रात करीब 9 बजे भोपाल से निकला कचरा सुबह करीब 4:20 बजे पीथमपुर पहुंचा था।
2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को हुए गैस कांड के 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का 358 मीट्रिक टन कचरा 1 जनवरी 2025 को भोपाल से बाहर निकाला गया। इसे 12 कंटेनरों में भरकर 250 किमी लंबे ग्रीन कॉरिडोर से पीथमपुर के रामकी एनवायरो इंडस्ट्रीज में भे
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रात करीब 9 बजे भोपाल से निकला काफिला, सुबह करीब 4:20 बजे पीथमपुर पहुंचा। इस कचरे को जलाने के लिए भी काफी तैयारी की गई है। 1200 डिग्री की बंद भट्टी में कचरा जलाया जाएगा। इसकी राख को भी वाटरप्रूफ थैली में रखा जाएगा।
इस कचरे को लेकर भोपाल से लेकर पीथमपुर तक लोगों के मन में कई सवाल हैं। मसलन- ये कचरा अब भी कितना जहरीला है? 40 साल पहले जब सर्दियों में भोपाल गैस कांड हुआ तो इस बार भी सर्दी में ही इसे जलाया जाएगा या नहीं? पीथमपुर को ही क्यों चुना गया? कचरे के जलाए जाने के बाद पीथमपुर पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा और क्या अब भोपाल में इस त्रासदी को लेकर सारी समस्या हमेशा के लिए खत्म हो गई है…ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए, ये रिपोर्ट
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भोपाल गैस त्रासदी या गैस कांड क्या था? भोपाल में अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने 1969 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड का प्लांट शुरू किया था। इस फैक्ट्री में मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) और अल्फा नेफ्थॉल के फॉर्मूलेशन से सेविन ब्रांड का कीटनाशक बनाया जाता था। MIC इतना खतरनाक था कि अमेरिका इसे एक-एक लीटर की स्टील की बोतलों में दूसरे देशों को सप्लाई करता था लेकिन नियमों को ताक पर रखकर भारत में इसे स्टील के कंटेनरों में अमेरिका से मंगाया जाता था।
1978 में भोपाल के फैक्ट्री परिसर में अल्फा नेफ्थॉल और 1979 में MIC बनाने की यूनिट लगाई गई थी। एमआईसी का स्टोरेज टैंक 610 अपनी क्षमता से अधिक भरा हुआ था। 2 दिसंबर की रात 8.30 बजे ठोस अपशिष्ट से भरे पाइपों को पानी से साफ किया जा रहा था। यह पानी लीक वाल्वों के कारण एमआईसी टैंक में घुसने से टेंक में ‘रन अवे रिएक्शन’ शुरू हो गया, जिस कारण टैंक 610 फट गया और उसमें मौजूद एमआईसी गैस हवा में लीक हो गई। रातभर में ही गैस के रिसाव से 3828 लोग मारे गए।
2003 तक 15,000 से ज्यादा मौत होने के दावे किए गए। 30,000 से अधिक लोग हादसे से प्रभावित हुए थे। यह आंकड़ा अब 5.5 लाख हो गया है।
![यूनियन कार्बाइड का कचरा फैक्ट्री के पास तालाब तक फैला हुआ है।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2025/01/02/bpl-2_1735839177.gif)
यूनियन कार्बाइड का कचरा फैक्ट्री के पास तालाब तक फैला हुआ है।
यूनियन कार्बाइड का कचरा क्या है? गैस के रिसाव के बाद फैक्ट्री में प्रोडक्शन बंद कर दिया गया। इस समय फैक्ट्री में सेविन बनाने के लिए अल्फा नेफ्थॉल और सेमी प्रोसेस्ड कीटनाशक रखे थे। एमआईसी का ठोस अपशिष्ट भी था। कैमिकल के रिसाव से परिसर की सैकड़ों टन मिट्टी संक्रमित हो गई।
साल 2005 में फैक्ट्री परिसर में फैले 95 टन सेविन और अल्फा नेफ्थॉल, 56.4 टन सेमी प्रोसेस्ड कीटनाशक, रिएक्टर का अवशेष और साथ ही 165 टन संक्रमित मिट्टी सहित 345 मीट्रिक टन कचरे को स्टील के ड्रम और प्लास्टिक के बोरों में भरकर आरसीसी की फर्श वाले गोदामों में रख दिया गया था। यही खतरनाक केमिकल भोपाल गैस त्रासदी का कचरा है।
