अजमेर | ऋिषयों के यज्ञ में बार-बार बाधा बन रहे असुरों के वध के लिए विश्वािमत्र राम-लक्ष्मण को लेकर वन में पहुंचे। यहां उन्होंने ताड़का वध कर शुभ कार्यों का मार्ग प्रशस्त किया। वन यात्रा के दौरान दोनों राजकुमारों ने मुनि विश्वािमत्र की सेवा करते हुए
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ऐसे ही संस्कार अपनाने का संदेश दिया। जवाहर रंगमंच पर शनिवार रात रामलीला की आरती में मेयर ब्रजलता हाड़ा, डिप्टी मेयर नीरज जैन, संयोजक पार्षद केके त्रिपाठी, वृत्त निरीक्षक महावीर सिंह, गौरव भाटी, अनीश मोयल सहित कई श्रद्धालु मौजूद रहे।
संस्थापक, श्रीरामकृष्ण ब्रज लोक कला केंद्र मंडली
नािवक ही बना केवट, नदी पारकर नाव में श्रीराम को लाया था
रामलीला मंचन में जब भी कोई छोटी-बड़ी अड़चन आती है, तब प्रभु श्रीराम ही समस्या का समाधान कर देते हैं। 2 साल पहले हम बरेली के पास मंचन कर रहे थे। शनि-राजा दशरथ युद्ध प्रसंग के दौरान मैं राजा दशरथ का पात्र बनकर मंचन कर रहा था, गिरने से मैं वास्तव में चोटिल हो गया। दूसरे दिन श्रीराम-केवट का प्रसंग होना था जिसमें केवट मुझे ही बनना था। मैं मंचन करने में समर्थ नहीं था।
जहां रामलीला हो रही थी, वहीं पास में एक तालाब भी था। वहां कुछ लोग नाव चला रहे थे। मैंने एक देवेंद्र नाम के नाविक को बुलाकर पूछा कि क्या कल केवट बन जाओगे? वह बोला- स्वामीजी कभी रामलीला में काम नहीं किया, अगर आप कहो तो असली में श्रीराम को तालाब पार करवाते हुुए नाव में ले आऊं।
यह लीला पहले मंच पर ही होनी थी। गांव में खबर फैल गई कि आज रामजी असली नाव में बैठकर आएंगे। लीला का समय आया, कुछ देर बाद नाविक देवेंद्र आराम से केवट भाव में श्रीराम को लेकर आ रहे थे। चारों ओर भक्त जय श्रीराम के जयकारे लगा रहे थे। देवेंद्र ने मंच पर भी ठीक मंचन किया। अगर मैं अिभनय करता तो यह दृश्य मंच पर ही आभासी पर्दे के सामने मुझे करना पड़ता। प्रभु कृपा से मंचन असली नाव में हुआ।
पर्दे के पीछे की रामलीला