मुंबई25 मिनट पहले
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रिटेल निवेशकों को वित्त वर्ष 2025 में शेयर मार्केट के डेरिवेटिव्स सेगमेंट में 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है। इस सेगमेंट में करीब 91% इंडिविजुअल ट्रेडर्स घाटे में रहे हैं। ये पिछले साल (FY24) के मुकाबले 41% ज्यादा है, जब नुकसान 74,812 करोड़ रुपए था। SEBI ने इसे लेकर एक स्टडी जारी की है।
हर ट्रेडर का औसत नुकसान 1.1 लाख रुपए रहा
स्टडी के मुताबिक, हर ट्रेडर का औसत नुकसान 1.1 लाख रुपए रहा, जो पिछले साल 86,728 रुपए था। FY25 में 10 में से 9 ट्रेडर ने पैसे गंवाए है। पिछले साल से हालात में कोई सुधार नहीं हुआ। कुल मिलाकर करीब 96 लाख यूनिक ट्रेडर्स ने इसमें हिस्सा लिया, जो पहले की तुलना में 20% कम है, लेकिन दो साल पहले से 24% ज्यादा। SEBI ने अपनी स्टडी में सभी निवेशकों को कवर किया।

चार साल में नुकसान करीब 2.87 लाख करोड़ रुपए
पिछले चार सालों में रिटेल ट्रेडर्स का कुल नुकसान करीब 2.87 लाख करोड़ रुपए हो चुका है।
- FY22 में 40,824 करोड़ रुपए
- FY23 में 65,747 करोड़ रुपए
- FY24 में 74,812 करोड़ रुपए
- FY25 में 1.06 लाख करोड़ रुपए
ये दिखाता है कि नुकसान हर साल बढ़ता जा रहा है।
सेबी ने नियम सख्त किए, लेकिन नुकसान कम नहीं हुआ
SEBI निवेशकों को जागरूक करने और नियमों को और सख्त करने की कोशिश कर रहा है। सेबी ने नवंबर 2024 से कुछ नियम कड़े किए है। जैसे वीकली एक्सपायरी कम करना, लॉट साइज बढ़ाना, और ट्रेडिंग मार्जिन बढ़ाना। साथ ही, वो बड़े प्लेयर्स की निगरानी भी बढ़ा रहा है।
डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग क्या होती है?
डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग मतलब फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) जैसे जटिल प्रोडक्ट्स में पैसा लगाना। ये स्टॉक मार्केट में हाई रिस्क वाला गेम है। ये आम लोगों के लिए आसान नहीं है और ज्यादातर लोग इसमें पैसे गंवा देते हैं।
फ्यूचर: यह एक तरह का कॉन्ट्रैक्ट है, जिसमें आप वादा करते हैं कि भविष्य में किसी निश्चित तारीख पर कोई शेयर या इंडेक्स (जैसे बैंक निफ्टी) को एक तय कीमत पर खरीदेंगे या बेचेंगे।
यह कॉन्ट्रैक्ट एक निश्चित तारीख (एक्सपायरी) तक वैलिड होता है। इसमें आपको सौदे के समय पूरी रकम नहीं देनी पड़ती, सिर्फ मार्जिन (करीब 10-20%) देना होता है।
उदाहरण:
मान लीजिए, आप बैंक निफ्टी फ्यूचर्स का 1 कॉन्ट्रैक्ट खरीदते हैं, जो 48,000 पर ट्रेड कर रहा है। लॉट साइज अगर 15 हैं, तो इसकी नॉशनल वैल्यू: 48,000 × 15 = ₹7,20,000।
- इसमें पूरी रकम नहीं देनी पड़ती, सिर्फ मार्जिन (करीब 10-20%) देना होता है, जैसे ₹1,00,000। अगर एक्सपायरी तक बैंक निफ्टी 49,000 पर पहुंचता है, तो आपका मुनाफा होगा: (49,000 – 48,000) × 15 = ₹15,000।
- लेकिन अगर इंडेक्स गिरकर 47,000 हो जाए, तो आपको ₹15,000 का नुकसान होगा।
ऑप्शंस: ये भी एक डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है, लेकिन इसमें आपको अधिकार मिलता है (वादा नहीं) कि आप भविष्य में किसी शेयर या इंडेक्स को एक तय कीमत (स्ट्राइक प्राइस) पर खरीद सकते हैं (कॉल ऑप्शन) या बेच सकते हैं (पुट ऑप्शन)। आप इस अधिकार का इस्तेमाल करें या न करें, ये आपकी मर्जी है।
उदाहरण:
मान लीजिए, बैंक निफ्टी 48,000 पर है, और आप एक पुट ऑप्शन खरीदते हैं जिसका स्ट्राइक प्राइस 47,500 है और प्रीमियम ₹200 प्रति लॉट है। लॉट साइज अगर 15 है तो प्रीमियम:
₹200 × 15 = ₹3,000।
- अगर एक्सपायरी पर बैंक निफ्टी 47,000 पर आता है, तो आपका पुट ऑप्शन मुनाफे में होगा:(47,500 – 47,000 – 200) × 15 = ₹4,500 (मुनाफा)।
- लेकिन अगर बैंक निफ्टी 48,500 पर चला जाता है, तो आपका ऑप्शन बेकार हो जाएगा, और आप सिर्फ ₹3,000 (प्रीमियम) का नुकसान उठाएंगे।
ब्रोकर्स का 65% से 85% रेवेन्यू F&O से आता है
स्टॉक ब्रोकर्स अपना ज्यादातर रेवेन्यू फ्यूचर एंड ऑप्शन्स ट्रेडिंग से जनरेट करते हैं जो 65% से 85% के करीब है। पिछले साल ब्रोकरेज फर्म जिरोधा के फाउंडर नितिन कामथ ने कहा था कि सेबी के F&O को रेस्ट्रिक्ट करने वाले रेगुलेटरी चेंज से ब्रोकर्स के रेवेन्यू बुरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं।