Tears in the eyes of the elders of old age home on Diwali in Ahmedabad | दिवाली पर वृद्धाश्रम के बुजुर्गों की आंखों में आंसू: जिन बच्चों को जीवन भर खुशियां दीं, वे ही भूल गए; बोले- उम्मीद नहीं कि उनका फोन भी आएगा

अहमदाबाद12 घंटे पहले

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तस्वीरें अहमदाबाद के जीवन संध्या वृद्धाश्रम में दिवाली की शाम की हैंं। - Dainik Bhaskar

तस्वीरें अहमदाबाद के जीवन संध्या वृद्धाश्रम में दिवाली की शाम की हैंं।

दिवाली ऐसा त्योहार है, जब सभी लोग अपने परिवार के साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं। भले ही वे घर से कितनी दूर हों, घर लौट आते हैं। लेकिन, हर कोई इतना खुशकिस्मत नहीं होता कि अपने परिवार के साथ दिवाली मना सके। आज भी कई वृद्धाश्रमों में बुजुर्ग अपने परिवार के साथ दिवाली का त्योहार मनाने का इंतजार कर रहे हैं।

दिवाली के मौके पर दिव्य भास्कर की टीम अहमदाबाद के जीवन संध्या वृद्धाश्रम में पहुंची। यहां बुजुर्गों से मिलकर उनकी पीड़ा जानने की कोशिश की। धूमधाम के बीच वृद्धाश्रम में एक अजीब सी शांति थी। कई बुजुर्गों को उम्मीद थी कि दिवाली पर कोई उनसे मिलने आएगा, लेकिन आना तो दूर परिवार से किसी ने फोन करने की भी जहमत नहीं उठाई।

उम्मीद नहीं कि बेटों का फोन भी आएगा जितेंद्रभाई

आश्रम में बुजुर्ग बैंचों-झूलों पर बैठे नजर आए।

आश्रम में बुजुर्ग बैंचों-झूलों पर बैठे नजर आए।

यहां रहे वाले जितेंद्रभाई शाह ने कहा- मेरे बेटे पिछले 27 सालों से मुझसे अलग हैं। अब पुरानी सारी यादें भूलकर नए परिवार के साथ जिंदगी बिता रहा हूं। मेरे बच्चे मुझे फोन भी नहीं करते हैं। जिस घर में वे रहते हैं, वह मैंने ही बनाया है। फिर भी आम दिनों की बात अलग, त्योहारों पर भी वे मुझसे कभी मिलने नहीं आए, न ही कभी फोन ही किया।

मेरी कई कोशिशों के बावजूद भी बेटों और उनका परिवार का कोई भी मुझसे मिलने नहीं आया। शुरुआत में, हर त्योहार के दौरान ऐसा लगता था कि उनका फोन आएगा। लेकिन अब इंतजार खत्म हो गया है। अब मैं यहां पर अपने इसी परिवार के साथ खुश हूं।

कुछ महिलाएं रंगोली बनाती नजर आईं।

कुछ महिलाएं रंगोली बनाती नजर आईं।

बेटों की बहुत याद आती है: हर्षदभाई यहां रहने वाले 83 वर्षीय हर्षदभाई ने कहा- मैं एक महीने पहले ही वृद्धाश्रम आया हूं। मेरी पत्नी, छोटी बेटे और छोटे बेटे का निधन हो गया है। दो बेटे हैं, जो परिवार के साथ रहते हैं। बेटे कई साल पहले ही मुझसे अलग हो गए थे। मैं छोटा-मोटा व्यवसाय कर अपना गुजर-बसर कर लेता था।

लेकिन बायपास सर्जरी होने के बाद डॉक्टर्स ने काम करने से मना कर दिया। इसलिए अब मैं यहां आ गया हूं। बेटों की बहुत याद आती है, लेकिन जो भाग्य में लिखा है वो तो होकर रहता है। ये कहते हुए हर्षदभाई रोने लगते हैं और कहते हैं- बेटों ने कभी फोन करके भी नहीं पूछा कि मैं कैसा हूं।

