3 घंटे पहले
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शनिवार, 4 मई को वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की ग्याहरवीं तिथि है, इसे वरुथिनी एकादशी व्रत कहते हैं। इस व्रत के संबंध में मान्यता है कि जो लोग ये व्रत करते हैं, उन्हें वही पुण्य मिलता है जो सूर्य ग्रहण के समय किए गए दान-पुण्य से मिलता है। वरुथिनी एकादशी के शुभ फल से जाने-अनजाने में किए गए पाप कर्मों का असर खत्म होता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा से जानिए वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के लिए व्रत-उपवास और पूजा करने के साथ ही और कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं…
दिन की शुरुआत करें सूर्य पूजा से
वैसे तो रोज सुबह सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए, लेकिन जो लोग रोज अर्घ्य नहीं दे पाते हैं, उन्हें एकादशी पर जल्दी उठकर स्नान के बाद सूर्य को जल जरूर चढ़ाना चाहिए। इसके लिए तांबे के लोटे का इस्तेमाल करें। ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करें।
शिव परिवार की भी करें पूजा
एकादशी तिथि के स्वामी भगवान विष्णु हैं, लेकिन इस दिन शिव जी के परिवार की भी विशेष पूजा जरूर करनी चाहिए। शिव परिवार में शिव जी, देवी पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय स्वामी, नंदी, नागदेव शामिल हैं। इन सभी देवी-देवताओं का जल और दूध से अभिषेक करें। शिवलिंग पर चंदन का लेप करें। देवी दुर्गा को लाल चुनरी और सुहाग का सामान चढ़ाएं। गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें। धूप-दीप जलाकर आरती करें और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
हनुमान जी और शनि देव की भी करें पूजा
शनिवार को एकादशी होने से इस दिन शनिदेव की पूजा करने का महत्व और अधिक बढ़ गया है। शनिदेव का तेल से अभिषेक करें। तेल का दान करें। शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जप करें।
हनुमान जी के सामने दीपक जलाएं और सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें। हनुमान जी के सामने राम नाम का जप भी कर सकते हैं।
बाल गोपाल का करें अभिषेक
एकादशी पर बाल गोपाल का पंचामृत से अभिषेक करें। पंचामृत के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं। हार-फूल और नए वस्त्रों से श्रृंगार करें। माखन-मिश्री का भोग तुलसी के साथ लगाएं। कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जप करें।
सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास जलाएं दीपक
एकादशी पर सुबह तुलसी को जल जरूर चढ़ाएं। शाम को तुलसी के पास दीपक जलाना चाहिए और परिक्रमा करनी चाहिए। तुलसी को विष्णु प्रिया कहा जाता है, इस वजह से विष्णु की तिथि पर तुलसी की विशेष पूजा करने की परंपरा है।