नई दिल्ली5 घंटे पहले
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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के फाउंडर असदुद्दीन ओवैसी- फाइल फोटो।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) का राजनीतिक दल के रूप में रजिस्ट्रेशन रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जातिगत आधार पर बने राजनीतिक दल देश के लिए भी खतरनाक हैं।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि AIMIM के संविधान के अनुसार इसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों समेत समाज के हर पिछड़े वर्ग के लिए काम करना है। इसका संविधान में भी उल्लेख है।
याचिका तिरुपति नरसिम्हा मुरारी ने दाखिल की थी। इसमें 16 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने AIMIM के रजिस्ट्रेशन और और मान्यता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी। मंगलवार को एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट के सामने दलीलें रखीं।
बेंच ने एडवोकेट जैन से दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका वापस लेने को कहा। हालांकि बेंच ने याचिकाकर्ता को एक रिट याचिका दायर करने की छूट दी, जिसमें वह विभिन्न मुद्दों पर राजनीतिक दलों के संबंध में सुधारों के लिए अपील कर सकता है।

याचिकाकर्ता की दलीलें
- एआईएमआईएम कहती है कि वह मुसलमानों में इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देगी और शरिया कानून का पालन करने के लिए आम जागरूकता पैदा करेगी।
- अगर हिंदू नाम से किसी राजनीतिक दल को रजिस्टर कराने चुनाव आयोग जाएं और वचन दें कि वह वेद, पुराण और उपनिषद पढ़ाना चाहते हैं, तो आवेदन खारिज कर दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई की बड़ी बातें…
- पार्टी का कहती है वह समाज के हर पिछड़े वर्ग के लिए काम करेगी, जिसमें अल्पसंख्यक और मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल हैं, खासतौर पर वे जो आर्थिक और शिक्षा दोनों ही क्षेत्रों में पिछड़े हैं। हमारा संविधान भी यही कहता है। आप कह सकते हैं कि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां वचन देने के बाद भी पार्टी या पार्टी का उम्मीदवार धार्मिक भावनाएं भड़काने वाले अभियान में शामिल हो सकता है, लेकिन इसके लिए घटना को सही मंच पर लेकर जाएं।
- कुछ राजनीतिक दल जातिगत आधार पर भेदभाव करते हैं, जो देश के लिए भी उतना ही खतरनाक है। इसकी अनुमति नहीं है। इसलिए एक अलग याचिका दायर कर सकते हैं जिसमें किसी विशिष्ट राजनीतिक दल या व्यक्ति पर आरोप न लगाया जाए और सामान्य मुद्दे उठाए जाएं।
- इस्लामी शिक्षा देना गलत नहीं है। अगर देश में ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक दल शैक्षणिक संस्थान स्थापित करें, तो हम इसका स्वागत करेंगे। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
- अगर चुनाव आयोग वेद, पुराण, शास्त्र या किसी भी धार्मिक ग्रंथ की शिक्षा के खिलाफ ऐसी कोई आपत्ति उठाता है, तो कृपया उचित मंच पर जाएं। कानून इसका ध्यान रखेगा। हमारे पुराने ग्रंथों, पुस्तकों, साहित्य या इतिहास को पढ़ने में कुछ भी गलत नहीं है। कानून के तहत भी कोई प्रतिबंध नहीं है।
- अगर कोई राजनीतिक दल कहता है कि वह छुआछूत को बढ़ावा देगा, तो यह अपमानजनक है और इसे रद्द करके प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, लेकिन अगर संविधान किसी धार्मिक कानून की रक्षा करता है और पार्टी कहती है कि वह लोगों को यह सिखाना चाहती है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने AIMIM के रजिस्ट्रेशन और मान्यता को चुनौती देने वाली याचिका को 16 जनवरी को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि पार्टी कानून के तहत अनिवार्य सभी जरूरतों को पूरा करती है। हाईकोर्ट ने 20 नवंबर को सिंगल जज बेंच के उस फैसले को सही बताया था, जिसमें कहा गया था कि याचिका में कोई दम नहीं है।
कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता की दलीलें AIMIM सदस्यों के राजनीतिक विश्वासों और मूल्यों का समर्थन करती हैं। साथ ही राजनीतिक दल के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप करने के समान हैं।
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इसके जवाब में ओवैसी ने लिखा- आप (रिजिजू) भारत के मंत्री हैं, कोई सम्राट नहीं। सिंहासन नहीं संविधान के तहत पद पर बैठे हैं। अल्पसंख्यकों के अधिकार खैरात नहीं, मौलिक अधिकार हैं। हर दिन हमें पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, जिहादी या रोहिंग्या कहकर बुलाया जाना क्या कोई सुविधा है। पढ़ें पूरी खबर…