रामनगर की ऐतिहासिक रामलीला में पांचवें दिन धनुष यज्ञ का प्रसंग साकार हुआ। यह प्रसंग श्रीराम के प्रति अनुराग बढ़ाने वाला रहा। हजारों लीला प्रेमी परंपरागत लीला के साक्षी बने। लीला आज प्रभु के विवाह को देखने के लिए तैयार होकर पहुंचे।
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राजा जनक से आमंत्रण मिलने पर राम-लक्ष्मण मुनि विश्वामित्र के साथ रंगभूमि पहुंचे। उन्हें आमंत्रित राजाओं में सबसे उच्च स्थान दिया गया। यह देख अन्य राजा आश्चर्यचकित हो गए। राजा जनक भाट के जरिए सभी को अपना प्रण बताते हैं। सभी राजा धनुष उठाने का प्रयास करते हैं लेकिन कोई उसे हिला भी नहीं सका।

बिना लाइट साउंड के लीला का होता है मंचन।
राजा जनक की बात सुन क्रोधित हुए लक्ष्मण
तब जनक कहते हैं-यदि मैं जानता कि पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है तो मैं यह प्रण कभी न करता। यह सुनकर लक्ष्मण क्रोधित हो उठते हैं। कहते हैं कि चाहूं तो पृथ्वी को घड़े की भांति उठा कर चुटकी में फोड़ दू, यह धनुष क्या है। उनको क्रोधित देख मुनि विश्वामित्र राम को धनुष तोड़ने का संकेत देते हैं। गुरु को मन ही मन प्रणाम करके राम धनुष को उठा लेते हैं। उनके स्पर्श मात्र से प्रत्यंचा टूट जाती है। तब जानकी श्रीराम के गले में जयमाल डाल देती हैं।

हाथ पर सवार होकर लीला देखते काशी नरेश।
मशालची के इशारे पर दागी तोप
इधर लीला स्थल पर प्रभुराम धनुष उठाने के लिए झुके, उधर ऊंचाई पर खड़े मशालची ने हवा में मशाल लहराई। हवा में लहराती मशाल देख कर पीएसी मैदान में खड़े तोपची ने गोला दाग दिया। समय का प्रबंधन इतना सटीक था कि जैसे ही श्रीराम ने धनुष को स्पर्श किया, जोर का धमाका हुआ। हजारों की भीड़ भगवान राम का जयकारा लगाने लगी।

लीला के चारों पात्र..राम, लक्ष्मण,भरत, शत्रुध्न।
परशुराम से उलझे लक्ष्मण
शिव धनुष टूटने का समाचार पाकर क्रोध से व्याकुल परशुराम, राजा जनक के पास पहुंचे। उन्हें भला-बुरा कहने लगे। यह देख लक्ष्मण उनसे उलझ गए। राम ने हस्तक्षेप किया। परशुराम अपना धनुष देकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने को कहते हैं। राम के ऐसा करते ही परशुराम को विश्वास हो जाता है कि राम के रूप में पृथ्वी पर भगवान का अवतार हो चुका है। वह श्रीराम से क्षमा मांग कर लौट जाते हैं। जनकपुर में राम और सीता के विवाह की तैयारी शुरू हो जाती है। यहीं आरती के बाद लीला को विश्राम मिला।