देश भर के कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति और वैज्ञानिक राजस्थान में हो रही संरक्षित खेती के मॉडल का अध्ययन करेंगे। वे अलवर जिले के बसेड़ी और जयपुर के बस्सी में हो रही संरक्षित खेती का जायजा भी लेंगे। इसके बाद वे संरक्षित खेती के प्रभावी मॉडल को तैयार
.
श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विवि, जोबनेर एवं इंडियन एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी एसोसिएशन, नई दिल्ली के तत्वावधान में रारी दुर्गापुरा में दो दिन के लिए ये सभी विशेषज्ञ जुटेंगे। इसमें देशभर के 74 कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति 29 और 30 दिसंबर को उद्यानिकी फसलों में संरक्षित खेती को लेकर आने वाली चुनौतियों पर मंथन करने एक मंच पर एकत्र होंगे।
कुलपति प्रो. बलराज सिंह ने बताया कि इसका मुख्य उद्देश्य संरक्षित खेती की वर्तमान स्थिति, भविष्य की संभावनाओं और उससे जुड़ी चुनौतियों से निपटना है। बदलती जलवायु और फल सब्जियों की बढ़ती डिमांड के चलते सरकार भी संरक्षित खेती पर जोर दे रही है। इसके लिए कई योजनाएं संचालित की जा रही है। बावजूद इसके कई चुनौतियां बनी हुई हैं। अब किसानों की आय में वृद्धि और कृषि क्षेत्र में इसके प्रभावी मॉडल्स को बढ़ावा दिया जाएगा। इसीलिए देशभर से कुलपति और कृषि वैज्ञानिक यहां पर मंथन करेंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के वैज्ञानिक और अधिकारी भी अपना प्रेजेंटेशन देंगे।
किसानों की आय बढ़ाने पर जोर
केंद्र और राज्य सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में जोर दे रही है, लेकिन कभी सूखे, तो कभी बाढ़ से उनके आर्थिक हालात सुधरते नहीं। ऐसे में संरक्षित खेती उनके लिए बड़ा सहारा बन सकती है। तमाम कुलपति इस खेती की वर्तमान स्थिति को लेकर भी चर्चा करेंगे। साथ ही संरक्षित खेती को प्रभावी और सशक्त बनाने के उपाय ढूंढेंगे। किसानों की आय में वृद्धि के लिए संरक्षित खेती में सबसे ज्यादा संभावनाएं हैं। इस पर मौसम का प्रभाव नहीं पड़ता। उत्पादन भी ज्यादा होने से कई किसान इससे लाखों रुपए कमा रहे हैं। इन्हें सरकार प्रशिक्षण दे रही रही है।
पॉली हाउस में तापमान रहता है अनुकूल, पानी की खपत कम
संरक्षित खेती यानी ग्रीनहाउस, शेडनेट हाउस, पॉली हाउस में की जाने वाली खेती। इस विधि का मुख्य उद्देश्य फसलों को अत्यधिक तापमान, वर्षा और हवा से बचाना है। इससे फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में वृद्धि होती है। इसी तरह शेडनेट हाउस में भी फसलें उगाई जा रही हैं। इनके अलावा मल्चिंग प्रक्रिया भी होती है, जिसमें मिट्टी को ढकने के लिए एक सामग्री का उपयोग किया जाता है। इसमें पानी की खपत कम होती है। बूंद- बूंद सिंचाई की जरूरत रहती है। वहीं, बाहर का तापमान भले कितना हो, मगर अंदर फसल की जरूरत के मुताबिक तापमान मिलता रहेगा। इसी तरह अंदर का वातावरण भी नियंत्रित किया जा सकता है।