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- RBI Governor Sanjay Malhotra Interview: Inflation At 0.25%, Crypto Caution, CBDC Rollout & 7 8% Growth Target
मुंबई18 घंटे पहले
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दिसंबर में कार्यकाल का एक साल पूरा करने जा रहे रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा कहते हैं कि जब उन्होंने ये जिम्मेदारी संभाली, तब दुनिया मंदी, भू-राजनीतिक तनाव और सप्लाई चेन टूटने जैसी चुनौतियों से जूझ रही थी। ऐसे में RBI ने अर्थव्यवस्था को बाहरी झटकों से बचाने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत रखने से लेकर रेपो रेट में 1% कटौती तक कई बड़े कदम उठाए।
अमेरिका समेत कई देश क्रिप्टोकरेंसी अपना रहे हैं। क्या RBI इस पर विचार कर रहा है? इस पर उन्होंने कहा- भारत जैसे संप्रभु देश की नीतियां दूसरे देशों में क्या हो रहा है, उससे तय नहीं होतीं। RBI क्रिप्टो पर सतर्क है। मान्यता देने का प्रस्ताव नहीं है। यह भी कहा कि अमेरिकी टैरिफ का भारत पर असर मामूली होगा।

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी भी नोट की तरह भरोसेमंद, अभी शुरुआती चरण में
रिजर्व बैंक का उद्देश्य जनता के लिए सुरक्षित और भरोसेमंद डिजिटल करेंसी उपलब्ध कराना है। सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) ऐसा ही एक प्रयास है, जो नोट की तरह ही भरोसेमंद हो। यह सीमा पार भुगतान को आसान, सस्ता बनाएगी। यह शुरुआती चरण में है। सफलता इससे तय होगी कि क्रॉस बॉर्डर पेमेंट के लिए अन्य देश भी इसे कितनी तेजी से अपनाते हैं। अमेरिका ने स्टेबल कॉइन लॉन्च किया है, जो सीबीडीसी से अलग है।
बैंक मर्जर की योजना को हमारा समर्थन, बेहतर सुविधाएं बढ़ेंगी
यदि सरकार बैंकों के मर्जर का प्लान लाती है, तो RBI इसका पूरा समर्थन करेगा। यह मजबूत बैंकिग सिस्टम के हित में रहेगा। भारत जैसे देश में बैंक बड़े भी हो सकते हैं और अधिक संख्या में भी हो सकते हैं। इस मर्जर प्लान से बैंकिंग सेवाएं बेहतर हो सकती है। बड़े बैंकों की लागत कम होती है। इसके चलते वे थोड़े सस्ते लोन भी ऑफर कर सकते हैं।
ऐसे बैंक ज्यादा और बेहतर सुविधाएं देने में सक्षम होते हैं। संसाधन अधिक होने की वजह से उनकी पहुंच भी छोटे बैंकों के मुकाबले बेहतर होती है। वे घरेलू और बाहरी आर्थिक झटके झेलने में ज्यादा सक्षम होते हैं। लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि छोटे बैंक अप्रासंगिक हो गए हैं। भारत जैसे देश में छोटे बैंकों की अहमियत भी हमेशा बनी रहेगी।

भास्कर के साथ RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा की खास बातचीत…
सवाल-1: रिटेल महंगाई दर सिर्फ 0.25% रह गई है। यह RBI के 4% लक्ष्य से नीचे है। क्या ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश है?
जवाब: महंगाई में कमी खाने की चीजों के दाम घटने का नतीजा है। यदि सब्जियां और अनाज के दाम में आई कमी का असर हटा लें तो मुख्य महंगाई (कोर इन्फ्लेशन) 4% के आसपास है, जिसमें कुछ हद तक कीमती धातुओं का योगदान है। वैसे नीतिगत दर निर्धारित करने हेतु आने वाले महीनों की महंगाई अधिक मायने रखती है क्योंकि मौद्रिक नीति का प्रभाव आने में समय लगता है।
हमारा अनुमान है अगले वर्ष महंगाई इस निचले स्तरों से बढ़ेगी किन्तु नियंत्रण में रहेगी। जहां तक नीतिगत दर के फैसलों का सवाल है, यह एमपीसी पर निर्भर है कि उभरती व्यापक आर्थिक स्थितियों और परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले। वैसे पिछली बैठक में MPC ने पॉलिसी स्पेस होने की बात की थी।
सवाल-2: डॉलर के मुकाबले रुपया 88 के निचले स्तर पर फिसल गया है, इसे कैसे देखते हैं?
