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- Sita Navami On 16 May, Significance Of Sita Navami Fast, Know Special Things Related To Goddess Sita, Life Management Tips Of Ramayana
2 घंटे पहले
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आज (गुरुवार, 16 मई) जानकी जयंती यानी सीता नवमी है। मान्यता है कि त्रेता युग में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर देवी सीता प्रकट हुई थीं। सीता नवमी पर महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना से व्रत करती हैं। इस पर्व पर श्रीराम-सीता की विशेष पूजा की जाती है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, त्रेता युग की कथा है। एक बार राजा जनक की नगरी मिथिला में अकाल पड़ गया था। उस समय साधु-संतों ने राजा को सलाह दी कि वे वर्षा के लिए यज्ञ करवाएं और खेत में हल चलाएं। संतों की बात मानकर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और खेत में हल चलाने लगे। थोड़ी ही देर बार खेत में राजा का हल एक जगह अटक गया। जब उस जगह की मिट्टी हटाई गई तो वहां से एक कलश से सुंदर कन्या प्राप्त हुई।
राजा ने जैसे ही उस कन्या को हाथ में उठाया वहां वर्षा हो गई। राजा ने उस कन्या का नाम सीता रखा। दरअसल हल की नोंक को सीत कहते हैं और कन्या हल की नोंक की वजह से ही प्राप्त हुई थी, इसलिए राजा ने कन्या का नाम सीता रखा था।
देवी सीता से सीखें जीवन साथी के मन के भाव कैसे समझें
श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए निकल चुके थे। अयोध्या से आगे बढ़ते हुए, वे गंगा नदी के किनारे पहुंच गए। अब इन्हें नदी पार करनी थी। उस समय एक नाव के केवट ने श्रीराम के पैर पखारने की बाद इन तीनों को नाव में बैठाया और नदी पार करवा दी।
गंगा नदी के दूसरे किनारे पर पहुंचकर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण नाव से उतर गए। उस समय श्रीराम के मन में कुछ संकोच हुआ।
इस प्रसंग के बारे में श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि –
पिय हिय की सिय जाननिहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी।।
कहेउ कृपाल लेहि उतराई। केवट चरन गहे अकुलाई।।
जब सीता ने श्रीराम के चेहरे पर संकोच के भाव देखे तो देवी ने तुरंत ही अपनी अंगूठी उतारकर उस केवट को भेंट में देनी चाही, लेकिन केवट ने अंगूठी नहीं ली। केवट ने कहा कि वनवास पूरा करने के बाद लौटते समय आप मुझे जो भी देंगे मैं उसे स्वीकार कर लूंगा।
इस प्रसंग में देवी सीता ने सीख दी है कि पति-पत्नी को एक-दूसरे के भावों को समझना चाहिए। जब सीता ने श्रीराम के चेहरे पर संकोच के भाव देखे तो उन्होंने समझ लिया कि वे केवट को कुछ देना चाहते हैं, लेकिन उनके पास देने के लिए कुछ नहीं था। ये बात समझते ही सीता ने अपनी अंगूठी उतारकर केवट को देने के लिए आगे कर दी। जिन लोगों के वैवाहिक जीवन में इस तरह की समझदारी होती है, उनके बीच प्रेम और समर्पण बना रहता है।