The battle of passion and ego in Kolhan | कोल्हान में टशन और ईगो की जंग: बाप-बेटा का भविष्य दांव पर, पत्नी-बहू का प्रदर्शन तय करेगा पूर्व CM का दम, 7 दिग्गजों की स्टोरी – Ranchi News

झारखंड की 43 सीटों पर पहले चरण में 13 नवंबर को वोट पड़ेंगे। इसमें सबसे बड़ी लड़ाई कोल्हान में हो रही है। यहां राजनीति का हर दांव-पेंच इस्तेमाल किया जा रहा है। टशन…ईगो और ओवर कॉन्फिडेंस का जलवा भी दिख रहा है। कोल्हान की 14 सीटों पर चार पूर्व सीएम के

.

सरायकेलाः ‘कोल्हान टाइगर’ का भविष्य दांव पर

पहले फेज की सबसे हॉट सीट सरायकेला विधानसभा है। BJP ने यहां से ‘कोल्हान टाइगर’ चंपाई सोरेन को टिकट दिया है। उनके खिलाफ JMM ने BJP के पुराने नेता गणेश महली को उतारा है। यहां दोनों के बीच सीधा मुकाबला है।

सरायकेला में कौन सी पार्टी कितनी मजबूत

  • JMM: लगातार 20 साल से विधानसभा में दबदबा, चंपाई के जाने से पेंच फंसा
  • झारखंड बनने के बाद 2005 से सरायकेला सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा रहा है। यहां से चंपाई सोरेन JMM के सिंबल पर लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। 2005 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ, तब चंपाई ने BJP के लक्ष्मण टुडू को 882 वोटों से हराया था।
  • 2010 में दोनों फिर एक-दूसरे के सामने थे। तब चंपाई 3,246 वोटों से जीते थे। 2014 और 2019 में चंपाई ने BJP कैंडिडेट गणेश महली को हराया।

सरायकेला सीट पर JMM को जिताते आ रहे चंपाई अब BJP में हैं। JMM ने BJP के बागी नेता गणेश महली को चंपाई के खिलाफ टिकट दिया है। सरायकेला में सबसे ज्यादा वोटर्स आदिवासी कम्युनिटी के हैं। अब तक इनकी बड़ी आबादी JMM का साथ देती आई है। अब चंपाई के पाला बदलने के बाद यहां पेंच फंस गया है।

आदिवासी वोटर्स का भरोसा अगर JMM पर कायम रहा, तो गणेश महली को पहली बार इस सीट पर जीत मिल सकती है। हालांकि, ग्राउंड पर माहौल को देखते हुए ऐसा होने की संभावना कम दिख रही है।

सरायकेला से JMM के अजेय रहने की 4 वजह

  1. कुल 3.6 लाख वोटर्स में से 34% आदिवासी वोटर्स हैं। यही JMM के कोर वोटर्स हैं।
  2. यहां के आदिवासी JMM के संस्थापक शिबू सोरेन को अपना गुरु मानते हैं।
  3. JMM सरकार रहते हुए यहां के आदिवासी गांवों में स्कूल, अस्पताल और हैंडपंप जैसी सुविधाएं दी गईं। इसका प्रभाव वोटर्स पर दिखता है।
  4. आदिवासी महिलाओं को मइयां योजना में JMM हर महीने 1 हजार रुपए देती है। चुनाव बाद इसे 2.5 हजार किया जाएगा। ये बात वोटर्स के दिमाग में है।

BJP: चंपाई को लाकर पार्टी कॉन्फिडेंट, सरायकेला में जीत की उम्मीद झारखंड अलग राज्य बनने के बाद सरायकेला विधानसभा सीट से BJP कभी नहीं जीती। हालांकि पार्टी यहां नंबर दो रहकर JMM को हमेशा क्लोज फाइट देती रही। 2014 के विधानसभा चुनाव में BJP ने गणेश महली को चंपाई सोरेन के खिलाफ उतारा था।

इस चुनाव में पार्टी जीतते-जीतते हार गई। चंपाई को 94,746 और गणेश को 93,631 वोट मिले। BJP महज 1,115 वोट से हार गई। 2019 के चुनाव में चंपाई को 1.1 लाख, जबकि गणेश महली को 95,887 वोट मिले।

घाटशिलाः दो सोरेन के बीच जंग, एक सीएम का बेटा दूसरा कैबिनेट मंत्री

भाजपा ने इस बार घाटशिला सीट से पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को टिकट देकर मुकाबले को रोचक कर दिया है। यहां उनके सामने झामुमो उम्मीदवार के तौर पर राज्य के जल संसाधन मंत्री रामदास सोरेन हैं। रामदास अब तक यहां के पांच बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इनमें दो बार वे विजयी हुए हैं। जबकि, बाबूलाल सोरेन पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