जवाब: हमारा दृष्टिकोण लगातार यही रहा है कि रुपए की कीमत बाजार को तय करने दी जाए। RBI किसी भी स्तर या मूल्य दायरे को लक्ष्य नहीं बनाता। हमारा लक्ष्य अत्यधिक उतार-चढ़ाव को कम करना है। हम इस नीति का पालन करना जारी रखेंगे।
मोटे तौर पर देखा जाए तो हर साल औसतन डॉलर के मुकाबले रुपए का अवमूल्यन 3-3.5% रहा, लेकिन पिछले 8 महीने में यह 4.6% रहा। यह थोड़ा ज्यादा जरूर है, लेकिन इसकी वजह टैरिफ, जियो पॉलिटिक्स जैसे बाहरी कारण हैं।
सवाल-3: अमेरिका समेत कई देश क्रिप्टो अपना रहे हैं, क्या आप इस पर विचार कर रहे हैं?
जवाब: भारत जैसे देश की नीतियां दूसरे देशों की नीतियों से तय नहीं होती है। क्रिप्टोकरेंसी को मुद्रा के रूप में मान्यता देने का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है। क्रिप्टो को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक का रूख अब भी सतर्क बना हुआ है। इस मामले में हम सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) को बढ़ावा देने के पक्ष में मजबूती से कायम हैं।
सवाल-4: बेरोजगारी बढ़ रही है, मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों का मुनाफा माइनस में है। क्या RBI कोई ठोस कदम उठा रहा है?
जवाब: हमारी जिम्मेदारी मूल्य स्थिरता बनाए रखना है, जिसमें आर्थिक विकास को भी ध्यान में रखा जाता है। हमने अर्थव्यवस्था को सपोर्ट के लिए कई उपाय (जैसे खपत बढ़ाने के लिए रेपो रेट में कटौती,बाजार में लिक्विडिटी बढ़ाना) किए हैं, जिसका सकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था व रोजगार पर पड़ रहा है।
पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक, बेरोजगारी दर घटकर 2023-24 में 3.2% रह गई, जो 2017-18 में 6% थी। इस साल जुलाई-सितंबर में बेरोजगारी दर 5.2% रह गई, जो अप्रैल-जून में 5.4% थी।
सवाल-5: बैंकों में लाखों करोड़ एनपीए बन जाते हैं। आम लोगों का पैसा उन्हें बचाने में लगता है। क्या RBI जवाबदेही तय करेगा?
जवाब: लोन का कुछ हिस्सा एनपीए बन जाना, उधार देने की किसी भी गतिविधि का एक हिस्सा है। हाल के वर्षों में एसेट क्वालिटी में व्यापक सुधार हुआ है। मार्च 2025 तक ग्रॉस एनपीए (जीएनपीए) घटकर 2.3% और नेट एनपीए 0.5% रह गया।
मार्च 2018 में ये क्रमश: 11.2% और 5.96% थे। तब से स्थापित रिजॉल्युशन फ्रेमवर्क का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोन एसेट पर किसी भी तरीके से बन रहे दबाव से समय रहते प्रभावी तरीके से निपटा जाए।
सवाल-6: दिसंबर में गवर्नर के तौर पर आप एक साल पूरा कर लेंगे। ये यात्रा कितनी चुनौतीपूर्ण रही?
