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14 मिनट पहलेलेखक: वीरेंद्र मिश्र
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हिंदी सिनेमा के फेमस म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद साहब की आज 18वीं डेथ एनिवर्सरी है। नौशाद साहब का जन्म 25 दिसंबर 1919 को लखनऊ में हुआ था और 5 मई 2006 को हार्ट अटैक से 86 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने केवल 67 फिल्मों में संगीत दिया, जिसे आज भी याद किया जाता है।
आज नौशाद साहब की 18वीं डेथ एनिवर्सरी पर जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ खास किस्से-
पिता ने शर्त रखी, या तो मुझे चुनो या फिर संगीत को
नौशाद के लिए म्यूजिक डायरेक्टर बनना इतना भी आसान नहीं था। उनके पिता वाहिद अली कचहरी में क्लर्क थे। उन्हें म्यूजिक से नफरत थी। जबकि नौशाद के लिए म्यूजिक ही जिंदगी थी। वो पिता से छुप-छुपकर म्यूजिक सीखते थे। एक दिन पिता ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया। उन्होंने नौशाद के सामने शर्त रखी कि या तो मुझे चुनो या फिर म्यूजिक को। नौशाद ने म्यूजिक को चुना और हारमोनियम लेकर 1937 में 19 साल की उम्र में मुंबई अपनी किस्मत आजमाने आ गए।
मुंबई आने के लिए दोस्त से 25 रुपए उधार लिए
लखनऊ से मुंबई आने के लिए नौशाद की मदद उनके एक दोस्त ने की। अपने एक दोस्त से नौशाद 25 रुपए उधार लेकर मुंबई के लिए निकल पड़े। यहां आने के बाद नौशाद को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कुछ दिन अपने एक परिचित के पास रुके, उसके बाद वे दादर में ब्रॉडवे थिएटर के सामने रहने लगे।
उनकी जिंदगी में एक ऐसा वक्त भी आया जब वे फुटपाथ पर भी सोए। उन्होंने सबसे पहले म्यूजिक डायरेक्टर उस्ताद झंडे खान को असिस्ट किया था। इसके लिए उन्हें 40 रुपए महीने मिलते थे।
पांच साल के बाद मिला पहला ब्रेक
म्यूजिक डायरेक्टर उस्ताद झंडे खान और खेमचंद्र प्रकाश को असिस्ट करने के बाद नौशाद को पहली बार म्यूजिक डायरेक्टर के तौर पर साल 1942 में आई फिल्म ‘नई दुनिया’ में क्रेडिट मिला। यह फिल्म कुछ खास सफल नहीं रही, लेकिन साल 1944 में आई फिल्म ‘रतन’ ने नौशाद को म्यूजिक डायरेक्टर के तौर पर स्थापित कर दिया।
इस फिल्म के गीत ‘अंखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना’ की सफलता के बाद नौशाद 25 हजार रुपए पारिश्रमिक के तौर पर लेने लगे। इस फिल्म के बाद अगले दो दशक तक नौशाद की तमाम फिल्मों ने सिल्वर, गोल्डन और डायमंड जुबली मनाई।
शादी करने के लिए बनना पड़ा दर्जी
उन दिनों फिल्मों में काम करने वालों को अच्छे नजरिए से नहीं देखा जाता था। जब भी नौशाद की शादी के लिए रिश्ते आते तो लोग फिल्मी जगत से उनके जुड़े होने की वजह से शादी से इनकार कर देते थे। इस वजह से नौशाद के पिता ने लड़की वालों को यह बताना शुरू कर दिया कि वह एक दर्जी हैं। नौशाद भी खुद को दर्जी बताते हुए कहते कि वह अचकन और कुर्ता काफी अच्छी तरीके से सिल लेते हैं। एक झूठ की बदौलत नौशाद की शादी हो गई।
ससुर ने कहा कि जिसने गीत बनाया है, उसे जूतों से पीटना चाहिए
जब नौशाद की शादी हो रही थी, उसी दौरान लाउडस्पीकर पर उन्हीं की फिल्म ‘रतन’ का गाना ‘अखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना’ बज रहा था। इस गाने को सुन उनके ससुर ने कहा कि ऐसे गाने ने समाज को बर्बाद कर दिया है, जिसने भी इस गाने को बनाया है उसे जूतों से पीटना चाहिए।
अपने ससुर की यह बात सुन उस समय नौशाद काफी डर गए थे। शादी होने के बाद जब सभी को उनकी असलियत पता चली, तब तक नौशाद देश का एक बड़ा और जाना पहचाना नाम बन चुके थे।
नोटो से भरा ब्रीफकेस खिड़की के बाहर फेंक दिया
‘मुगले-ए-आजम’ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास की कल्ट मूवी मानी जाती है। फिल्म के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर के. आसिफ इस फिल्म के लिए यादगार म्यूजिक चाह रहे थे। वे नौशाद के पास गए और बेहतरीन म्यूजिक के लिए नोटो से भरा ब्रीफकेस उन्हें थमा दिया।
