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आमेर के महल रोड स्थित मंदिर में विराजे लक्ष्मीनारायण के
शहर में लक्ष्मीनारायणजी का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर 500 साल पहले बढ़ती आर्थिक परेशानी, गरीबी और धन-संपदा के अभाव काे दूर करने के लिए बनाया गया था। कहते हैं इस मंदिर के बनने के बाद शहर में समृद्धि बढ़ती चली गई। हम बात कर रहे हैं आमेर के लक्ष्मीनाराय
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बताते हैं कि तब आमेर में धन संपदा और आर्थिक परेशानी खड़ी हो गई थी। बीकानेर के राजा राव लूणकरणसर की पुत्री बाला बाई काे मां लक्ष्मी ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा था कि इस विकट स्थिति को दूर करने के लिए आमेर में शास्त्र के हिसाब से कृष्ण और शुक्ल पक्ष की दाे तरह की श्याम और गौर वर्ण की प्रतिमाएं स्थापना करें। बाला बाई ने अमावस और पूर्णिमा के हिसाब से दाे प्रतिमाएं स्थापित कराईं।
संस्कृत यूनिवर्सिटी के पूर्व सहायक प्रो. सवाई जयसिंह अवॉर्ड से सम्मानित डॉ. पुनीत शर्मा ने बताया कि सवाई मानसिंह प्रथम ने जयपुर में तीन देवियां स्थापित कीं। आमेर महल में महाकाली स्वरूप शिलामाता, चांदी की टकसाल में महालक्ष्मी और ईसरदा में महासरस्वती की प्रतिमाएं स्थापित की गईं। उसी तर्ज पर आगे जाकर बिड़ला मंदिर में मूर्तियों की स्थापना हुई।
ऋचाओं के हिसाब से प्राण-प्रतिष्ठा
- प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा श्री सूक्त के ऋचाओं के साथ कराई गई। इसके बाद कभी धन की कमी नहीं हुई।
- माना जाता है जो व्यक्ति 7 शुक्रवार गुलाब की माला और खीर लेकर श्रीसूक्त पाठ के साथ दर्शन करे ताे धन की कमी नहीं आती।
- मंदिर में धनतेरस से दिवाली तक तीन दिन खास अनुष्ठान होते हैं। इस मौके पर पंडित श्री सूक्त का पाठ, लक्ष्मी सहस्रार्चन करते हैं। हर शुक्रवार को खास पूजा होती है। लोग कमल गट्टा और गुलाब का गजरा चढ़ाते हैं।
- कृष्ण वर्ण की प्रतिमा 4 फीट की, दिवाली पर होती है खास आराधना
- कृष्ण वर्ण की प्रतिमा बड़ी है। इसमें भगवान नारायण चतुर्भुज धारी और लक्ष्मीजी कमल पर विराजित हैं। साथ में गरुड़ और भगवान के पार्षद गण हैं। दिवाली पर खास आराधना होती है।
- गौर वर्ण प्रतिमा 3 फीट की है। इसमें भगवान नारायण की गोद में लक्ष्मीजी विराजित हैं। पुरातत्व विभाग अधिकृत गाइड विनोद शर्मा ने बताया कि पूर्णिमा और अमावस दोनों दिन हवन किया जाता है। यह मंदिर दक्षिण की महालक्ष्मी की तर्ज पर बनाया गया था।
