Punjab Maghi Mela Interesting Facts; Sri Muktsar Sahib | Mughal | माघी मेला, मुगल की कब्र पर जूते मारते हैं श्रद्धालु: यहां लगती 100 करोड़ की घोड़ा मंडी, जिसका चैंपियन हरियाणा का बुर्ज खलीफा – Muktsar News

मुक्तसर में मुगल की कब्र पर जूते-चप्पल मारते सिख श्रद्धालु और पिछले साल हॉर्स शो में पहले नंबर पर रहा हरियाणा का काले रंग का बुर्ज खलीफा घोड़ा और मारवाड़ी नस्ल का सफेद घोड़ा।

पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब में आज माघी का शाही स्नान हो रहा है। यहां गुरुद्वारा श्री टूटी गंडी साहिब के सरोवर में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। यह गुरुद्वारा श्री गुरू गोबिंद सिंह जी की दया और सिखों के पुनर्मिलन का प्रतीक है। यहां उनसे जुड़े 8 प्रमुख गुरु

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जिनमें शामिल गुरुद्वारा दातनसर साहिब में एक मुगल सैनिक की कब्र है। जिस पर सिख श्रद्धालू जूते–चप्पल मारते हैं। इस सैनिक ने गुरू गोबिंद सिंह जी पर हमला किया था। यह पूरा इतिहास खिदराने की लड़ाई से जुड़ा हुआ है। जिसकी विस्तृत जानकारी आगे पढ़ सकते हैं।

करीब 5 किमी एरिया में होने वाले इस मेले में 100 करोड़ की घोड़ा मंडी भी लगती है। जिसमें 2 लाख से लेकर 2 करोड़ तक के अलग–अलग नस्ल के घोड़े आते हैं। पिछली बार घोड़ों की चैंपियनशिप में 71 इंच हाइट का हरियाणा का बुर्ज खलीफा चैंपियन रहा था।

माघी मेला, घोड़ा मंडी और गुरू गोबिंद सिंह जी की खिदराने की जंग से जुड़ी कहानियां…

गर्मी की वजह से मेले का महीना बदला गया माघी मेला सिख इतिहास में बैसाखी और बंदी छोड़ दिवस (दीवाली) के बाद तीसरा बड़ा त्योहार है। यह मेला उन 40 सिखों की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने पहले गुरू गोबिंद सिंह जी के लिए लड़ने से इनकार कर दिया। मगर, माई भागो की प्रेरणा से ऐसी लड़ाई लड़ी कि अपने प्राण तक बलिदान कर दिए। इन्हें सिख इतिहास में गुरु गोबिंद सिंह जी के “चाली मुकते” (चालीस मुक्त हुए सिख योद्धा) कहा जाता है।

यह लड़ाई 3 मई 1705 यानी बिक्रमी कैलेंडर के मुताबिक 21 वैसाख 1762 को हुई थी। शुरू में यह मेला वैसाख में ही लगता था, लेकिन गर्मी और पानी की कमी के कारण इसे सर्दियों के माघ महीने में मनाने की परंपरा शुरू हुई। नानकशाही कैलेंडर में इसे जनवरी यानी माघ महीने में मनाना तय किया गया है।

इस बार यह मेला 11 जनवरी से शुरू हो चुका है। 14 जनवरी को यहां अखंड पाठ के भोग डाले जाएंगे। 15 जनवरी को नगर कीर्तन निकालने के साथ निहगों की घुड़दौड़, घोड़ों के मुकाबले होंगे। जिसके बाद पारंपरिक तौर पर मेले की समाप्ति हो जाएगी।

मुक्तसर स्थित गुरुद्वारे में माथा टेकते श्रद्धालु।

मुक्तसर स्थित गुरुद्वारे में माथा टेकते श्रद्धालु।

मंडी में 400 से ज्यादा घोड़े, कीमत 100 करोड़ माघी मेले में सबसे आकर्षण घोड़ा मंडी रहती है। यहां 400 से ज्यादा घोड़े आते हैं, जिसमें नुकरा (सफेद घोड़ा), मारवाड़ी (राजस्थान) और मज्जुका नस्ल के घोड़े सबसे ज्यादा फेमस है। इन घोड़ों की कीमत 2 लाख से लेकर 2 करोड़ तक होती है।

