The budget session never ran for a full term in 20 years, this time it was limited to just 5 meetings | लगातार घट रही अवधि: 20 साल में कभी पूरा नहीं चला बजट सत्र, इस बार तो सिर्फ 5 बैठकों में सिमटा – Bhopal News

सरकार का तर्क … सत्र लंबा चलाने लायक बिजनेस नहीं होता
विपक्ष की दलील… प्रश्नकाल भी बिजनेस है, जनहित से जुड़ा है

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सोमवार से शुरू हुआ विधानसभा सत्र शुक्रवार देर शाम अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। पिछले 20 साल में एक बार भी बजट सत्र तय अवधि तक नहीं चल सका है। 19 जुलाई तक प्रस्तावित इस सत्र में 3 जुलाई को बजट पेश हुआ था। गुरुवार को बजट प्रस्तावों पर चर्चा शुरू हुई थी, जो देर शाम खत्म हुई। शुक्रवार को भी बजट चर्चा हुई, जिसके बाद विपक्ष की आपत्तियों के बाद अनुदान मांगों के बाद बजट पारित कर दिया गया। फिर विनियोग प्रस्तावों पर चर्चा शाम तक चली। इसके बाद स्पीकर ने सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी।

1 से 19 जुलाई तक प्रस्तावित इस सत्र में कुल 14 बैठकें होनी थीं। 2004 के बाद से 20 सालों में ये सबसे छोटा बजट था। इससे पहले 2022 और 2023 में 13-13 बैठकों के बजट सत्र रखे गए थे। ये भी तय अवधि तक नहीं चल सके थे। साल 2020 में जब कमलनाथ सरकार संकट में थी, तब मार्च में रखा गया 17 बैठकों का बजट सिर्फ 2 बैठकों में ही खत्म हो गया था।

लोकसभा चुनाव वाले साल में बजट सत्र

2011 ही ऐसा साल, जब सबसे अधिक कामकाज हुआ

2011 में कुल प्रस्तावित 40 में से 24 बैठकें हुई थीं। 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद जून-जुलाई में हुए बजट सत्र में 37 में से 18 बैठकें हुईं थीं। वहीं 2015 में कुल 24 में से सिर्फ 7 बैठकें हुईं। लगातार सत्रों की अवधि भी घटती रही है। 2004 में 37 बैठकों के सत्र की तुलना में 2024 में जुलाई सत्र महज 14 बैठकों का था। बजट सत्र में विभिन्न प्रस्ताव आने के बाद विधायक अपने सुझाव देते हैं। बीच में ही सत्र खत्म होने से विधायक अपनी बात नहीं रख पाते।

कई बार कोरम भी पूरा नहीं होता
सत्रों की अवधि घटने का एक कारण ये भी है कि सरकार का बिजनेस अब इतना ज्यादा नहीं रहता और विधायक भी क्षेत्र में ज्यादा रहना चाहते हैं। कई बार इतने विधायक भी नहीं आते कि कोरम पूरा हो सके।
कैलाश विजयवर्गीय, संसदीय कार्य मंत्री

अभी कई कमेटियों की रिपोर्ट लंबित
सरकार बार-बार कहती है कि सत्र लंबा खींचने लायक बिजनेस नहीं होता। ये सही नहीं है। लोकायुक्त की कई रिपोर्ट, विभागों और कमेटियों की रिपोर्ट लंबित है। इन्हें सरकार सदन में क्यों नहीं रखती। प्रश्नकाल भी बिजनेस है, जिसमें जनहित के मुद्दे आते हैं।
उमंग सिंघार, नेता प्रतिपक्ष

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