ring of Kusha grass, worship, shraddha mythological tips, pitru paksha rituals | पितृ पक्ष से जुड़ी मान्यताएं: कुशा घास से बनी अंगूठी रिंग फिंगर में पहनकर करते हैं पूजा-पाठ और पितरों से जुड़े कर्म, जानिए ऐसा क्यों?

18 मिनट पहले

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अभी पितृ पक्ष चल रहा है और पितरों का ये महापर्व 2 अक्टूबर तक चलेगा। पितृ पक्ष में रोज पितरों के लिए धूप-ध्यान करना चाहिए। धूप-ध्यान करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाए तो श्राद्ध कर्म जल्दी सफल हो सकते हैं।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, पितरों के लिए दोपहर में करीब 12 बजे ही श्राद्ध करना चाहिए, क्योंकि यही समय पितरों के लिए शुभ माना गया है। श्राद्ध करने के लिए गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और जब कंडों से धुआं निकलना बंद हो जाए, तब अंगारों पर गुड़-घी डालना चाहिए। इस दौरान घर-परिवार के पितरों का ध्यान करते रहना चाहिए। दाएं हाथ की अनामिका या रिंग फिंग में कुशा घास से बनी अंगूठी पहनना चाहिए। हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से जल चढ़ाना चाहिए। ये पितरों के लिए धूप-ध्यान करने की सरल विधि है।

कुशा घास से जुड़ी धार्मिक मान्यता

धर्म-कर्म करते समय दाएं हाथ की अनामिका यानी रिंग फिंगर में कुशा घास की अंगूठी पहनने की और कुश के आसन पर बैठकर पूजा करने की परंपरा है। मान्यता है कि पूजा-पाठ करते समय हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है और अगर हम जमीन पर बैठकर पूजा करते है तो वह ऊर्जा पैरों से होते हुए जमीन में प्रवेश कर जाती है। पूजा करते समय कुश के आसन पर बैठेंगे तो पूजा-पाठ की वजह से हमारे शरीर में बढ़ी सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर में ही रहेगी, जमीन में प्रवेश नहीं करेगी।

अब जानिए पितरों के श्राद्ध करते समय कुशा की अंगूठी क्यों पहनें?

पूजा-पाठ और पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करते समय कुश की अंगूठी अनामिका उंगली में पहनते हैं। दरअसल, पूजा और श्राद्ध करते समय हमारा हाथ जमीन से स्पर्श नहीं होना चाहिए, क्योंकि जमीन पर हाथ स्पर्श होगा तो पूजा-पाठ की वजह से हमारे शरीर में बढ़ी सकारात्मक ऊर्जा जमीन में चली जाएगी।

कुशा घास की अंगूठी हमारे हाथ और जमीन के बीच रहती है। अगर भूल से हमारा हाथ जमीन की ओर जाता है तो कुशा घास पहले जमीन पर लग जाती है और हमारा हाथ जमीन पर लगने से बच जाता है, जिससे धर्म-कर्म से बढ़ी सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर से जमीन में जाने से बच जाती है। इसलिए कुशा की अंगूठी बनाकर हाथ में पहनी जाती है।

कुशा घास से जुड़ी मान्यताएं

पौराणिक कथा के मुताबिक, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने वह कलश कुछ देर के लिए कुशा घास पर रख दिया था, कुशा घास पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा पवित्र हो गई। इसकी पवित्रता की वजह से ही कुशा को पूजा-पाठ में खासतौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसे पवित्री भी कहा जाता है।

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