इस मंडी में ज्यादातर भारतीय नस्लें ही बेची और खरीदी जाती हैं। विदेशी घोड़ों को इन मंडियों में नहीं ले जाया जाता है। यहां हॉर्स शो भी होता है। पिछले साल हुए मुकाबले में मेल कैटेगरी में पहला स्थान हरियाणा के बुर्ज खलीफा को मिला था। जिसकी हाइट 71 इंच थी। बुर्ज खलीफा तब पौने 4 साल का था। फीमेल कैटेगरी में 5 साल की मारवाड़ी घोड़ी हिना जीती थी। जिसकी हाइट 66 इंच थी।

मुक्तसर में पिछले साल हुए हॉर्स शो के दौरान फीमेल कैटेगरी में पहला स्थान पाने वाली हिना तकरीबन 5 साल की है। ये मारवाड़ी घोड़ी है, जिसकी हाइट 66 इंच है।

मुक्तसर में पिछले साल हुए हॉर्स शो के दौरान फीमेल कैटेगरी में पहला स्थान पाने वाली हिना तकरीबन 5 साल की है। ये मारवाड़ी घोड़ी है, जिसकी हाइट 66 इंच है।

जानिए कौन था मुगल नूरदीन, जिसने गुरू गोबिंद सिंह जी पर हमला किया सिख इतिहास के मुताबिक मुगलों से हुई खिदराने की जंग के बाद गुरू गोबिंद सिंह जी मुक्तसर में रुके थे। यहां जिस जगह पर गुरूद्वारा दातनसर साहिब बना हुआ है, यहां एक बार गुरू गोबिंद सिंह जी दातुन कर रहे थे। तभी मुगल सैनिक नूरदीन चोरी–छुपे वहां आया और किसी नुकीली चीज से उन पर हमला करने की कोशिश की।

हालांकि उन्होंने तुरंत एक बर्तन उठाया और मुगल नूरदीन को ही मार दिया। जिसके बाद यहां उसकी कब्र बनाई गई है। जिसे सिख अन्याय और गुरु साहिब के खिलाफ की गई साजिश का प्रतीक मानते हैं। गुरुद्वारे के दर्शन के बाद श्रद्धालु यहां कब्र पर जूते–चप्पल मारते हैं। जो इस बात का संदेश देता है कि अन्याय और विश्वासघात का अंत निश्चित है।

मुगल नूरदीन की कब्र पर जूते-चप्पल मारते सिख श्रद्धालु। - फाइल फोटो

मुगल नूरदीन की कब्र पर जूते-चप्पल मारते सिख श्रद्धालु। – फाइल फोटो

खिदराने की जंग: 40 सिख लड़ाई से हटे, फिर ऐसे लड़े कि जान तक बलिदान कर दी

1. मुगल सैनिकों से लड़ रहे थे गुरू गोबिंद सिंह जी, 40 सिखों ने भूख–प्यास से साथ छोड़ा सिख इतिहासकारों के मुताबिक बिक्रमी संवत 1761 में दसवें गुरू श्री गुरू गोबिंद सिंह जी किला आनंदपुर साहिब में मुगल सैनिकों से लड़ रहे थे। किले में राशन–पानी खत्म होता जा रहा था। यह देख 40 सिखों ने कहा कि वह भूखे–प्यासे लड़ाई नहीं लड़ सकते। इस पर गुरू गोबिंद सिंह जी ने उनसे कहा कि लिखकर दे दो कि मैं तुम्हारा गुरू नहीं और तुम मेरे शिष्य नहीं। उन्होंने लिखकर दिया और लड़ाई छोड़ अपने घर चले गए।

2. गुरू गोबिंद सिंह जी के 2 साहिबजादों ने शहीदी प्राप्त की किला आनंदपुर की लड़ाई के बाद गुरू गोबिंद सिंह जी चमकौर साहिब की गढ़ी में जा पहुंचे। वहां मुगल सैनिकों के साथ उनका मुकाबला हुआ। इसमें गुरू गोबिंद सिंह जी के 2 साहिबजादे भाई अजीत सिंह और भाई जुझार सिंह ने शहीदी प्राप्त की।