दावा किया जाता है कि इस 350 टन के अलावा भी 1 लाख टन से ज्यादा संक्रमित मिट्टी और कैमिकल तालाब और फैक्ट्री में मौजूद है।
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फैक्ट्री का कचरा कितना खतरनाक? 2015 में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने भोपाल गैस त्रासदी एवं पुनर्वास विभाग, स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की उपस्थिति में कचरे की टेस्टिंग की थी। इन जांचों के बाद यह देखा गया कि कचरे में कार्बन अपशिष्ट की मात्रा अभी भी मौजूद है। इस कचरे में क्लोरीन, सेविन, ऑर्गेनो क्लोरिन कंपाउंड्स, नेफ्थॉल, सेमी वोलेटाइल आर्गेनो कंपाउंड और हैवी मेटल्स मौजूद थे। हादसे के बीस साल तक संक्रमित मिट्टी और केमिकल खुले में पड़े थे।
साल 2005 तक फैक्ट्री परिसर की नजदीकी 29 से ज्यादा कॉलोनियों का भूजल जहरीला हो चुका था। मप्र प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड ने इलाके के सारे हैंडपम्प सील कर दिए थे। हैंडपम्प या बोरवेल से पानी निकालना अपराध था और ऐसा करने पर जुर्माना और सजा दी जाती थी। कारखाने के नजदीक की 15 नई कॉलोनियों के भूजल में नाइट्रेट, क्लोराइड और कैडमियम मिला था।
हालांकि, मुख्यमंत्री माेहन यादव से जब पूछा गया कि कचरा कितना खतरनाक है तो उन्होंने कहा- 25 साल में कैमिकल की मियाद खत्म हो जाती है।
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ये कचरा पीथमपुर क्यों भेजा गया है? पीथमपुर में जिस रामकी एनवायरो इंजीनियर्स को कचरा निष्पादन का टेंडर मिला है, वह इस कचरे से 2005 से जुड़ी हुई है। इसी कंपनी ने फैक्ट्री परिसर में फैले 347 मीट्रिक टन कचरे को पहली बार पैक करके रखा था। रामकी से पहले इस कचरे को निष्पादन के लिए गुजरात, आंध्र प्रदेश और जर्मनी भेजने के भी टेंडर हुए लेकिन जहां कचरा जाने की बात शुरू होती, वहीं विरोध शुरू हो जाता।
2007 में गुजरात के अंकलेश्वर, अक्टूबर 2009 में हैदराबाद के डुंगीगल और मुंबई, जून 2011 में नागपुर में डीआरडीओ में कचरा निपटान के प्रयास जनता के विरोध के बाद फेल हो गए। इसके बाद एक्सपर्ट्स ने सीमेंट भट्टियों में कचरे को जलाने के विकल्प पर भी बात की थी।
28 जनवरी 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के पीथमपुर में 346 मीट्रिक टन कचरे को जलाने का आदेश दिया था।
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तो क्या अब कचरे का निपटान तय हो गया है? हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यूका के 358 मीट्रिक टन कचरे को पीथमपुर की रामकी एनवायरो इंजीनियर्स में भेजा गया है। कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया कब से शुरू होगी, इस विषय में अभी कोई ऑफिशियल बयान नहीं आया है। यानी अभी सिर्फ कचरा रामकी के प्लांट में पहुंचा है। इसकी प्रोसेस शुरू नहीं हुई है।
नगर निगम इंदौर के सिटी इंजीनियर अतुल सेठ कहते हैं कि पहले ये साफ होना चाहिए कि यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने के बाद जो गैस बनेगी और जो राख बचेगी, उसमें क्या–क्या कंपोजिशन होंगे? सेठ ये भी सवाल उठाते हैं कि भोपाल गैस हादसा ठंड के मौसम में 3 दिसंबर को हुआ था। अभी भी ठंड का मौसम है तो क्या अभी इसे जलाना सही है?
