जवाहर कला केन्द्र में आयोजित 13वें जयरंगम फेस्टिवल का शुक्रवार को तीसरा दिन रहा।
जवाहर कला केन्द्र में आयोजित 13वें जयरंगम फेस्टिवल का शुक्रवार को तीसरा दिन रहा। कला प्रेमियों ने राजेश निर्मल निर्देशित नाटक ‘बेशरम का पौधा’ और वरिष्ठ नाट्य निर्देशक दानिश इकबाल के निर्देशन में हुए ‘चौथी सिगरेट’ नाट्य प्रस्तुति का लुत्फ उठाया। रंग स
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बेशर्म के पौधे में जातिवाद पर कटाक्ष
कृष्णायन में निर्देशक राजेश निर्मल ने स्पॉट लाइट के तहत बेशरम का पौधा नाटक में एकल अभिनय का जादू दिखाया। नाटक में समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था पर कटाक्ष किया गया। यह दर्शाया गया कि जातिवाद की जड़ें समाज में उस बेशर्म पौधे की जड़ की तरह है जो सामाजिक ढांचे की नींव तक में घर कर लेता है। प्रस्तुति में थिएटर के साथ-साथ स्टोरी टेलिंग के तत्व भी समाहित दिखे। निर्देशक ने अपने प्रयोगात्मक तरीके से दर्शकों से बेहतरीन जुड़ाव बनाया। राजेश ने एक अनोखा प्रयोग किया।
निर्देशक ने अपने प्रयोगात्मक तरीके से दर्शकों से बेहतरीन जुड़ाव बनाया।
प्रचलित कथन कि जाति पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर तय होती है की तार्किकता को उन्होंने यों समझाया कि पूर्व जन्म के कर्म थिएटर के बाहर है जिसके बारे में किसी को पता नहीं, दर्शकों को अलग-अलग कपड़े दिए गए जिनमें विभिन्न जातियों का जिक्र था। इससे यह बताया गया कि जिस तरह यह कपड़े अनायास दर्शकों तक पहुंचे वैसे ही जाति तय करने में व्यक्ति विशेष का कोई योगदान नहीं है, सामाजिक स्तर पर थोपी व्यवस्था मात्र है। कहानी राजेश ने अपने आस-पास के माहौल से ली और मंच पर साकार की।
राजेश जो कि जाति विशेष से आता है वह एक टीम बनाता है जिसमें तथाकथित कुलीन और पिछड़े वर्ग के भी बच्चे होते हैं। दिखाया गया कि किस तरह जाति के अनुसार लोगों का व्यवहार बदल जाता है। राजेश का दोस्त जो सामने वाली टीम का कप्तान होता है हारने पर राजेश को जातिगत रूप से टारगेट करते हुए उससे मारपीट करता है। अंत में यह तथ्य सामने आता है कि जाति का जहर इस तरह घुला है कि दोस्ती, प्रेम, व्यवहार सभी की हत्या करने में यह सबसे प्रभावी है।
दानिश इकबाल के निर्देशन में की गयी नाट्य प्रस्तुति ‘चौथी सिगरेट’ ने सशक्त अभिनय के धुए का ऐसा छल्ला बनाती है कि दर्शक उसमें कैद से हो जाते हैं।
रंग संवाद में रंगमंच पर चर्चा
रंग संवाद में ‘समकालीन रंगमंच और चुनौतियां’ विषय पर वरिष्ठ नाट्य निर्देशक साबिर खान, अभिषेक गोस्वामी और शिव प्रसाद टुमु ने विचार रखे। सत्र का मॉडरेशन राघवेंद्र रावत ने किया। सभी निर्देशकों ने एकमत होकर यह राय रखी कि जब तक सामाजिक मुद्दों पर नाटक में बात नहीं की जाएगी यह समकालीन नहीं बन सकता। सच्ची अभिव्यक्ति की तरह नाटक में भी आम आदमी के मुद्दों को दिखाने पर वह हाशिये पर आ जाता है।
विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि थिएटर को एक सब्जेक्ट की तरह बचपन से बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए। नहीं पढ़ने के कारण कहानियों का संकट खड़ा हो गया है। कला के विकास के लिए सरकार की ओर से पॉलिसी बनाने की बात भी मंच ने उठाई। इसी के साथ दर्शकों को जोड़ने के लिए उनके बीच जाने की बात पर भी जोर दिया गया।
रंग संवाद में ‘समकालीन रंगमंच और चुनौतियां’ विषय पर वरिष्ठ नाट्य निर्देशक साबिर खान, अभिषेक गोस्वामी और शिव प्रसाद टुमु ने विचार रखे।
नाटक चौथी सिगरेट में दिखा सशक्त अभिनय
