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40 मिनट पहले
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शनि कुंभ राशि में वक्री से मार्गी हो गया है और अब 29 मार्च तक कुंभ में ही रहेगा। इसके बाद मीन राशि में प्रवेश करेगा। शनि की चाल बदलने से सभी राशियों पर इस ग्रह का असर भी बदला है। शनि को ग्रहों का न्यायाधीश माना जाता है, इस कारण कुंडली में इस ग्रह की स्थिति बहुत मायने रखती है।
ज्योतिष की मान्यता है कि शनिदेव ही हमारे कर्मों के फल प्रदान करते हैं, इसलिए इनकी कृपा पाने के लिए हर शनिवार तेल का दान करने की परंपरा है। शनि के अशुभ असर से बचने के लिए और शनि की कृपा पाने के लिए शनि के जन्म स्थान महाराष्ट्र के शिंगणापुर में दर्शन-पूजन करने की भी परंपरा है। जानिए शनि शिंगणापुर से जुड़ी खास बातें…
शनि शिंगणापुर के लोग घरों में नहीं लगाते हैं ताले
- महाराष्ट्र के शिंगणापुर में शनि का प्राचीन मंदिर है। ये मंदिर अहमदनगर से लगभग 35 किमी दूर है।
- मंदिर में शनिदेव की प्रतिमा खुली जगह पर स्थापित है। शनिदेव के इस मंदिर में छत नहीं है।
- शनि भगवान के जन्म स्थान यानी शिंगणापुर के लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते हैं। माना जाता है कि यहां के लोगों के घरों की रक्षा स्वयं शनि करते हैं।
- शनिदेव की कृपा पाने के भक्त यहां तेल खासतौर पर चढ़ाते हैं। तेल से ही शनिदेव का अभिषेक किया जाता है।
- शनि शिंगणापुर पहुंचने के लिए मुंबई, औरंगाबाद या पुणे से शिंगणापुर के लिए सीधी बस या टैक्सी आसानी से मिल जाती है। यहां का करीबी एयरपोर्ट औरंगाबाद है। औरंगाबाद से शिंगणापुर लगभग 80 किमी दूर है।
- शिरडी और नासिक से भी शनि शिंगणापुर आसानी से पहुंच सकते हैं। शिरडी से शिंगणापुर करीब 70 किमी दूर है। नासिक से इस मंदिर की दूरी करीब 150 किमी है। इन शहरों से भी शिंगणापुर के लिए बस, टैक्सी आसानी से मिल जाती है।
ये है शनिदेव की प्रतिमा से जुड़ी मान्यता
- शिंगणापुर मंदिर में स्थापित शनिदेव की प्रतिमा एक विशाल शिला है। इस शिला के संबंध में मान्यता है कि पुराने समय में क्षेत्र में एक बार बाढ़ आई थी। इस बाढ़ में बहकर एक विशाल शिला इस क्षेत्र में आ गई थी।
- जब बाढ़ खत्म हुई तो यहां के चरवाहों ने देखा कि एक पेड़ से काली शिला अटकी हुई है। चरवाहों ने उसे उठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं हिली। तब एक चरवाहे ने उस शिला को डंडे से सरकाने की कोशिश की तो उस शिला से खून निकलने लगा। चरवाहों ने गांव के लोगों को इस चमत्कार के बारे में बताया।
- उसी रात गांव के एक व्यक्ति के सपने में शनिदेव प्रकट हुए और कहा कि मैं शनिदेव हूं और वह शिला मेरा ही स्वरूप है। मुझे वहां से उठाने के लिए दो बैलों का एक जोड़ा चाहिए, जो रिश्ते में मामा-भांजे हों। इनके साथ ही बैलों को हांकने के लिए भी मामा-भांजे का एक होना चाहिए। मामा-भांजे इन बैलों को हांककर मुझे लेने आएं और इस गांव में मेरी स्थापना करें।
- सुबह उस व्यक्ति ने गांव के लोगों को अपने सपने के बारे में बताया। इसके बाद गांव के लोगों ने शनिदेव द्वारा बताई गई विधि से उनकी प्रतिमा को शिंगणापुर में स्थापित कर दिया।
अब पढ़िए कुंभ राशि में शनि के वक्री होने का राशिफल