अभी कोर्ट का आदेश सिर्फ भोपाल से कचरा हटाने का था इसलिए प्रशासन पर तुरंत कचरे को जलाने का दबाव नहीं है।
![पीथमपुर में लोग यूका के कचरे को जलाने का विरोध कर रहे हैं।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2025/01/02/pitham_1735839354.gif)
पीथमपुर में लोग यूका के कचरे को जलाने का विरोध कर रहे हैं।
कचरे के निपटान की प्रक्रिया कितनी सुरक्षित? 358 मीट्रिक टन कचरे को पीथमपुर के रामकी एनवायरो के इंसीनरेटर में 1200 डिग्री तापमान पर जलाया जाएगा। कचरे में 60 प्रतिशत मिट्टी होने का दावा किया गया है। यह संक्रमित मिट्टी है। इस कचरे को जलाने के लिए चूना, एक्टिवेटेड कार्बन और सल्फर का इस्तेमाल किया जाएगा।
कचरा जलाने के लिए करीब 505 मीट्रिक टन चूना, 252.75 टन एक्टिवेटेड कार्बन के साथ 2250 किग्रा सल्फर पाउडर की आवश्यकता होगी। इंसीनेटर में ग्रिप गैस उपचार प्रणाली यानी स्प्रे ड्रायर (बुझाने वाला), धूल को इकट्ठा करने वाला यंत्र, ड्राई पाउडर केमिकल ऑब्जर्बर सिस्टम, फिल्टर बैग हाउस, धुंध एलिमिनेटर और एलईडी पंखे के साथ अमोनिया, क्लोरीन या सल्फर जैसे कैमिकल को गैस में से हटाने के लिए क्षार स्क्रबर और उसके बाद 35 मीटर की चिमनी लगाई गई है।
मर्करी और भारी धातुओं को अवशोषित करने के लिए कचरे और चूने के साथ सल्फर पाउडर डाला जाएगा। इससे वातावरण में न तो धुआं जाएगा और न ही पानी। कचरा बर्न होने के बाद उससे 4 गुना ज्यादा राख बचेगी।
![भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में अब भी काफी कचरा पड़ा है।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2025/01/02/bpl-3_1735839407.gif)
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में अब भी काफी कचरा पड़ा है।
कचरे के डिस्पोजल की प्रक्रिया में कितना वक्त लगेगा? कचरे को एक बार बर्न करने के बाद उसकी विषाक्तता चेक की जाती है। इंसीनेटर की बर्निंग केपेसिटी (फीड रेट) 90, 180 और 270 किग्रा प्रति घंटा है। कचरे को 1200 डिग्री तापमान पर गर्म किया जाएगा। अगर विषाक्तता ज्यादा आती है तो लो फीड रेट रखनी पड़ेगी। ऐसी स्थिति में पूरा कचरा जलाने में 9 महीने का समय लग सकता है। अगर फीड रेट ज्यादा मिली तो 3 महीने में कचरे का निष्पादन पूरा हो जाएगा।
कचरे को जलाने से कितनी राख बनेगी, इसका क्या होगा? यूका के 358 टन कचरे के जलने से करीब 1200 टन से ज्यादा वेस्ट जनरेट होगा। क्योंकि कचरे को जलाने के लिए चूना, एक्टिवेटेड कार्बन और सल्फर पाउडर डाला जाएगा।
कचरा जलाने के बाद बड़े-बड़े गढ्ढे खोदकर उनमें आरसीसी की दीवार बनाई जाएगी, जिसमें इस राख को भरा जाएगा। ऊपर से प्लास्टिक की लेयर बनाकर आरसीसी से पैक किया जाएगा। इस प्रक्रिया के बाद वेस्ट में न तो पानी जाएगा और न ही वेस्ट का प्रभाव जमीन और भूजल पर पड़ेगा।
![गैस त्रासदी के 40 साल बाद भोपाल से कचरा हटाया गया है।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2025/01/02/3_1735839704.jpg)
गैस त्रासदी के 40 साल बाद भोपाल से कचरा हटाया गया है।