3. परिजनों ने 40 सिखों के घर लौटने पर खूब कोसा चमकौर की गढ़ी से गुरू गोबिंद सिंह जी ने खिदराने की ढाब (मुक्तसर) के ऊंचे रेतीले टिब्बों में अपना डेरा लगा लिया। इधर, 40 सिखों ने घर में लड़ाई छोड़कर आने की बात बताई ताे परिवार के लोगों ने उन्हें खूब कोसा। उन्होंने कहा कि मुसीबत के वक्त गुरू गोबिंद सिंह जी का साथ छोड़ना चाहिए था। परिवार की महिलाओं ने कहा कि आप सब घर बैठो, हम गुरू जी के साथ सेना बनकर लडेंगी। तब माई भागो ने भी 40 सिखों को लड़ने के लिए प्रेरित किया।

माघी के अवसर पर सुंदर लाइटों से सजा मुक्तसर का गुरुद्वारा शहीद गंज साहिब।

माघी के अवसर पर सुंदर लाइटों से सजा मुक्तसर का गुरुद्वारा शहीद गंज साहिब।

4. वापस लौटे 40 सिख, मुगल सेना को घुटनों पर ला दिया घरवालों के ताने सुन और माई भागो के प्रेरित करने पर वे फिर से गुरू गोबिंद सिंह जी की खोज में निकल पड़े। वह खिदराने की ढाब पहुंच गए, जहां गुरू गोबिंद सिंह जी ठहरे हुए थे। उन्होंने भी एक जलाशय के पास अपने डेरे लगा लिए।

तभी गुरू गोबिंद सिंह जी को ढूंढते हुए मुगल सेना भी वहां आ पहुंची। उन्होंने इन्हीं 40 सिखों पर हमला किया। तब ये 40 सिख ऐसे लड़े कि मुगल सेना को घुटने पर ला दिया। मुगल सेना को वहां से भागना पड़ा। इस लड़ाई में 39 सिख शहीद हो गए। एक भाई महा सिंह घायल पड़े थे। तब श्री गुरू गोबिंद सिंह जी वहां पहुंचे और महा सिंह का सिर अपनी गोद में रखते हुए कहा कि आप सब लोगों ने आज सिख धर्म की लाज रख ली।

5. गुरू गोबिंद सिंह ने पत्र फाड़कर कहा, यह 40 मुक्तों की धरती गुरू गोबिंद सिंह जी ने महा सिंह से कहा कि जो मांगना चाहते हो मांग लो। इस पर महा सिंह ने कहा कि हमें माफी दे दीजिए और आनंदपुर के किले में उन्होंने जो पत्र (बेदावा) दिया था, उसे फाड़ दीजिए। हमारी टूटी गांठ जोड़ दीजिए यानी हमें अपना शिष्य बना लीजिए। तब गुरू गोबिंद सिंह जी ने अपनी कमर से वह पत्र निकाला और फाड़ दिया। उन्होंने कहा कि यह स्थान खिदराना नहीं बल्कि मुक्ति का धाम है। बाद में महा सिंह ने भी शहीदी प्राप्त कर ली।

6. 40 सिखों का अपने हाथ से अंतिम संस्कार किया इसके बाद गुरू गोबिंद सिंह जी ने युद्ध के मैदान से सभी 40 सिखों की पार्थिव देह को इकट्‌ठा किया। इसके बाद एक बड़ी चिता बनाई। फिर गुरू गोबिंद सिंह जी ने अपने हाथ से सभी 40 सिखों का अंतिम संस्कार किया। इसी जगह पर अब गुरूद्वारा शहीद गंज बना हुआ है। जहां पर बेदावा (पत्र) फाड़ा, वहां गुरुद्वारा टुट्‌टी गंडी साहिब बना।

मुक्तसर में श्री गुरू गोबिंद सिंह से जुड़े 8 गुरुद्वारे…

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