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2 घंटे पहले
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जिन घरों में भगवान की प्रतिमाएं और तस्वीरें होती हैं, वहां सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, ऐसी मान्यता है। इस मान्यता की वजह से ही घर में भगवान के लिए अलग से पूजन कक्ष बनाने की परंपरा है। घर में पूजन कक्ष किस दिशा में बनाना ज्यादा शुभ होता है, इस संबंध में वास्तु शास्त्र में कई नियम बताए गए हैं। वास्तु शास्त्र एक ऐसी विद्या है, जिसमें घर की स्थिति को शुभ बनाए रखने के लिए नियम बताए गए हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य और वास्तुविद् पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, घर में मंदिर या पूजा घर केवल एक पूजा स्थल नहीं होता, यह पूरे परिवार का आध्यात्मिक केंद्र होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में मंदिर की सही स्थिति और शुभ दिशा से सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का प्रवाह बना रहता है।
पूजा का स्थान: किस दिशा में बने तो ज्यादा शुभ?
- वास्तु शास्त्र के अनुसार, पूजा स्थान की दिशा बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह न केवल घर की ऊर्जा को प्रभावित करता है, बल्कि मानसिक शांति और आत्मिक आनंद में भी सहायक होती है।
- घर के मंदिर के लिए उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) को सबसे शुभ माना गया है। ये दिशा देवताओं का वास स्थल है और ध्यान-पूजन के लिए विशेष फलदायी मानी जाती है।
- शयनकक्ष, रसोई या शौचालय के पास मंदिर नहीं होना चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा फैलती है और पूजा-पाठ में एकाग्रता नहीं बन पाती है। ऐसी जगह पूजा करने का पूरा पुण्य भी नहीं मिलता है।
- दक्षिण दिशा में देवी-देवताओं की प्रतिमाएं रखने से बचना चाहिए, क्योंकि यह दिशा पितृलोक और यमराज की मानी जाती है। यहां केवल पितरों की तस्वीरें रखनी चाहिए।
- मंदिर ऐसी जगह बनाना चाहिए, जहां सूर्य की रोशनी पहुंचती है। मंदिर के आसपास पर्याप्त रोशनी रहनी चाहिए।
मंदिर की पवित्रता और सजावट: वास्तु के अनुसार ऐसी रखें व्यवस्था
- एक सुव्यवस्थित और पवित्र मंदिर न सिर्फ धार्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है, बल्कि घर की सुख-समृद्धि और सकारात्मकता को भी बढ़ाता है:
- मंदिर को हमेशा साफ-सुथरा और शांत वातावरण वाला बनाएं।
- केवल आवश्यक पूजन सामग्री ही रखें, अनावश्यक वस्तुएं मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा को कम करती हैं।
- सुबह-शाम विधिवत पूजा करें। यदि समयाभाव हो तो कम से कम एक दीपक अवश्य जलाएं, ये छोटा सा काम घर में सकारात्मकता बनाए रखेगा।
- पूजा में तांबे, पीतल, चांदी, या मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करें। स्टील, लोहे और एल्यूमीनियम से परहेज करें।
- मंदिर की दीवारों पर हल्के और शांत रंग जैसे पीला, नारंगी, नीला या सफेद रखें। सफेद पत्थर से बना मंदिर विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
- मंदिर में प्रवेश से पूर्व स्नान अथवा कम से कम हाथ-पैर धोने का नियम अपनाएं।
प्रतिमाएं और धार्मिक ग्रंथों की व्यवस्था
- मंदिर की आत्मा उसकी प्रतिमाएं होती हैं। इनके चयन और स्थान पर विशेष ध्यान देना चाहिए:
- मंदिर में छोटी प्रतिमाएं रखें, जो पीतल, चांदी, सोना, स्फटिक, पारद या पत्थर की बनी हों।
- खंडित मूर्तियां मंदिर में नहीं रखनी चाहिए। केवल खंडित शिवलिंग को रखा जा सकता है, क्योंकि यह शिव जी का निराकार और पूजनीय रूप माना जाता है।
- धार्मिक ग्रंथ, मंत्रों की पुस्तकें और पूजा विधियों से जुड़ी सामग्री भी उत्तर-पूर्व दिशा में ही रखें।
- घर के प्रवेश द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें, इससे घर में शुभता और सकारात्मकता बनी रहती है।
- यह भी ध्यान रखें कि मंदिर और शौचालय के दरवाजे आमने-सामने नहीं होने चाहिए, इससे वास्तु दोष उत्पन्न हो सकते हैं।
घर का मंदिर यानी एक आध्यात्मिक केंद्र
मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं होता, यह एक ऐसा स्थान है, जहां ध्यान और पूजा करने से श्रद्धा, ऊर्जा और आत्मिक शांति प्राप्त होती है। जब आप घर के मंदिर को वास्तु के अनुसार सही दिशा, सही सामग्री और सही नियमों के साथ बनाते हैं तो वह स्थान आपकी दैनिक जीवनशैली में एक शांति और संतुलन बनाने का काम करता है। एक दीपक से शुरू होने वाली साधना पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा भर देती है।