12 मिनट पहले
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सोमवार, 28 अक्टूबर को कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की एकादशी है, इसे रमा एकादशी और रंभा एकादशी कहते हैं। घर-परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और प्रेम बनाए रखने की कामना से ये व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु, महालक्ष्मी के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की भी विशेष पूजा करनी चाहिए।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, रमा एकादशी पर सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान के बाद सूर्य देव को जल चढ़ाना चाहिए। इसके बाद घर के मंदिर में भगवान विष्णु के सामने दीपक जलाकर एकादशी व्रत करने का और पूजा करने का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु, महालक्ष्मी और श्रीकृष्ण का विधि-विधान के साथ पूजन करें।
पूजा में भगवान को मिठाई के साथ तुलसी का भोग लगाएं। सुबह के बाद शाम को पूजा करें। रात में घर के मंदिर में श्रीमद्भागवत, गीता या एकादशी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। आप चाहें तो भगवान विष्णु की अन्य कथाएं भी पढ़ सकते हैं। भगवान के मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप भी करें।
ये है रमा एकादशी व्रत की कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, पुराने समय में एक राजा थे मुचुकुंद। देवराज इंद्र, यम, वरुण, कुबेर उनके मित्र थे। राजा धार्मिक प्रवृति वाले और सत्य बोलने वाले थे। राजा की एक पुत्री थी चंद्रभागा।
चंद्रभागा का विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन से हुआ। एक बार शोभन चंद्रभागा के साथ उसके पिता के यहां पहुंचा। उस दिन एकादशी तिथि थी। मुचुकुंद के राज्य में सभी एकादशी व्रत करते थे और उस दिन सभी निराहार रहते थे।
शोभन ने तय किया कि वह एकादशी व्रत करेगा। चंद्रभागा को ये चिंता होने लगी कि उसका पति भूखा कैसे रहेगा? शोभन ने अपनी पत्नी से कोई ऐसा तरीका पूछा, जिससे उसका व्रत भी हो जाए और उसे भूख भी सहन न करना पड़े।
चंद्रभागा को ऐसा कोई तरीका मालूम नहीं था। शोभन ने भगवान पर भरोसा करके व्रत कर लिया, लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, वह भूख-प्यास सहन न कर सका और उसकी मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु से चंद्रभागा बहुत दुखी हुई।
शोभन की आत्मा ने रमा एकादशी व्रत के शुभ फल से मंदराचल पर्वत के शिखर पर देवनगर में स्थान प्राप्त किया। एक दिन राजा मुचुकुंद मंदराचल पर्वत पहुंचे तो उन्होंने अपने दामाद की आत्मा को सुखी और प्रसन्न देखा।
ये बात राजा ने अपनी पुत्री चंद्रभागा को बताई तो वह भी प्रसन्न हुई। इसके बाद चंद्रभागा ने भी रमा एकादशी का व्रत किया और इस व्रत के शुभ फल से वह अपने पति के पास चली गई।