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अभी देवी पूजा का महापर्व नवरात्रि चल रहा है। इन दिनों में देवी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठों में दर्शन-पूजन करने की भी परंपरा है। सभी शक्तिपीठ देवी सती से संबंधित हैं। जिस तरह देवी दुर्गा के नौ स्वरूप हैं, ठीक उसी तरह देवी सती की दस महाविद्याएं हैं। महाविद्याओं की साधनाएं काफी मुश्किल होती हैं और तंत्र-मंत्र से जुड़े लोग ही महाविद्याओं की साधना करते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार दस महाविद्याओं में काली, तारा, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरा भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और देवी कमला शामिल हैं। इन दस महाविद्याओं के तीन अलग-अलग समूह हैं। पहले समूह में सौम्य स्वभाव महाविद्याएं त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला हैं। दूसरे समूह में उग्र स्वभाव की काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी माता शामिल हैं। तीसरे समूह में सौम्य-उग्र स्वभाव की तारा और त्रिपुरा भैरवी शामिल हैं।
देवी सती के क्रोध से प्रकट हुई थीं दस महाविद्याएं
दस महाविद्याओं की उत्पत्ति की कथा देवी सती से जुड़ी है। सती ने शिव जी विवाह कर लिया था, लेकिन सती के पिता दक्ष प्रजापति शिव जी को पसंद नहीं करते थे। दक्ष शिव जी को अपमानित करने के अवसर ढूंढते रहता था। दक्ष ने एक यज्ञ आयोजित किया, जिसमें शिव-सती को छोड़कर सभी देवी-देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया था।
जब सती को मालूम हुआ कि पिता दक्ष यज्ञ कर रहे हैं तो वह यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो गईं। शिव जी ने देवी को समझाते हुए कहा कि हमें वहां नहीं जाना चाहिए, क्योंकि हमें वहां बुलाया नहीं गया है।
सती ने तर्क दिया कि पिता के यहां जाने के लिए आमंत्रण की जरूरत नहीं है। इसके बाद भी शिव जी सती को वहां जाने से रोक रहे थे। शिव जी के बार-बार मना करने पर देवी क्रोधित हो गईं।
सती के क्रोध से दसों दिशाओं से दस शक्तियां प्रकट हो गईं। देवी विकराल रूप और दसों शक्तियों को देखकर शिव जी ने इन स्वरूपों के बारे में देवी से पूछा। तब देवी ने बताया कि काली, तारा, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरा भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला, ये सभी मेरी स्वरूप दस महाविद्याएं हैं।
देवी का क्रोध देखकर शिव जी शांत हो गए। इसके बाद देवी सती पिता दक्ष के यहां यज्ञ में पहुंच गईं। यज्ञ स्थल पर देवी सती को देखकर दक्ष ने शिव जी के लिए अपमानजनक बातें कहना शुरू कर दीं। शिव जी का अपमान देवी सती सहन नहीं कर सकीं, तब देवी ने योग अग्नि से अपनी देह त्याग दी। इसके बाद अगले जन्म में देवी ने हिमालय राज के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया था। बाद में शिव जी और पार्वती का विवाह हुआ।