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- Supreme Court Revives Day to Day Trial Practice In Sensitive Cases Guidelines For Speedy Justice September 2025
नई दिल्लीकुछ ही क्षण पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेष रूप से संवेदनशील मामलों में रोज सुनवाई की परंपरा को पूरी तरह से छोड़ दिया गया है। अदालतों को इसे फिर से अपनाना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने कोलकाता हाईकोर्ट के एक दुष्कर्म के मामले में आरोपी को जमानत देने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई को दौरान ये टिप्पणी की।
संविधान के अनुच्छेद 21 में तुरंत सुनवाई के अधिकार को जरूरी मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी हाईकोर्ट और निचली अदालतें इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने के लिए एक समिति गठित करने की जरूरत है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा-

हम ईमानदारी से मानते हैं कि यह सही समय है कि अदालतें उस प्रथा पर वापस लौटें। महत्वपूर्ण या संवेदनशील मामलों में रोज सुनवाई हो, जो तीस साल पहले की परंपरा थी। पुरानी प्रथा पर वापस जाने के उद्देश्य से, वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक परिस्थिति को समझना आवश्यक है, जिसमें पुलिस के काम करने का तरीका भी शामिल है।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि सभी हाईकोर्ट को समितियां गठित करनी चाहिए ताकि इस बात पर विचार किया जा सके कि दिन-प्रतिदिन की सुनवाई की प्रथा को अपने संबंधित जिला अदालतों में कैसे दोबारा शुरू करें और कैसे लागू करना है।

न्याय व्यवस्था में देरी के कारण
बेंच ने देखा कि न्याय व्यवस्था में देरी में योगदान करने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से रोज सुनवाई ना होना है, जहां साक्ष्य को अदालत द्वारा टुकड़ों में सुना जाता है, और मामले प्रभावी रूप से कई महीनों या वर्षों तक टलते चले जाते हैं।

कोलकाता हाईकोर्ट के खिलाफ दायर याचिका पर हो रही थी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश सीबीआई की उस याचिका पर आया है जिसमें पिछले साल सितंबर में कोलकाता हाईकोर्ट के दुष्कर्म के एक मामले में एक आरोपी को ज़मानत देने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
पीठ ने कहा- हालांकि इस प्रथा के इस्तेमाल के लिए अक्सर सीमित न्यायिक या अदालती संसाधनों और मामलों की संख्या के कारण उपलब्ध अदालती समय की कमी का हवाला दिया जाता है, लेकिन रोज मुकदमों का सुना जाना फायदेमंद हो सकता है।
पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के चीफ जज अधिकारियों को आदेश दे सकते हैं कि मामलों की जांच और अन्य प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी करें। जिससे फैसला जल्दी दिया जा सके।
क्या है मामला?
कोर्ट 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव हिंसा से संबंधित बलात्कार मामले में मीर उस्मान अली नामक आरोपी की जमानत रद्द करने के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की अर्जी पर विचार कर रही थी।
CBI की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे और आरोपी की ओर से अंजन दत्त ने सुनवाई के बाद, बेंच ने कहा कि वह “जमानत रद्द करने के लिए राजी नहीं है” क्योंकि आरोपी लगभग एक साल से हिरासत से बाहर है।
सुनवाई में देरी पर चिंता
कोर्ट ने “गंभीर चिंता” व्यक्त की जब उसे बताया गया कि पीड़िता गवाह कटघरे में आई थी लेकिन उसकी आगे की जांच 18 दिसंबर, 2025 तक स्थगित कर दी गई थी।
अदालत ने पहले ट्रायल कोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा था, चेतावनी देते हुए कि ऐसी चार महीने का स्टे आरोपी को अभियोजन के गवाहों के साथ छेड़छाड़ की सुविधा प्रदान कर सकती है।
ट्रायल कोर्ट की स्थिति रिपोर्ट
8 सितंबर, 2025 के आदेश के अनुपालन में, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, प्रथम-सह-विशेष न्यायालय, तामलुक, जिला पूर्वी मेदिनीपुर ने 11 सितंबर, 2025 को स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की।
ट्रायल कोर्ट के जज ने बताया कि 25 अगस्त, 2025 को पीड़िता के साक्ष्य की रिकॉर्डिंग को स्थगित करना पड़ा क्योंकि गवाह कटघरे में अचानक बीमार पड़ गई थी। बाद में 18 दिसंबर, 2025 तक का स्टे का कारण अदालत मामलों का बोझ बताया गया, जिसमें 1 अगस्त, 2025 तक 4,731 लंबित मामले शामिल हैं, जिनमें सत्र, NDPS, SC/ST, भ्रष्टाचार निवारण, और विभिन्न दीवानी मामले हैं।
कोर्ट ने कहा- पीड़िता की उपस्थिति सुनिश्चित करें
कोर्ट ने नोट किया कि जांच की तारीख अब 24 अक्टूबर, 2025 कर दी गई है। सरकारी वकील को निर्देशित किया गया कि वह आगे की बहस के लिए पीड़िता की उपस्थिति सुनिश्चित करे।
एक बार पीड़िता के मौखिक साक्ष्य पूरे हो जाने के बाद, ट्रायल कोर्ट को यह देखने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए कि अन्य गवाहों की जल्द से जल्द जांच हो और 31-12-2025 तक फैसले के साथ सुनवाई पूरी हो, कोर्ट ने निर्देश दिया।
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