिजो समुदायों के पुरुषों और महिलाओं द्वारा किया जाता है।
मिजोरम के जोथमजामा ने बताया कि, सोलकिया नृत्य की शुरुआत पिवी और लाखेर समुदायों ने की थी। इस लोक नृत्य के साथ आने वाला स्वर संगीत गायन की तुलना में मंत्रोच्चार के जैसा ही है। ताल संगीत एक जोड़ी घड़ियों द्वारा प्रदान किया जाता है, जो एक दूसरे से बड़े होते हैं। जिन्हें डार्कहुआंग कहा जाता है। संगीत को बेहतर बनाने के लिए कई जोड़ी झांझ भी बजाए जाते हैं।
इस नृत्य को करने वाली मारा जनजाति के बारे में बताया कि, यह एक कुकी जनजाति है, जो मिजोरम की लुशाई पहाड़ियों और म्यांमार की चिन पहाड़ियों में रहती है। इन्हें लाखेर, शेंदु, मारिंग, ज़ु, त्लोसाई और खोंगज़ई नामों से भी जाना जाता है।