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- The Tradition Of Taking A Resolution At The Beginning Of The Puja, Sankalp In Puja, Significance Of Sankalp In Hindu Worship, Puja Vidhi
16 मिनट पहले
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पूजा-पाठ की शुरुआत में सबसे पहले संकल्प लेने की परंपरा है। संकल्प लेते समय हथेली में जल, चावल और फूल रखे जाते हैं और फिर भगवान का ध्यान करते हुए पूजा करने का संकल्प लिया जाता है। भक्त जिस मनोकामना की पूर्ति के लिए पूजा कर रहा है, उस मनोकामना का भी ध्यान संकल्प के साथ करना चाहिए।
संकल्प के माध्यम से भक्त मन, वचन और कर्म से भगवान के प्रति आस्था प्रकट करता है। भक्त भगवान से अपनी मनोकामना कहता है और उसे पूरी करने के लिए प्रार्थना करता है। संकल्प का शाब्दिक अर्थ है कोई काम करने का निश्चय करना। जब हम पूजा में संकल्प लेते हैं तो इसका भाव ये होता है कि हम भगवान की पूजा करने का निश्चय कर रहे हैं और यह तय कर रहे हैं कि किसी भी स्थिति में पूजा अधूरी नहीं छोड़ेंगे।
संकल्प से जुड़ी मान्यताएं
- संकल्प प्रथम पूज्य भगवान गणेश के सामने लेना चाहिए। संकल्प में अपना नाम, नगर, गांव, गोत्र, तिथि, वार भी बोला जाता है।
- इस परंपरा को निभाने से पूजा बिना किसी बाधा के पूरी हो जाती है, ऐसी मान्यता है।
- संकल्प के बाद ही गणपति पूजन होता है और फिर हम जो पूजा करना चाहते हैं, वह शुरू होती है।
- संकल्प के बिना के किए गए पूजा-पाठ अधूरे माने जाते हैं। संकल्प लेने के साथ विधिवत पूजा शुरू होती है। ये पूजा का पहला चरण है।
- संकल्प लेने के बाद हमारा मन पूजा में लग जाता है। पूजा करते समय एकाग्रता बनी रहती है। भक्त अनुशासन में रहकर पूजा करता है।
ये हैं संकल्प से जुड़ी कथाएं
पौराणिक कथा के मुताबिक, राजा पृथु ने भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त करने के लिए यज्ञ किया था। यज्ञ से पहले उन्होंने संकल्प लिया था कि उनकी ये पूजा केवल प्रजा की भलाई के लिए की जा रही है। राजा पृथु के संकल्प और पूजा से पृथ्वी पर सुख-शांति स्थापित हुई। राजा पृथु के नाम पर ही धरती को पृथ्वी कहा जाता है।
रामायण में श्रीराम ने रावण का वध करने से पहले परमात्मा की कृपा पाने के लिए यज्ञ किया था। यज्ञ की शुरुआत में श्रीराम ने संकल्प लिया था कि ये यज्ञ धर्म की रक्षा के लिए किया जा रहा है। इस यज्ञ के शुभ फल से रावण जैसे अधर्मी का अंत हो।
महाभारत में युद्ध से पहले अर्जुन को भ्रम हो गया था और उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा था कि मैं युद्ध ही नहीं करना चाहता। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन ने भगवद्गीता का उपदेश दिया। श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन ने संकल्प लिया था कि वे धर्म के मार्ग पर चलेंगे और युद्ध पूरी ईमानदारी से करेंगे। इस संकल्प के बाद ही अर्जुन ने पूरी शक्ति के साथ युद्ध किया था।
इस परंपरा से बढ़ती है हमारी संकल्प शक्ति
पूजा की शुरुआत में संकल्प लेने से हमारी संकल्प शक्ति बढ़ती है। इस पंरपरा की वजह से व्यक्ति के मन अपने संकल्पों को पूरा करने का भाव जागृत होता है। हमने जो लक्ष्य तय किए हैं, उन्हें पूरा करने के लिए हमारा संकल्प मजबूत होता है। मजबूत संकल्प के साथ किए गए कामों में सफलता जरूर मिलती है।