अपने बेटे को जिताने के लिए चंपाई सोरेन पूरा जोर लगाएंगे। वहीं, रामदास सोरेन को जिताने के लिए झामुमो पूरी ताकत लगा देगा। यहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन कैंपेन कर चुकी हैं। घाटशिला संथाल बहुल क्षेत्र है। दोनों प्रत्याशी बाबूलाल और रामदास संथाली ही हैं। ऐसे में संथाल मतों में विभाजन होगा।

महिलाओं का रुख तय करेगा जीत-हार घाटशिला विधानसभा क्षेत्र में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष से ज्यादा है। यहां 1,22,564 पुरुष मतदाता हैं, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1,26,649 है। हर बार यहां जीत हार महिला मतदाता ही तय करती रही हैं। इस बार भी महिलाओं का रुख ही तय करेगा कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा।

हमेशा होती है क्लोज फाइट घाटशिला में हर बार चुनाव काफी रोचक होता है। यहां जीत हार का फासला पांच हजार से लेकर 8 हजार के बीच ही रहता है। पिछले चुनाव में भी रामदास सोरेन 7,724 मत से ही जीते हैं। इससे पूर्व के वर्षों में भी फासला इसी के आसपास ही रहता है। वर्ष 2009 में तो रामदास सोरेन महज 192 मतों से जीत हासिल की थी। उन्होंने कांग्रेस के प्रदीप कुमार बलमुचू को हराया था।

जगन्नाथपुर सीटः एक तरफ मधु कोड़ा की पत्नी, दूसरी तरफ उनके विश्वासपात्र रहे सोनाराम सिंकू

आदिवासी रिजर्व जगन्नाथपुर विधानसभा सीट पर इस बार लड़ाई दिलचस्प हो गई है। कोड़ा परिवार के दबदबे वाले इस सीट पर पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी और भाजपा प्रत्याशी गीता कोड़ा के सामने कांग्रेस के सोनाराम सिंकू हैं। सिंकू कभी मधु कोड़ा के विश्वासपात्र हुआ करते थे। उनको 2019 में जीताने में कोड़ा परिवार ने काफी मेहनत की थी।

2019 में कोड़ा परिवार से कोई चुनाव नहीं लड़ा था, क्योंकि गीता कोड़ा लोकसभा चुनाव जीत गईं थी। 2000 से 2014 तक हुए विधानसभा चुनाव में दो बार मधु कोड़ा तो दो बार गीता कोड़ा यहां से विधायक चुनी गईं थी।

पहले 2 बार पति, फिर 2 बार पत्नी जीतीं

साल 2000 से पहले यहां पर जनता दल के प्रत्याशी चुनाव जीतते थे। 2000 के बाद से यहां पर मधु कोड़ा और उनके परिवार का दबदबा शुरू हो गया। इस समय यहां पर आखिरी बार बिहार विधानसभा के लिए चुनाव कराया गया। तब के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर मधु कोड़ा ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। हालांकि, नए राज्य के गठन के बाद 2005 में हुए पहली बार विधानसभा चुनाव चुनाव में मधु कोड़ा, बीजेपी से अलग हो गए और निर्दलीय मैदान में उतरे।

2009 चुनाव में मधु कोड़ा के भ्रष्टाचार मामले में फंसने के बाद उनकी पत्नी गीता कोड़ा ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत की और जीत गईं। 2014 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर में भी गीता ने जय भारत समानता पार्टी (JBSP) के टिकट पर जीत हासिल किया।

पिछले यानी 2019 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा दूसरे नंबर पर रही थी। अब उसका विलय भाजपा में हो गया है। जो गीता कोड़ा के लिए फायदेमंद है। इस सीट पर कोड़ा परिवार का व्यक्तिगत आधार भी है। वहीं, कांग्रेस ने पिछली बार 1985 के बाद इस सीट पर जीत दर्ज की थी। तब कहा गया था कि ये चुनाव कांग्रेस नहीं, कोड़ा परिवार लड़ रहा था। अभी कांग्रेस का संगठन कमजोर है।

