Today is the martyrdom day of Jhansi’s queen Laxmibai | झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस आज: अंग्रेजी हुकूमत के सबसे ताकतवर अफसर को कई बार मात दी, कूटनीति से जीता था ह्यूरोज – Jhansi News

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की बात हो तो रानी लक्ष्मीबाई का जिक्र जरूर होता है। दोनों हाथों में तलवार, मुंह में घोड़े की लगाम और पीठ पर अपने बेटे को बांधकर जब लक्ष्मीबाई मैदान में उतरीं तो अंग्रेजों ने साक्षात चंडी का रूप देखा। अंग्रेजों से लोहा लेते ह

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उनके शौर्य से अंग्रेजी हुकूमत वाकिफ थी, इसलिए युद्व में सबसे ताकतवर अफसर जनरल ह्यूरोज को उतारा गया था। मगर, 1857 के संग्राम में ह्यूरोज को भी कई मोर्चों पर रानी ने पीछे धकेल दिया। अंत में कूटनीति का सहारा लेकर जनरल ह्यूरोज ने युद्व में फतह हासिल कर ली थी। लेकिन रानी के बलियान के बाद अंग्रेजी अफसर ने भी उनकी बहादुरी को सलाम किया था।

बचपन से अस्त्र-शस्त्रों चलाना सीखा

रानी लक्ष्मीबाई ने बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र चलाना सीख लिया था। वे बाल्यकाल में ही घुड़सवारी में भी निपुण हो गईं थीं। जब झांसी की रानी बनी तो उन्होंने कुशल सैन्य नेतृत्व का भी परिचय दे दिया था। उन दिनों उनके शौर्य की गूंज ब्रिटेन तक में गूंज रही थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंकने के बाद अंग्रेजी हुकूमत भी सांसत में आ गई थी।

तब ब्रिटिश सरकार ने रानी से युद्ध के लिए अपने सबसे ताकतवर अफसर जनरल ह्यूरोज को भेजा था। 1857 के गदर के दौरान ह्यूरोज वापस ब्रिटेन जाने वाला था। इसके लिए वह पुणे पहुंच गया था। तब गवर्नर जनरल ने उसे झांसी पहुंचने का आदेश दिया था। हालांकि वह यहां आने को तैयार नहीं था।

तब गवर्नर जनरल ने ह्यूरोज से कहा था कि अगर तुम झांसी नहीं गए तो मुझे इंग्लैंड वापस लौटना पड़ेगा। इसके बाद ह्यूरोज ने अपनी विशाल सेना के साथ झांसी में डेरा डाल लिया था। रानी ने ह्यूरोज का डटकर मुकाबला किया था। युद्ध के दौरान एक बार तो वह घोड़े से गिरकर मैदान तक छोड़कर भाग गया था।

रानी भारी पड़ी तो कूटनीति का सहारा लिया

इतिहासकार और पूर्व आईएएस डा. पीके अग्रवाल बताते हैं कि जनरल ह्यूरोज ब्रिटिश सेना का सबसे ताकतवर अफसर हुआ करता था। अफ्रीका और दुनिया के कई देशों में उसने अंग्रेजी हुकूमत को कायम किया था।

उसका युद्ध में उतरना जीत की पक्की गारंटी मानी जाती थी। उसका नाम सुनते ही शत्रु कांपने लगते थे। लेकिन, झांसी में ह्यूरोज को रानी से कड़ा मुकाबला करना पड़ गया था। रानी लक्ष्मीबाई ह्यूरोज पर भारी पड़ रहीं थीं, ऐसे में उसने कूटनीति का सहारा लेते हुए रानी खेमे के कुछ लोगों को अपने पाले में खड़ा कर लिया था।

अपनों की गद्दारी की वजह से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला बुझ गई थी। 18 जून 1858 को रानी के बलिदान के बाद ह्यूरोज ने रानी को सबसे बहादुर और सर्वोत्तम सैन्य नेत्री बताया था।

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