Theatre Festival Rajarangam begins at Jawahar Kala Kendra | जवाहर कला केन्द्र में थिएटर फेस्टिवल राजरंगम का आगाज: चन्द्रदीप हाड़ा के निर्देशन में ‘कालपुरुष:क्रांतिकारी वीर सावरकर’ नाटक का मंचन, दर्शकों से मिली तालियां – Jaipur News

स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को सलाम करने के साथ 7वें राजरंगम् (राजस्थान रंग महोत्सव) का असरदार तरीके से आगाज हुआ।

स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को सलाम करने के साथ 7वें राजरंगम् (राजस्थान रंग महोत्सव) का असरदार तरीके से आगाज हुआ। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार और एक्टर्स थिएटर एट राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में 5 दिवसीय महोत्सव का आयोजन जवाहर कला केन्द्र में क

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नाटक 'कालपुरुष:क्रांतिकारी वीर सावरकर' का मंचन किया गया। जिसकी कहानी जयवर्धन ने लिखी है।

नाटक ‘कालपुरुष:क्रांतिकारी वीर सावरकर’ का मंचन किया गया। जिसकी कहानी जयवर्धन ने लिखी है।

‘सावरकर माने तेज, त्याग, तप, तर्क, तीर, तलवार’, पर्दा उठता है और अटल बिहारी वाजपेयी की यह पंक्तियां सभागार में गूंजती है। ‘जो ज्योत जलाई क्रांति की वो ज्योत नहीं बुझने देंगे, क्रांति के ये अमरदूत अपना युद्ध न रुकने देंगे’ सावरकर अपने साथियों के साथ भारत को स्वतंत्र कराने की शपथ लेते हैं। इसी के साथ नाटक आगे बढ़ता है। अभिनव भारत संगठन बनाकर सावरकर विदेशी कपड़ों की होली जलाते हैं, यह मुहिम बाल गंगाधर जैसे क्रांतिकारी को भी प्रभावित करती है, सावरकर का नाम पूरे देश में गूंज उठता है। अपने भाई को भारत में क्रांति की मशाल थमाकर सावरकर लंदन लॉ करने के लिए चले जाते हैं।

यहां इंडियन हाउस में भी उनका आंदोलन जारी रहता है। सावरकर इंडियन हाउस में 1857 की क्रांति की स्वर्णिम उत्सव मनाते हैं। लंदन में फ्री इंडिया सोसाइटी संस्था के बैनर तले सावरकर सभी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। ब्रिटिश सरकार सावरकर को कैद कर भारत वापस भेज देती है। वापसी के समय फ्रांस में सावरकर अंग्रेजों को चकमा देकर जहाज से फरार हो जाते हैं। उन्हें फिर पकड़ा जाता है और भारत ले जाकर दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है।

ब्रिटिश सरकार सावरकर को कैद कर भारत वापस भेज देती है।

ब्रिटिश सरकार सावरकर को कैद कर भारत वापस भेज देती है।

सावरकर के जिंदगी में यातनाओं का दौर शुरू होता है लेकिन उनके मन की आग का दमन नहीं होता। सावरकर जेल से बाहर आकर हिंदू समाज की जागृति में लग जाते हैं। भारत को आजादी मिलती है लेकिन भारत के विभाजन की बात सावरकर को जीवन भर खलती रहती है। ‘काल स्वयं मुझसे डरा है मैं काल से नहीं’ साहसी सावरकर अंत में मौत की देवी का आह्वान करते हैं। नाटक में सावरकर की तथाकथित माफी का भी खंडन किया जाता है कि कैसे तथ्यों को तोड़ मरोड़कर उनके खिलाफ उपयोग किया गया।

नाटक में सावरकर के साथ-साथ वीर शिवाजी, चापेकर बंधु, प्रफुल्ल चंद चाकी, खुदीराम बोस, मदन लाल ढींगरा और सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान को भी याद किया गया। निर्देशक ने लंबी रिसर्च के बाद नाटक में बेहतर विजुअल और ऑडियो प्रेजेंटेशन के साथ नाटक प्रस्तुत किया।

निर्देशक डॉ. चन्द्रदीप हाडा ने वीर सावरकर की भूमिका निभाई। अन्य कलाकारों में मोनिका भार्गव सिंह, दिलीप सिंह, देवांश गोधा, सुरूची शर्मा, देवेंद्र सिंह शेखावत, प्रकाश चन्द्र सैनी, संजय व्यास, नितेश कुमार जोसफ, लक्ष्य सिंह/प्रियंक चौधरी, घनश्याम प्रजापत, अंकित सिंह, मंजीत गुर्जर, राकेश चौधरी, कृष्ण शर्मा, भूषण शर्मा, विपिन राय मिश्रा, हिना केसवानी शामिल है। प्रकाश परिकल्पना पवन शर्मा, चित्र निर्माण संयोजक संदीप महेन्द्र, चित्रकार सावित्री शर्मा, वॉइस ओवर गौरव शर्मा, वीडियो ओवर अंकित जैन, संगीत व वीडियो संचालन शुभम मीना, सार्थिका माथुर, कृष्ण शर्मा, वस्त्र निर्माण मनसुख लाल, रूप-सज्जा संजय सेन, सामग्री व्यवस्था देवेन्द्र सिंह, दिलीप सिंह, नितेश कुमार, अंकित सिंह, मंजीत गुर्जर ने संभाली। लक्ष्य सिंह प्रस्तुति संयोजक, हिना केसवानी सहायक निर्देशिका और मोनिका भार्गव सह निर्देशिका रही।

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