महराजगंज से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जिसमें बेलवा खुर्द निवासी राकेश गुप्ता (42) ने आरोप लगाया है कि उनके छोटे भाई ने उन्हें कागजों पर मृत घोषित कर उनकी सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया है। इस विवादित मामले ने अब राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में
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राकेश गुप्ता, जो पिछले दस साल से लुधियाना में काम कर रहे थे, जब गांव लौटे तो उन्हें अपने माता-पिता की मृत्यु की जानकारी मिली। इसके साथ ही, उन्हें यह भी पता चला कि उनके छोटे भाई ने उन्हें परिवार रजिस्टर में मृत घोषित कर दिया है और सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया है। राकेश ने बताया कि जब उन्होंने घर जाने की कोशिश की, तो छोटे भाई ने उन्हें धक्के देकर बाहर निकाल दिया।
खुद को जिंदा साबित करने के लिए प्रशासनिक दफ्तरों में कर रहे भाग-दौड़
वर्तमान में, राकेश अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ शाहपुर इलाके में संगम चौराहा स्थित मानस विहार कॉलोनी के पास एक झोपड़ी में रह रहे हैं। वह मेहनत-मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। जब भी उन्हें समय मिलता है, वह प्रशासनिक दफ्तरों में खुद को जिंदा साबित करने के लिए दौड़ते रहते हैं, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगती है।
दरअसल, राकेश 1997 में 15 साल की उम्र में लुधियाना गए थे। वहां से वह हर महीने घर पैसे भेजते रहे। तीन साल बाद घर लौटे तो गवना हुआ, लेकिन बाद में वापस लुधियाना चले गए। दस साल बाद जब वह गांव लौटे, तो उनके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी थी और छोटे भाई ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया।
मुख्यमंत्री दरबार से लेकर स्थानीय प्रशासन तक लगाई न्याय की गुहार
राकेश ने स्थानीय प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार तक न्याय की गुहार लगाई है। 18 जून को मुख्यमंत्री के जनता दर्शन में उन्होंने अपनी प्रार्थना प्रस्तुत की, जिसके बाद वीडियो और लेखपाल ने गांव जाकर जांच भी की, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है।
राकेश के अनुसार, उनके मामा, जो होमगार्ड हैं, छोटे भाई के साथ मिलकर उन्हें दो साल पहले धोखाधड़ी के आरोप में जेल भी भिजवा चुके हैं। 6 महीने बाद जेल से छूटे, लेकिन सरकारी दफ्तरों में उनकी समस्याओं का समाधान अभी भी लंबित है।
राकेश गुप्ता की पीड़ा ने कानून और व्यवस्था की खामियों को किया उजागर
इस संपूर्ण मामले ने स्थानीय और प्रशासनिक स्तर पर सवाल उठाए हैं कि कैसे एक व्यक्ति को कागज पर मृत घोषित कर उसकी सम्पत्ति पर कब्जा किया जा सकता है और उसके खिलाफ न्याय की प्रक्रिया इतनी धीमी क्यों है। राकेश गुप्ता की इस पीड़ा ने साबित कर दिया है कि कानून और व्यवस्था की खामियों की वजह से आम आदमी किस हद तक परेशान हो सकता है।