दानिश इकबाल के निर्देशन में की गयी नाट्य प्रस्तुति ‘चौथी सिगरेट’ ने सशक्त अभिनय के धुए का ऐसा छल्ला बनाती है कि दर्शक उसमें कैद से हो जाते हैं। यह प्रस्तुति मध्यवर्गीय परिवार और संघर्षरत साहित्यकार की जिंदगी को आईने में देखने की तरह है। ‘पैसा…पैसा…आखिर कितने पैसे की है इंसान को जरूरत और कितना पैसा कमाया जा सकता है, सबसे बड़ी गड़बड़ी है मिडिल क्लास, वो अमीर बनना चाहता है, हैसियत है कि है ही नहीं, वो दिखावा करता है।
लोन लेकर कार खरीदने की, ब्रांडेड कपड़े पहनकर अपर क्लास का बनने की…अपर क्लास नाम जुबान पर आते ही वीरेश्वर सेन गुप्ता अपनी कलम रोक देते हैं।’ मंद रोशनी में लेख लिखते वीरेश्वर सेन गुप्ता के यह शब्द ही नाटक का सार बताने को काफी है। कमाल के लेखक पर आर्थिक तंगी से जूझ रहे वीरेश्वर सेन गुप्ता के घर में शादी में जाने की तैयारियां जारी है। पत्नी पुराने साड़ी पहनकर आती है, दोनों बेटियां उसे टोकती है और नए कपड़े खरीदने की बात कहती है।
मैकेनिकल इंजीनियर बेटे अनीमेश से किराने की दुकान पर बैठने की बात पर वीरेश्वर से कहासुनी भी होती है। पत्नी शारदा वीरेश्वर को बच्चों की शादी और भविष्य का सोचने की बात कहकर शादी में चली जाती है। सेन लेख लिखने में लीन हो जाते है। इसी बीच एंट्री होती है समरेन्द्र सान्याल की। वीरेश्वर के कॉलेज का दोस्त उद्योगपति समरेन्द्र कॉलेज में वीरेश्वर की लेखनी की प्रसिद्धी के चलते कुंठा मन में दबाए रखता है।
वह वीरेश्वर के समक्ष एक प्रस्ताव रखता है कि उसकी पांडुलिपियों को वह अपने नाम से प्रकाशित करवाएगा और डॉलर में रॉयलटी उसे देगा जिससे वीरेश्वर मालामाल हो जाएगा। पहले तो वीरेश्वर यह प्रस्ताव ठुकरा देता है पर जवान बेटे द्वारा पैसों को लेकर ताना देने पर वह राजी हो जाता है। वीरेश्वर की किताबें छपती है और नाम सान्याल का होता है।
बुकर पुरस्कार के लिए पुस्तक नामित होने पर सान्याल पार्टी देता है। पार्टी में वीरेश्वर को देखकर सान्याल उसका अपमान करके उसे भगा देता है। वीरेश्वर घर जाकर जब सच्चाई बयां करता है तो परिवार वालों को उसकी अच्छाई का एहसास होता है हालांकि अब रॉयल्टी का पैसा आने से वीरेश्वर की माली हालत ठीक हो चुकी है। अंतत: सान्याल को अपनी गलती का एहसास होता है और वह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सच्चाई उजागर करने की बात कहता है। इस पर वीरेश्वर उसे कहता है कि ऐसा करने पर यह प्रकाशित साहित्य कटघरे में आ जाएगा, हम दोनों ही बराबर के गुनहगार है।
कॉलेज के जमाने में चौथी सिगरेट नहीं खरीद सकने वाला वीरेश्वर अपने दोस्त सान्याल को शैंपेन की दावत देता है। इसी के साथ प्रस्तुति पूंजीवाद की भेंट चढ़ने वाले सच्चे साहित्यकार की दास्तान को जाहिर कर नाटक समाप्त होता है। सुंदर लाल छाबड़ा ने वीरेश्वर सेन गुप्ता, विपिन भारद्वाज ने समरेन्द्र सान्याल, नंदिनी बनर्जी ने शारदा, कनिका ने सुमिता, शाहमिला दानिश ने अमिया और शाह फहाद आलम ने अनिमेश, निष्ठा ने मंजीत कौर और सनी ने हेल्पर का किरदार निभाया।
मांगणियार कलाकारों ने बांधा समां
जयरंगम की शाम में कामायचा की संगत पर मांगणियार कलाकारों की सुरीली गूंज श्रोताओं के दिलों को छू गयी। यह प्रस्तुति विरासत फाउंडेशन के सहयोग से संदीप रत्नू के क्यूरेशन में हुई। पद्मश्री साकर खान मांगणियार को स्वरांजलि देने को आयोजित कार्यक्रम में उनके भाई मशहूर शहनाई वादक पेंपे खान जिनका गुरुवार को ही निधन हुआ, को भी श्रद्धांजलि दी गयी। जैसेलमेर और बाड़मेर के कलाकारों ने ‘हालरियो’, ‘घोड़लिया’, ‘वायरिया’, ‘अम्बाबाड़ी’, ‘निंदलड़ी’ आदि गीतों की सुरीली प्रस्तुति दी। राजस्थानी संस्कृति के सौंदर्य से सराबोर करने वाली प्रस्तुति ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। हर गीत के बाद श्रोताओं की तालियों की गदगडाहट से मध्यवर्ती गूंज उठता।