मेडल जीतने के बाद ज्योति और उनका बेटा मौलिक
सोनीपत की 40 वर्षीय महिला टीचर ज्योति और उनके 16 साल के बेटे मौलिक ने पहली बार नेशनल पावरलिफ्टिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर गोल्ड मेडल जीतकर जिले का नाम रोशन किया है।
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गुजरात के मेहसाणा में हुई इस चैंपियनशिप 2025 में दोनों ने शानदार प्रदर्शन किया और अब विजेता बनकर सोनीपत लौटे हैं। ज्योति विकास नगर की रहने वाली हैं और सेक्टर 23 में अपने बेटे के साथ रहती हैं।
वे मॉडल संस्कृति स्कूल में प्राइमरी टीचर हैं। दिनभर पढ़ाने के बाद वे हर शाम दो घंटे बेटे के साथ जिम में मेहनत करती हैं। मां-बेटे की यही लगन अब सफलता की मिसाल बन गई है।

मां-बेटे की जोडी ने पहली बार में ही गोल्ड मेडल जीता है
महज एक महीने की तैयारी और तीन गोल्ड मेडल
ज्योति बताती हैं कि वे पिछले लंबे समय से फिटनेस के लिए जिम कर रही थीं, लेकिन पावरलिफ्टिंग की तैयारी उन्होंने सिर्फ एक महीने पहले शुरू की। इसके बावजूद उन्होंने प्रतियोगिता में भाग लेकर तीन अलग-अलग इवेंट में गोल्ड मेडल जीते। वे मिक्स कैटेगरी, 63 किलो वेट कैटेगरी और 40 वर्ष आयु वर्ग में उतरीं। डेड लिफ्ट में 70 किलो, स्क्वाट में 75 किलो और बेंच प्रेस में 30 किलो वजन उठाकर उन्होंने हर वर्ग में टॉप किया।

महिला टीचर ज्योति
बेटे मौलिक का जलवा भी रहा शानदार
11वीं में पढ़ाई कर रहे मौलिक ने भी सब-जूनियर वर्ग में 63 किलो वेट कैटेगरी में तीनों इवेंट में गोल्ड मेडल जीतकर मां के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सफलता की कहानी लिखी। पहली बार प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर उसने साबित कर दिया कि मेहनत और लगन से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

अपने बेटे के साथ महिला जिम में प्रैक्टिस करने के दौरान
पहले 20 किलो से शुरुआत, अब 200 किलो तक का सफर
ज्योति ने बताया कि उन्होंने और मौलिक ने सिर्फ 20 किलो की रॉड से प्रैक्टिस शुरू की थी। लेकिन आज वे 200 किलो तक वजन उठाने में सक्षम हैं। जब उनकी फिटनेस और ताकत में सुधार हुआ तो उन्होंने पावरलिफ्टिंग में भाग लेने का निश्चय किया। उन्होंने कहा कि जब प्रतियोगिता नजदीक होती है, तो वे पांच से छह घंटे तक अभ्यास करती हैं।

पहली बार 20 किलोग्राम की एक रॉड उठाती थी और अब 200 किलो उठा कर जीत दर्ज कर रही हैं
मां-बेटे की मजबूती बनी एक-दूसरे की प्रेरणा
ज्योति ने बताया कि वह और उनका बेटा ही अब परिवार हैं। पति से अनबन के चलते वे अलग हो चुकी हैं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। सुबह की टीचिंग और शाम की ट्रेनिंग में समय को बांटकर उन्होंने अपने बेटे के साथ खुद को पूरी तरह फिट और मजबूत बनाया। उनकी मेहनत रंग लाई और दोनों ने पहले ही प्रयास में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया।
आत्मविश्वास और मनोबल का प्रतीक बनी यह जोड़ी
ज्योति और मौलिक की जोड़ी सिर्फ खेलों में नहीं, बल्कि जीवन की चुनौतियों से जूझने में भी मिसाल बन चुकी है। उन्होंने यह साबित किया है कि अगर हौसले बुलंद हों, तो मां-बेटे की जोड़ी किसी भी मैदान में विजेता बन सकती है। अब उनका अगला लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए मेडल जीतना है।