Ravana, kumbhkarna and vibhishan story, dussehra 2024, Dussehra date, facts about ravan from ramayana | दशहरा 12 अक्टूबर को: ब्रह्मा जी ने रावण को अमरता का वरदान देने से मना किया तो उसने चतुराई से मांगा था वरदान

31 मिनट पहले

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शनिवार, 12 अक्टूबर को दशहरा है। त्रेतायुग में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर श्रीराम ने रावण का वध किया था। रावण को बुराइयों का प्रतीक माना जाता है। रावण बहुत शक्तिशाली, चतुर और अहंकारी था, इस वजह से ब्रह्मा जी से वरदान मांगते समय भी उसने चतुराई दिखाई थी। रावण की इसी चतुराई की वजह से भगवान विष्णु को राम के रूप में मानव जन्म लेना पड़ा था। पढ़िए पूरी कथा…

  • रावण, कुंभकर्ण और विभीषण तीनों भाई कठोर तप कर रहे थे, तीनों ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके मनचाहे वरदान पाना चाहते थे।
  • तीनों की कठोर तपस्या से ब्रह्मा प्रसन्न हो गए और इन तीनों असुरों के सामने प्रकट हुए।
  • ब्रह्मा जी ने तीनों से वरदान मांगने के लिए कहा। सबसे पहले ब्रह्मा जी ने रावण से उसकी इच्छा पूछी। रावण ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने इसके लिए मना कर दिया और कहा कि ये सृष्टि के नियमों के विरुद्ध है, जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु जरूर होगी। तुम अमरता के अलावा कोई और वरदान मांग सकते हो।
  • इसके बाद रावण ने सोच-विचार किया। वह खुद को सबसे शक्तिशाली समझता था। उसे लगता था कि कोई मनुष्य और वानर उसे मार नहीं सकेगा। इसलिए उसने ब्रह्मा जी से कहा कि आप मुझे वरदान दीजिए कि मुझे नर और वानर को छोड़कर कोई और न मार सके।
  • ब्रह्मा जी ने रावण को ये वरदान दे दिया। इसी वरदान की वजह से भगवान विष्णु को सामान्य मानव के रूप में राम अवतार लेना पड़ा। बाद में राम ने वानरों की मदद से रावण का अंत कर दिया।

कुंभकर्ण की बुद्धि पलट दी थी देवी सरस्वती ने

  • कुंभकर्ण से जुड़ी कई कथाएं हैं। कुंभकर्ण को देखकर ब्रह्मा जी ने सोचा कि इसकी वजह से सृष्टि का पूरा भोजन खत्म हो जाएगा। ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती से निवेदन किया कि वे कुंभकर्ण की बुद्धि पलद दें। देवी ने कुंभकर्ण की बुद्धि पलट दी और उसने वरदान में 6-6 माह सोने का वरदान मांग लिया।
  • इसके बाद कुंभकर्ण 6 माह सोता था और फिर जागकर भोजन करके फिर से सो जाता था। इस तरह कुंभकर्ण 6 माह में केवल एक बार ही भोजन कर पाता था।
  • अंत में ब्रह्मा जी विभीषण के पास पहुंचे तो विभीषण ने भगवान की सेवा करने का वरदान मांगा। इसी वरदान की वजह से हनुमान जी ने विभीषण की मित्रता श्रीराम से करवाई थी।

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