एमजीएम मेडिकल कॉलेज में 2024 बैच के जूनियर छात्रों से रैगिंग का मामला सामने आया है। छात्रों ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि रात 10.30 बजे उन्हें बुलाया व सिर झुकाकर खड़ा कर दिया गया। सुबह 5-6 बजे नशा उतरने तक सीनियर उन्हें पीटते रहे। उन्हें 6-6 घंटे तक र
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वार्डन बोले- कोई मामला नहीं आया
होस्टल वॉर्डन राजेंद्र मार्को ने बताया कि मेरे पास किसी छात्र ने रैगिंग को लेकर कोई शिकायत नहीं की। हालांकि पूर्व डीन संजय दीक्षित के मोबाइल पर 20 दिन पहले किसी अननोन नंबर से रैगिंग की शिकायत की गई थी। जिस पर डॉ. वीएस पाल की अध्यक्षता में एंटी रैगिंग कमेटी बनाई थी।
जब कुर्सी की जंग छिड़ी हो तो छात्रों की चिंता किसे?
एमजीएम में डीन की कुर्सी का ड्रामा थमा ही नहीं और अब छात्रों से रैगिंग की घिनौनी तस्वीरें सामने आ गईं। छात्र लिख रहे हैं कि शहर में यदि कहीं रावण की लंका है तो वह मेडिकल कॉलेज का बॉयज होस्टल है। रात को 10.30 बजे बुलाया गया और नशा उतरने तक सीनियर्स पीटते रहे। किस उम्मीद के साथ माता–पिता ने बच्चों को यहां डॉक्टर बनने भेजा था।
कितनी कठिन और जानलेवा प्रतिस्पर्धा को पार कर उन छात्रों ने एमजीएम में दाखिला पाया और यहां उनके साथ कैसा अमानवीय सलूक हो रहा है। क्या एमजीएम सिर्फ राजनीति का अखाड़ा बनकर रह गया है, जहां छात्रों की सुरक्षा की कोई कीमत नहीं है। छात्र लिख रहे हैं कि सबको पता है, लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता यहां क्या हो रहा है।
ये किस बात के वार्डन हैं, कैसे प्रोफेसर हैं और बाकी स्टाफ कहां कुंभकरण की नींद ले रहा है। डॉक्टर बनाने के बजाय वहां बच्चों को गंदे कपड़े पहनाए जा रहे हैं, उनकी दाढ़ी मूंछ मूंडी जा रही है, सिर झुका कर तीसरे बटन पर आंख गड़वाकर घंटों खड़ा कर रहे हैं। क्या वहां की व्यवस्था इतनी सड़–गल गई है।
ये कैसी मेडिकल की पढ़ाई है और कैसे सीनियर हैं। लानत है ऐसी पढ़ाई पर यदि हम छात्रों को अच्छा इंसान नहीं बना पा रहे तो उन्हें अच्छा डॉक्टर क्या खाक बनाएंगे। यदि जरा भी गैरत बची है तो तमाम जिम्मेदार इस पर तुरंत एक्शन लें और दोषियों को इतनी कड़ी सजा दें कि दोबारा कोई ऐसी जुर्रत न कर पाए।