ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में मांग की गई है कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से
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शुक्रवार को जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा। कोर्ट ने पूछा- जब अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जा रहा है, तो ओबीसी वर्ग को ऐसा आरक्षण क्यों नहीं दिया जा रहा?
हलफनामे में सरकार ने बताया प्रदेश में OBC 51%
- याचिका में मप्र आरक्षण अधिनियम, 1994 की धारा 4(2) को असंवैधानिक बताया गया है और कहा गया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करती है।
- वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह ने तर्क दिया कि वर्तमान में मप्र में एससी वर्ग को 16%, एसटी वर्ग को 20%, जबकि ओबीसी वर्ग को केवल 27% आरक्षण दिया गया है।
- सरकार के हलफनामे के अनुसार, मप्र में ओबीसी आबादी 51% है। 2011 की जनगणना के अनुसार एससी की आबादी 15.6%, एसटी की 21.01% और ओबीसी की 50.01% है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि जब एससी-एसटी को आबादी के अनुपात में आरक्षण मिला है, तो ओबीसी को इससे वंचित रखना समानता के अधिकार (धारा 14) का उल्लंघन है।
87:13 फॉर्मूले से 1 लाख पद खाली
मप्र सरकार ने 87:13 फॉर्मूला लागू किया है, जिससे 1.04 लाख पद खाली हैं और 8 लाख उम्मीदवारों की नियुक्ति अटकी है। ओबीसी आरक्षण 27% करने पर कोर्ट की रोक है, क्योंकि सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन का सर्वे अधूरा है। सुप्रीम कोर्ट अब डेटा की वैधता पर विचार करेगा।