Tiger cubs’ farewell to the jungle is successful | बाघ शावकों की जंगल विदाई सफल: पहली बार; बाघ शावकों को चिड़ियाघर में 22 महीने रखा, फिर जंगल में छोड़ा – Kota News


मुकंदरा में रिलीज की गई मादा शावक।

राजस्थान के अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क से बाघ शावकों की जंगल विदाई सफल रही। दोनों 22 महीने इस चिड़ियाघर में रहे। नर शावक को रामगढ़ विषधारी और मादा को मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में रिलीज कर दिया गया। इन दोनों बाघों ने खुले जंगलों में शिकार भी कर लिए। ढाई म

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किसी जू से जंगल में ‘बाघों’ की यह शिफ्टिंग देश के वाइल्ड लाइफ इतिहास में रोल मॉडल बन गई है। इसे संभव किया है मुकंदरा रिजर्व के सीनियर वेटरनरी डॉ. तेजेंद्र सिंह रियाड़ ने। इसमें उनकी अपनी दिनचर्या बदल चुकी थी। रोज ऑफिस से पहले अभेड़ा जाते। कहीं भी रहें, सीसीटीवी के जरिए निगरानी रखते। ‘भास्कर ने’ इस शिफ्टिंग की कहानी जानी।

जू से जंगल की ओर… पहले ही दिन से तय था कि इन्हें प्राकृतिक आवास में भेजना है

ये कहां से और कब अभेड़ा लाए गए? रणथंभौर में इनकी मां बाघिन टी-114 की मौत हो गई थी। तब ये शावक ढाई महीने के थे। इन्हें सर्वाइव करवाकर इनके प्राकृतिक आवास में लौटाने की चुनौती हमें मिली। तत्कालीन सीसीएफ शारदा प्रताप सिंह ने यह चुनौती स्वीकार ली। 1 फरवरी 2023 को दोनों शावक अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क लाए गए।

अभेड़ा में इन्हें कैसे रखा गया? इनके लिए जो कुछ करना था, हमें करना था। क्योंकि पहला मौका था। यह भी कह दिया गया था कि साधन-संसाधनों की चिंता नहीं करनी है। बाघ के बच्चों को पालना सीखने की न कोई किताब है न विशेषज्ञ था, जिससे सलाह लेते। हमने अपने हिसाब से ग्रीन नेट वाला कराल बनाया। इसमें दो नाइट शेल्टर 30X30 वर्ग फीट के बनाए। हमारे केयरटेकर इनमें खाना-पानी ऐसे देते कि वे शावकों को नजर नहीं आते। शिकार के बाद बाघ को पानी चाहिए। यह नेचर है। बाघ पानी में अठखेलियां करते हैं। इसलिए कटले में पौंड बनवाया।

बाघ के शावकों को आहार क्या देते थे? अमूमन ढाई महीने के बाघ शावकों को मां मांस के टुकड़े चबाकर खिलाने लगती है। हमने मांस ट्रे में रखना शुरू कर दिया। 40 दिन बाद इन्हें जिंदा ब्रायलर दिया। हैरानी कि उसका झपटकर शिकार कर लिया। दूध की पोषकता के लिए पाड़े की कलेजी पेटलेक लगाकर ट्रे में रखते।

कभी किसी ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ी? संक्रमण से बचाने काे 25 फरवरी, 27 मार्च, 12 मई को वैक्सीन लगाई। तब मैं केमोफ्लेज (बाघ जैसी ड्रेस) पहनकर भीतर जाता। वे मुझे देख गुर्राते, मैं भी ऐसा ही नाटक करता और वैक्सीन लगाता।

शावकों का वजन कैसे लेते? वजन करने के लिए कराल (पिंजरे) में इलेक्ट्रिक कांटा लगाया था। इसे तीन ​तरफ से कवर किया था। कभी भी ये कांटे पर आ सकते थे, इसलिए सीसीटीवी कैमरे से नजर रखते।

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