नौशाद को के. आसिफ की यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई और उन्होंने नोटों से भरा ब्रीफकेस खिड़की के बाहर फेंक दिया। नौशाद ने कहा- आसिफ, यादगार म्यूजिक नोटों से नहीं आता। के. आसिफ को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने नौशाद साहब से माफी मांगी, तब नौशाद फिल्म में संगीत देने के लिए राजी हुए।
बड़े गुलाम अली साहब से 25 हजार में गवाया गीत
नौशाद साहब उस जमाने के तानसेन कहे जाने वाले बड़े गुलाम अली साहब की आवाज में एक गाना रिकॉर्ड करना चाह रहे थे। बड़े गुलाम अली साहब ने ये कहकर मना कर दिया कि वह फिल्मों के लिए नहीं गाते। नौशाद के कहने पर के. आसिफ अपनी जिद पर अड़ गए कि गाना तो उनकी ही आवाज में रिकॉर्ड होगा। के. आसिफ को मना करने के लिए बड़े गुलाम अली साहब ने यूं ही कह दिया कि वह एक गाने के 25 हजार रुपए लेंगे।
उस दौर में लता मंगेशकर और रफी साहब जैसे गायकों को एक गाने के लिए सिर्फ 300 से 400 रुपए मिलते थे। के. आसिफ 25 हजार रुपए देने के लिए तैयार हो गए। नौशाद साहब ने बड़े गुलाम अली साहब की आवाज में फिल्म ‘मुगले-ए-आजम’ का गीत ‘प्रेम जोगन बनके’ रिकॉर्ड किया। बड़े गुलाम अली साहब की यह पहली और आखिरी फिल्म थी।
एक्सपेरिमेंट के लिए लता मंगेशकर से बाथरूम में गाना गवाया
नौशाद साहब को संगीत में एक्सपेरिमेंट करना बेहद पसंद था। उन्होंने ‘बैजू बावरा’ में क्लासिकल रागों का यूज किया था, तो वहीं, ‘मुगले- ए- आजम’ के गीत ‘प्यार किया तो डरना क्या’ के लिए भी एक एक्सपेरिमेंट किया। दरअसल, इस गाने में गूंज की जरूरत थी।
उस समय ऐसी तकनीक और ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स नहीं थे जिससे आवाज में गूंज लाई जा सके। इसके लिए नौशाद साहब ने लता मंगेशकर से यह गाना बाथरूम में गवाया। इस गीत ने खूब धूम मचाई थी और आज भी लोगों के दिल और दिमाग पर यह गीत छाया हुआ है।
मोहम्मद रफी के उच्चारण को ठीक करवाने के लिए बनारस से संस्कृत के पंडितों को बुलाया
फिल्म ‘बैजू बावरा’ का गीत ‘मन तड़पत हरी दर्शन को’ नौशाद साहब मोहम्मद रफी की आवाज में रिकॉर्ड कर रहे थे, लेकिन गाने में कुछ संस्कृत शब्दों का उच्चारण मोहम्मद रफी ठीक से नहीं कर पा रहे थे। नौशाद साहब ने बनारस से संस्कृत के पंडितों को बुलावाया। उन्होंने सही उच्चारण करने में मोहम्मद रफी की मदद की, तब जाकर नौशाद साहब ने रफी की आवाज में फाइनल रिकॉर्डिंग की। आज भी यह गीत दुनिया भर के मंदिरों में गाया और सुना जाता है।
के एल सहगल की गलतफहमी को दूर किया
के एल सहगल बिना शराब पिए गाना नहीं गाते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि बिना शराब के वो बेसुरे हो जाते हैं। नौशाद साहब ने उनकी इस गलतफहमी को दूर किया। फिल्म ‘शाहजहां’ का गीत ‘जब दिल ही टूट गया’ नौशाद ने उनसे बिना शराब पिए गवाया।
इस गीत को रिकॉर्ड करने के बाद सहगल की जिद पर वही गाना शराब पिलाकर गवाया। बिना पिए वह ज्यादा अच्छा गा रहे थे। उन्होंने नौशाद साहब से कहा, ‘आप मेरी जिंदगी में पहले क्यों नहीं आए? अब तो बहुत देर हो गई।’
मदर इंडिया के गाने की शूटिंग के दौरान हो गई थी चूक
फिल्म ‘मदर इंडिया’ के गाने ‘दुख भरे दिन बीते रे भैया’ की शूटिंग के दौरान भारी चूक हो गई थी। इस गाने को नौशाद साहब ने मन्ना डे, मोहम्मद रफी, शमशाद बेगम और आशा भोसले की आवाज में रिकॉर्ड किया था। फिल्म में यह गीत नरगिस और राजकुमार पर फिल्माया गया था।
गाने की शूटिंग के बाद जब महबूब खान ने नौशाद को रश फुटेज दिखाया तो उन्होंने अपना सिर पकड़ लिया। दरअसल, शॉट में एक किरदार पर दो अलग-अलग गायकों की आवाज सुनाई दे रही थी। फ्रेम में राजकुमार हैं, मगर गाने की एक पंक्ति के आधे हिस्से में मन्ना डे की आवाज तो दूसरे आधे हिस्से में मोहम्मद रफी की आवाज थी।
इसी तरह जब नरगिस फ्रेम में आती हैं तो आधी पंक्ति में शमशाद बेगम और दूसरी आधी पंक्ति में आशा भोसले की आवाज थी। आम तौर पर एक किरदार के लिए किसी एक गायक की आवाज का ही इस्तेमाल किया जाता है। जब नौशाद साहब ने महबूब खान का ध्यान इस ओर दिलाया तो वे परेशान हो गए। उन्होंने कहा कि बहुत पैसा और समय खर्च हुआ है, वो दोबारा शूट नहीं कर सकते। तब नौशाद साहब ने कहा कि इस गाने में इतने जज्बात हैं कि किसी का ध्यान इस चूक पर नहीं जाएगा और वैसा ही हुआ।