जमशेदपुर पश्चिमीः भितरघात और एंटी इनकंबेंसी से तय होगा जीत-हार का अंतर

पिछले विधानसभा चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी सीट पर तत्कालीन सीएम रघुवर दास को हरानेवाले सरयू राय इस बार जमशेदपुर पश्चिमी से चुनावी दंगल में उतरेंगे। इस बार उनका मुकाबला उनके चिर प्रतिद्वंद्वी राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता से होगा। राय और गुप्ता यहां‍ तीन बार दो-दो हाथ कर चुके हैं। राय ने दो और बन्ना ने एक बार जीत दर्ज की है। अबकी चौथी बार आमने-सामने होंगे। दोनों एक-दूसरे की कमजोरी और मजबूती से भली-भांति वाकिफ हैं।

2014 में सरयू राय भाजपा के टिकट पर जमशेदपुर पश्चिमी से जीते थे। वे रघुवर सरकार में पांच साल तक मंत्री भी रहे। लेकिन, रघुवर से उनकी खटपट चलती रही। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तो वे बगावत कर अपनी इस परंपरागत सीट को छोड़कर रघुवर दास से सीधे भिड़ने के लिए जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय चुनाव लड़ गए।

जमशेदपुर पूर्वीः भाजपा-कांग्रेस दोनों को भितरघात का डर

2019 में तत्कालीन सीएम रघुवर दास को निर्दलीय मैदान में उतरकर उनके ही मंत्रिमंडल में रह चुके सरयू राय ने हराया था। अब परिदृश्य बदल गया है। सरयू पश्चिमी चले गए हैं। रघुवर राज्यपाल बन कर ओडिशा जा चुके हैं। उनकी बहू पूर्णिमा दास भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। सामना कांग्रेस के डॉ अजय कुमार से है। दोनों पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों को जीत का भरोसा है। पर, इस भरोसे को उनके ही दल के लोग पलीता लगाने में जुटे हैं। भाजपा के शिवशंकर सिंह व राजकुमार सिंह निर्दलीय मैदान में हैं।

पोटकाः आदिवासी और मुस्लिम बहुल इलाके में फंसी अर्जुन मुंडा की प्रतिष्ठा

झामुमो ने अपने सीटिंग विधायक संजीव सरदार पर फिर विश्वास जताया है। इस बार उनका मुकाबला प्रदेश के पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा से है। मीरा पहली बार चुनाव मैदान में हैं। संजीव अपने कार्यकाल में कराए गए विकास कार्य को मुद्दा बनाकर लोगों के बीच जा रहे हैं।

वहीं, मीरा लोगों को बता रहीं हैं कि विकास के मायने सिर्फ इतने ही नहीं हैं। दरअसल, शहर के कुछ हिस्सों से यह सीट जुड़ी है, पर अधिकतर हिस्सा ग्रामीण है। वहां समस्याओं का अंबार है। विकास के वादे जिनके मजबूत होंगे, वे जीत के उतने ही करीब होंगे।

सरदार ही रहे हैं असरदार इस सीट पर 50% आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका निर्णायक है। इनमें सरदार मतदाताओं की संख्या करीब 10%, मुस्लिम आबादी 6, सिंह 5.5, मुर्मू 5.1, सोरेन 3, टुडू 3, भगत 3, मंडल , हेम्ब्रम, महतो और मार्डी जाति की आबादी 3-3% शामिल है. आदिवासी समुदाय के भूमिज यानी सरदार समुदाय के उम्मीदवार ही अधिकतर बार जीते हैं। इनमें सनातन सरदार, मेनका सरदार, हाड़ीराम सरदार, अमूल्यो सरदार के नाम शामिल हैं। यही कारण है कि जेएमएम ने संजीव सरदार को फिर से टिकट दिया है।

चाईबासाः दीपक के सामने गीता बलमुचू की चुनौती

चाईबासा से हैट्रिक लगा चुके झामुमो प्रत्याशी दीपक बिरुवा का मुकाबला एनडीए की गीता बलमुचू से है। भाजपा ने चाईबासा नगर परिषद की पूर्व अध्यक्ष गीता को मैदान में उतार कर मुकाबले को रोचक बना दिया है।

दीपक बिरुवा 2009 में बागुन सुंब्रई (कांग्रेस) को हरा कर पहली बार झामुमो के विधायक बने थे। दीपक ने 2014 और 2019 में भाजपा प्रत्याशी ज्योति भ्रमर तुबिद को हरा कर इस सीट पर कब्जा बनाए रखा और जीत की हैट्रिक भी लगाई।

लोकसभा चुनाव में सिंहभूम सीट से जेएमएम प्रत्याशी जोबा मांझी को बड़ी जीत मिली। जेएमएम उम्मीदवार के पक्ष में इस तरह का लहर देखने को मिला कि चाईबासा विधानसभा क्षेत्र में भी बीजेपी प्रत्याशी को हार मिली।

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *