5 घंटे पहले
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आज (23 अक्टूबर) भाई दूज है, इसे भ्रातृ द्वितीया भी कहा जाता है, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। ये दीपोत्सव की अंतिम तिथि है और रक्षाबंधन के बाद भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करने वाला ये दूसरा पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सौभाग्य के लिए प्रार्थना करती हैं और तिलक कर उन्हें भोजन कराती हैं।
यमराज और यमुना से जुड़ी है भाई दूज की परंपरा
भाई दूज की मान्यता के बारे में उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित मनीष शर्मा कहते हैं कि ये पर्व यमराज और यमुना के प्रेमपूर्ण भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित है। यमराज और यमुना सूर्य देव और संज्ञा की संतानें हैं। यमराज जब यमपुरी बसाकर अपने कार्यों में व्यस्त हो गए, तो वे यमुना से लंबे समय तक नहीं मिल पाए।
यमुना ने कई बार यमराज से आग्रह किया कि वे उनके घर आकर भोजन करें, लेकिन समय अभाव के कारण यमराज नहीं जा सके।
अंततः, यमुना ने वचन ले लिया कि एक दिन वे अवश्य आएंगे। जब यमराज यमुना के घर आए, उस दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि थी। यमुना ने उनका प्रेमपूर्वक सत्कार किया और स्वादिष्ट भोजन कराया। यमराज बहन के इस स्नेह और आतिथ्य से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने यमुना को वर मांगने को कहा।
यमुना ने वर मांगा कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर भोजन करेगा, उसे लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सौभाग्य प्राप्त होगा। यमराज ने यह वरदान स्वीकार किया। तभी से यह परंपरा आरंभ हुई और हर वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज मनाया जाने लगा।
ऐसे मना सकते हैं भाई दूज
भाई दूज पर बहनें अपने भाई को तिलक करती हैं, उन्हें मिठाई खिलाकर भोजन कराती हैं और उनकी कुशलता के लिए प्रार्थना करती हैं। इस दिन यमराज और चित्रगुप्त की पूजा का विशेष महत्व होता है।
इस दिन दक्षिण दिशा में दीपक जलाकर यमराज और चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए। ये दीपक यमराज को प्रसन्न करता है और अकाल मृत्यु से रक्षा करता है।
भाई दूज पर बहनें यह प्रार्थना भी करती हैं कि उनके भाई को भी उन आठ चिरंजीवी – मार्कण्डेय, हनुमान, बलि, परशुराम, व्यास, विभीषण, कृपाचार्य और अश्वत्थामा की तरह चिरंजीव जीवन प्राप्त हो।
यमुना स्नान की परंपरा
भाई दूज के दिन विशेष रूप से मथुरा और ब्रज क्षेत्र में यमुना नदी में स्नान करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भाई-बहन यमुना में स्नान करते हैं तो उनका आपसी स्नेह अटूट रहता है और दोनों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
जो लोग यमुना नदी तक नहीं पहुंच सकते, वे घर पर जल में गंगाजल और यमुना जल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। स्नान करते समय पवित्र नदियों और तीर्थों का ध्यान करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है।