एक-दूसरे को मिठाई खिलाती हुईं बुजुर्ग महिलाएं।

एक-दूसरे को मिठाई खिलाती हुईं बुजुर्ग महिलाएं।

बेटी मिलने आती है, बेटे ने रिश्ता तोड़ लिया: विशाखाबेन पिछले 5 सालों से यहां रह रहीं विशाखाबेन दवे कहती हैं- सिर्फ मुझे लेकर बहू-बेटे में झगड़ा होता था। इसीलिए मैं खुद वृद्धाश्रम में चली आई। त्योहारों पर बहुत तकलीफ होती है, लेकिन उसे भूलकर यहां के परिवार के साथ खुश हैं। बेटी और दामाद मिलने आते हैं, लेकिन बेटा-बहू मिलने नहीं आते। उन्होंने अब पूरी तरह से मुझसे रिश्ता तोड़ लिया है।

यहां रहने वाले कुछ बुजुर्गों से मिलने उनके परिवार के सदस्य आते रहते हैं। यहां तक कि कई बेटे-बहू अपने परिवारों के साथ यहां रहने वाले लोगों से मिलने आते हैं। ऐसे में इसी बात का दुख होता है कि हमारे अपने ही हमसे मिलने नहीं आते।

बातचीत के दौरान एक बुजुर्ग महिला की आंखों में आंसू आ गए।

बातचीत के दौरान एक बुजुर्ग महिला की आंखों में आंसू आ गए।

पहली बार इतने बड़े परिवार से साथ दिवाली मना रहा हूं: नटवरभाई करीब 4 महीने पहले ही यहां आए नटवरभाई कहते हैं- अब तक की हर दिवाली अपने परिवार के साथ ही मनाई। 60 से ज्यादा साल की उम्र भर परिवार के साथ रहा तो उनकी याद आना स्वाभाविक ही है। लेकिन, किस्मत में जो लिखा है। वो तो होकर ही रहेगा।

परिवार के लोग अपनी दिवाली मना रहे हैं। लेकिन मैं वो सब भूलकर अब अपने इस नए परिवार के साथ जंबो दिवाली मना रहा हूं। पहली बार इतने बड़े परिवार के साथ दिवाली मनाना का मौका मिला है।

बुजुर्ग परिवार के बिना अकेलापन महसूस करते हैं जीवन संध्या की मैनेजिंग ट्रस्टी डिंपलबेन ने कहा- यहां बुजुर्गों के लिए तरह की सुविधा मौजूद है। लेकिन, परिवार के बिना अकेलापन तो हरेक इंसान को महसूस होता है। दिवाली जैसे बड़े त्योहारों पर जब पूरा परिवार एक साथ होता है। तो ऐसे में इन्हें दुख तो होगा ही।

यह वही माता-पिता हैं, जिन्होंने दिवाली जैसे त्योहारों पर अपने बच्चों को नए कपड़े-पटाखे-मिठाई दिलाने के तपती धूप की फिक्र नहीं की थी। भले ही अपने लिए कुछ न ले पाए हों, लेकिन हरेक माता-पिता पहले अपने बच्चों को छोटी से बड़ी हर तरह की खुशी देने की कोशिश करते हैं।

यहां इन्हें कितनी भी सुविधाएं दे दी जाएं, लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर बुजुर्गों को अपनों के प्यार की जरूरत होती न कि किसी तरह के ऐशो-आराम की। इन्हें जो खुशी चाहिए, वह उनके घर पर उनके परिवार से साथ ही मिल सकती है।

हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि जिस तरह भगवान राम वनवास के बाद अयोध्या लौट आए थे। उसी तरह ये बुजुर्ग भी अपने घर लौट जाएं। त्योहार के दौरान इन बुजुर्गों की आँखों में आंसू देखना अच्छा नहीं लगता।

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