sita janm utsav celebration in ayodhya mandir live updates photos video | अयोध्या में मंगल ध्वनियों के बीच हुआ श्रीसीता का जन्म: भई प्रकट कुमारी भूमि बिदारी…से गूंजे कनक भवन सहित एक हजार मंदिर – Ayodhya News

श्रीसीता जन्मोत्सव पर सजा अयोध्या के प्रसिद्ध श्रीरामवल्लभाकुंज मंदिर का गर्भगृह। जहां पहुंचते ही भक्त भगवान श्रीसीताराम की मनमोहक छवि को देखकर अपना सारा कष्ट भूल जाते हैं।

अयोध्या में वैशाख शुक्ल नवमी पर भगवती सीता का जन्म मध्य दिवस (ठीक 12 बजे) मंगल ध्वनियों के बीच हुआ। कनक भवन, श्रीरामवल्लभाकुंज, आचार्य पीठ लक्ष्मण किला, सियाराम किला, हनुमत निवास, गहोई मंदिर, बावन मंदिर, बधाई भवन, जानकी महल ट्रस्ट, राम महल वैदेही मंद

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श्रीसीता जन्मोत्सव पर अयोध्या के श्रीरामवल्लभाकुंज में सजा श्रीसीता का भव्य-दिव्य विग्रह।

श्रीसीता जन्मोत्सव पर अयोध्या के श्रीरामवल्लभाकुंज में सजा श्रीसीता का भव्य-दिव्य विग्रह।

भई प्रकट कुमारी भूमि बिदारी…पद से कनक भवन सहित एक हजार मंदिर गूंज उठे। इस बीच अयोध्या के हर ओर उल्लास छा गया है।

मध्याह्न एक साथ नगरी के हजारों मंदिरों में आरती और घंटा घड़ियाल की सामूहिक धुन से सीता के प्राकट्‌योत्सव की उद्घोषणा हुई।घंटे-घड़ियाल,शंख आदि की मंगल ध्वनियों से समूची अयोध्या गुंजायमान हो उठी।दोपहर 12 बजे जैसे ही मंदिरों से परदा उठा इस धरा धाम पर सीता के अवतरित होने की खुशी में आरती और पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत किया गया।

महोत्सव में आज के दिन मंदिरों में भगवान श्रीसीता और राम के विग्रहों का अनेक रसायनों से अभिषेक कर दिव्य वस्त्र और आभूषण धारण कराए गए।इसके बाद जैसे जैसे घड़ी की सूई ठीक 12 बजे ही ओर आगे बढ़ती रही भगवान राम और भगवती सीता की झलक पाने की आतुरता संतों में बढ़ती।कातरता पूर्ण स्थित में संतों की जिह्वा से अनायास ही सीताराम-सीताराम का अजपा जप आरंभ हो गया।खुशी में आंखों के दोनों कोनों से अश्रु धाराएं अनायास ही बहने लगी।

रामनगरी में जनकनंदिनी के प्रति आस्था की परंपरा दशरथ महल के जिक्र बिना अधूरी है। दशरथ महल के संस्थापक स्वामी राम प्रसादाचार्य के बारे में मान्यता है कि मां जानकी ने प्रत्यक्ष होकर उन्हें टीका लगाया था। रामवल्लभाकुंज अपने नाम से ही मां सीता के प्रति समर्पित है। यहां के – संस्थापक स्वामी रामवल्लभाशरण श्रीराम के साथ मां जानकी के भी अनन्य उपासक माने जाते थे।

जानकी महल में सेवा एवं उपासना का यह अहम केंद्र रामनगरी में जानकी की प्रमुख पीठ के रूप में स्थापित है। यहां भगवान राम की भी प्रतिष्ठा है, पर दुल्हा के रूप में। इस संदेश के साथ कि यहां विराजे राम अयोध्या में न होकर मिथिला में विराजमान हैं।

भगवान श्रीराम और सीता एक दूसरे से अभिन्न हैं। इसी भाव को पुष्टि करते हुए यहां भक्त सीताराम-सीताराम का जप करते रहते हैं। यहां श्रीराम के साथ ही हजारों मंदिरों में माता सीता के भी प्रति अगाध अनुराग अर्पित है। इन मंदिरों में श्रीराम के साथ माता सीता अनिवार्य रूप से विराजमान हैं।

श्रीरामवल्लभाकुंज में भगवान श्रीराम के साथ विराजमान भगवती जानकी की मनमोहक छवि ।

श्रीरामवल्लभाकुंज में भगवान श्रीराम के साथ विराजमान भगवती जानकी की मनमोहक छवि ।

रसिक परंपरा का मां सीता से है प्रगाढ़ सरोकार

कनक भवन से सीताराम की अभिन्नता प्रवहमान है। मान्यता है कि यह रानी कैकेयी का महल था और रानी ने मुंह दिखाई में यह महल सीता को भेंट किया था। आज भी यहां श्रीराम के साथ माता सीता का युगल विग्रह अति लुभावन है और श्रीराम एवं सीता के उपासकों का यहां के युगल विग्रह से गहन आध्यात्मिक आत्मिक तादात्म्य है।

श्रीराम को पाने के लिए सीता जरूरी : बिंदुगाद्याचार्य

दशरथ महल पीठाधीश्वर एवं मां जानकी से अनुप्राणित उपासना परंपरा के प्रधान प्रतिनिधि विदुगद्याचार्य महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य कहते हैं कि श्रीराम की भक्ति पाने के लिए सीता जरूरी हैं। क्योंकि सीता भक्ति स्वरूपा है और श्रीराम को भक्ति से ही पाया जा सकता है। भक्ति अथवा सीता तत्व के बिना हम राम को पाकर भी नहीं प्राप्त कर सकते। सत्य यह है कि श्रीराम को पाने के लिए हमें स्वयं को समर्पित करना पड़ता है और समर्पण के इस सूत्र के मूल में मां जानकी है।

श्रीराम के रूप में सीता ही व्यक्त : स्वामी राजकुमार दास

श्रीरामवल्लभाकुंज के प्रमुख स्वामी राजकुमार दास याद दिलाते हैं कि श्रीराम और सीता जल और उसकी लहरों की भांति अभिन्न है। रामकथा को गौर से देखें, तो मां सीता के रूप में श्रीराम ही व्यक्त हुए हैं। इसीलिए रामकथा के प्रथम मौलिक महाकाव्य वाल्मीकि रामायण में महर्षि वाल्मीकि ने सीता का महान चरित्र प्रतिपादित किया। ।

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