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- Rama Ekadashi Is Celebrated For Two Days On 16th And 17th October, Significance Of Rama Ekadashi In Hindi, Diwali 2025
14 घंटे पहले
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इस साल दीपावली से पहले आने वाली रमा एकादशी की तारीख को लेकर पंचांग भेद है, क्योंकि ये तिथि 16 और 17 अक्टूबर (गुरुवार-शुक्रवार) को दो दिन है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी 16 की सुबह 10.35 बजे शुरू हो जाएगी और 17 की सुबह 11.12 बजे तक रहेगी, इसके बाद द्वादशी तिथि शुरू हो जाएगी। इस एकादशी का व्रत कल यानी शुक्रवार को करना उचित है, क्योंकि कल सूर्योदय के समय एकादशी तिथि रहेगी, शुक्रवार को ही गोवत्स द्वादशी का भी व्रत किया जाएगा।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, इस एकादशी का नाम महालक्ष्मी के एक नाम रमा पर रखा गया है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही देवी लक्ष्मी का भी विशेष अभिषेक करना चाहिए। ये व्रत घर-परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और प्रेम बनाए रखने की कामना से किया जाता है। जानिए रमा एकादशी व्रत से जुड़ी खास बातें…
रमा एकादशी पर सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान के बाद सूर्यदेव को जल चढ़ाना चाहिए। घर के मंदिर में भगवान विष्णु के सामने दीपक जलाकर एकादशी व्रत करने का और पूजा करने का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु, महालक्ष्मी और घर में विराजित बाल गोपाल की पूजा करें।
पूजा में भगवान को तुलसी के साथ मिठाई का भोग लगाएं। दिनभर निराहार रहें और भगवान का ध्यान करें। निराहार रहना संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। शाम को भी पूजा करें। घर के मंदिर में श्रीमद्भागवत, गीता या एकादशी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। आप चाहें तो भगवान विष्णु की अन्य कथाएं भी पढ़ सकते हैं। भगवान के मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप भी करें।
रमा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा
एक राजा थे मुचुकुंद। देवराज इंद्र, यम, वरुण, कुबेर और अन्य देवता उनके मित्र थे। मुचुकुंद धार्मिक प्रवृति वाले और सत्यवादी थे। राजा की एक पुत्री थी चंद्रभागा। चंद्रभागा का विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन से हुआ।
एक दिन शोभन चंद्रभागा के साथ उसके पिता मुचुकुंद के यहां आया। उस दिन एकादशी थी। मुचुकुंद के राज्य में सभी एकादशी व्रत करते थे और उस दिन सभी निराहार थे।
शोभन ने तय किया कि वह भी एकादशी व्रत करेगा। चंद्रभागा को ये चिंता होने लगी कि उसका पति भूखा कैसे रहेगा? शोभन ने अपनी पत्नी से कोई ऐसा तरीका पूछा, जिससे उसका व्रत भी हो जाए और उसे भूख भी सहन न करना पड़े।
चंद्रभागा को ऐसा कोई तरीका मालूम नहीं था। शोभन ने भगवान पर भरोसा करके व्रत कर लिया, लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, वह भूख-प्यास सहन न कर सका और उसकी मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु से चंद्रभागा बहुत दुखी हुई।
शोभन की आत्मा ने रमा एकादशी व्रत के शुभ फल से देवलोक में स्थान प्राप्त किया। एक दिन राजा मुचुकुंद अपने देव मित्रों से मिलने देवलोक पहुंचे तो उन्होंने अपने दामाद की आत्मा को वहां सुखी और प्रसन्न देखा। राजा ने देवलोक से लौटकर ये बात अपनी पुत्री चंद्रभागा को बताई तो वह भी प्रसन्न हुई। इसके बाद चंद्रभागा ने भी रमा एकादशी का व्रत किया और इस व्रत के शुभ फल से वह भी अपने पति के पास चली गई।
ये व्रत स्वर्ग के समान सुख-शांति देने वाला माना जाता है। जो लोग ये व्रत पूरी श्रद्धा के साथ करते हैं, उनके सभी दुख दूर होते हैं और घर-परिवार में प्रेम बना रहता है।