क्या अब यूका का पूरा कचरा खत्म हो गया? भोपाल स्थित फैक्ट्री परिसर में ही 20 अलग-अलग जगहों पर कचरे को दबाया गया था। हाईकोर्ट के निर्देश पर मप्र सरकार ने 2010 में नीरी, नागपुर और नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआई), हैदराबाद से जांच कराई। इसमें सामने आया था कि यूका परिसर में 21 जगह जहरीला कचरा दफन है। यहां 1969 से 1984 के बीच अलग-अलग प्लांट के पास कई तरह का जहरीला कचरा डंप होता था। इससे आसपास का ग्राउंड वाटर और करीब 11 लाख टन मिट्टी दूषित हो चुकी है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव से परिसर में दबे कचरे को हटाने का सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि समय के साथ इसका भी हल निकाला जाएगा।
यूका की जमीन का क्या होगा? सरकार कोर्ट में गैस त्रासदी का स्मारक बनाने का प्लान भी प्रजेंट कर चुकी है लेकिन यूका फैक्ट्री में जगह-जगह रासायनिक कचरा मौजूद है इसलिए उपयोग से पहले जमीन का भी ट्रीटमेंट करना होगा।
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की गाइडलाइन के अनुसार इस जमीन के ट्रीटमेंट और इसे रासायनिक जहरीले कचरे से मुक्त घोषित करने के बाद ही इसका कोई उपयोग हो सकता है। सीपीसीबी के वैज्ञानिकों के अनुसार अब खतरनाक अपशिष्ट वाली जमीन के ट्रीटमेंट के लिए ऐसी तकनीक मौजूद है, जिसमें जमीन की खुदाई किए बिना इसका ट्रीटमेंट किया जा सकता है।
कचरे को निकालने में कितनी ऐहतियात बरती गई? कचरे को निकालने की तैयारी एक महीने से चल रही थी। तमाम एजेंसियां कचरे को निकालने के लिए एक महीने से प्लानिंग कर रही थीं।
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आखिर विरोध क्यों हो रहा है, इसकी क्या वजह है? विरोध की वजह 2015 में पीथमपुर में 10 टन कचरे का ट्रायल रन है। सरकार का मानना है कि ट्रायल रन सफल रहा जबकि आसपास के गांववालाें का कहना है कि उनके भूजल की क्वालिटी खराब हो गई है। लोगों को डर है कि भोपाल गैस त्रासदी के कचरे से पीथमपुर और इंदौर में पानी और हवा प्रदूषित हो सकती है।
इंदौर के महात्मा गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल एल्युमिनी एसोसिएशन ने कचरा जलाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसकी सुनवाई 12 जनवरी को हो सकती है। वहीं, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सरकार जवाबदेही से काम कर रही है। जनता की संतुष्टि के बाद ही निर्णय लिया जाएगा।
कचरे को फैक्ट्री परिसर में ही डिस्पोज क्यों नहीं किया गया? सीपीसीबी के नियमों के अनुसार घनी आबादी क्षेत्र के बीच होने के कारण यूका परिसर में इंसीनेटर स्थापित नहीं किया जा सकता। यही वजह रही कि 126 करोड़ रुपए रामकी को देकर पीथमपुर के इंसीनेटर में इसे भेजा गया।
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40 साल में इस कचरे ने भोपाल को कितना नुकसान पहुंचाया? पिछले 40 साल में यूका कचरे ने भोपाल के 42 वार्डोंं के ग्राउंड वाटर को प्रदूषित किया है। यह पानी सिर्फ पीने ही नहीं, नहाने लायक भी नहीं है। इसके संपर्क में आने से स्किन कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हुई हैं।
42 बस्तियों का भूजल प्रदूषित हुआ, ये कभी पीने लायक होगा क्या? ऐसा तकनीकी रूप से फिलहाल संभव नहीं है। भोपाल में पिछले 40 साल में ग्राउंड वाटर को प्रदूषित होने से बचाने के लिए कोई काम नहीं किया गया है। इसके लिए सरकार ने सोचना भी शुरू नहीं किया है। कोई फ्यूचर प्लान भी नहीं है। साथ ही कई संगठन ये दावा कर रहे हैं कि फैक्ट्री परिसर में अब भी 1 लाख टन से ज्यादा संक्रमित मिट्टी मौजूद है।
इन कॉलोनियों में सरकार ने पाइपलाइन से पीने का पानी सप्लाई करना शुरू किया है।