जवाब: जब मैंने जिम्मेदारी संभाली, तब अमेरिका में नए प्रशासन की व्यापार और आर्थिक नीतियां आकार ले रही थीं। दुनिया पहले से ज्यादा बहुध्रुवीय और खंडित व्यवस्था की ओर बढ़ रही थी। भू-राजनीतिक तनाव के चलते सप्लाई चेन बाधित हो रही थी, खास तौर पर कच्चे तेल के मामले में, जिससे महंगाई का दबाव बढ़ रहा था।
लाल सागर मार्ग में शिपिंग की दिक्कतें भारत के व्यापार घाटे को बढ़ा रही थी। इनमें से कुछ जोखिम अब भी हैं, लेकिन अनिश्चितताएं कुछ कम हुई हैं। अमेरिका के साथ चीन समेत कई देशों के व्यापार समझौते और मध्य-पूर्व संघर्ष का शांत पड़ना इसमें शामिल है।
इस दौरान वैश्विक चुनौतियों के बावजूद मजबूत घरेलू मांग और नीतिगत सपोर्ट के सहारे भारतीय अर्थव्यवस्था न सिर्फ मजबूती से खड़ी रही, बल्कि बढ़ती भी रही। लेकिन बाहरी झटके तो थे ही, जिससे अर्थव्यवस्था को महफूज रखने के लिए रिजर्व बैंक ने कई कदम उठाए।
विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा बफर बनाए रखना। रेपो रेट में 1% कटौती। बैंकों को पर्याप्त नकदी मुहैया कराना और उनका कैश रिजर्व रेश्यो कम करना इनमें शामिल है, ताकि वे ज्यादा लोन दे सकें। हमने मैक्रोप्रूडेंशियल मानदंड मजबूत किए, ताकि फाइनेंशियल सिस्टम की स्थिरता बनी रहे।
सवाल-7: निजी निवेश और वैश्विक मांग सुस्त है। ऐसे में 2025-26 में 7-8% विकास दर का लक्ष्य कितना यथार्थवादी है?
जवाब: वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारतीय कंपनियों ने मजबूत बैलेंस शीट, कैश और मुनाफे के साथ मौजूदा वित्त वर्ष में प्रवेश किया। जहां तक मौद्रिक नीति का सवाल है, आरबीआई ने आगामी आंकड़ों पर नजर गड़ा रखी है। लेकिन देश की आर्थिक वृद्धि को सपोर्ट करते समय हमारी नजर हमेशा कीमतें स्थिर रखने पर बनी रहेगी।
हमने कुछ नीतिगत पहल भी की है। अक्टूबर में नियामकीय उपायों के एक पैकेज की घोषणा की, जो भारतीय बैंकिंग सेक्टर की मजबूती, प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ाने, लोन वितरण में सुधार लाने, कारोबार करना आसान बनाने और उपभोक्ताओं की संतुष्टि बढ़ाने में मदद करेगा।
बीते 4 साल में हमारी अर्थव्यवस्था सालाना औसतन 8.2% बढ़ी है। हमें भरोसा है कि भविष्य में भी आर्थिक वृद्धि दर मजबूत रहेगी। इस साल वृद्धि दर 6.8% रहने का अनुमान है।
सवाल-8: बैंकों का मुनाफा रिकॉर्ड स्तर पर हैं, लेकिन आम लोगों की ईएमआई बढ़ रही है। क्या बैंकों और जनता के बीच खाई बढ़ रही है?
जवाब: दस साल पहले ब्याज दर औसतन 10.77% थी, पर अब 8.5% है। बीते 9 महीनों में भी इसमें 0.83% की कमी आई है। आरबीआई का निरंतर प्रयास है कि उधारकर्ताओं को उचित ब्याज दरों पर लोन उपलब्ध हों। साथ ही बचतकर्ता व डिपोजिटर को उचित ब्याज देने का प्रयास रहता है।
वैसे यदि आप रिटर्न ऑन इक्विटी देखें तो बैंकों का मुनाफा अन्य सेक्टरों की कंपनियों से ज्यादा नहीं हैं। मैं कहना चाहूंगा कि अधिकांश मुनाफे का इस्तेमाल बैंकिंग गतिविधियों के विस्तार में किया जाता है।
सवाल-9: अमेरिका ने 50% टैरिफ लगाया है। चालू खाते का घाटा और रुपए पर दबाव बढ़ सकता है। ऐसे में आप क्या कर रहे?
जवाब: अमेरिका में बढ़े हुए टैरिफ का हमारे चालू खाते के घाटे (सीएडी) पर मामूली असर होगा। भारत का बाहरी क्षेत्र मजबूत है। 2025-26 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में सीएडी घटकर 2.4 अरब डॉलर (जीडीपी का 0.2%) रह गया। इसके मुकाबले 2024-25 की पहली तिमाही में यह 8.6 अरब डॉलर (जीडीपी का 0.9%) था।
आयात-निर्यात में घाटे के बावजूद यह कामयाबी बढ़े हुए सर्विसेज सरप्लस और मजबूत रेमिटेंस (दूसरे देशों में काम कर रहे भारतीयों की ओर से स्वदेश भेजा गया पैसा) के चलते हासिल हुई। इसके अतिरिक्त, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 690 अरब डॉलर (31 अक्टूबर, 2025 तक) पर मजबूत बना हुआ है।

