खडूर साहिब से सांसद अमृतपाल सिंह।
पंजाब से खालिस्तान समर्थक लोकसभा सांसद अमृतपाल सिंह की जल्द विधानसभा चुनाव में एंट्री होने वाली है। सांसद अमृतपाल इस वक्त राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट (NSA) के केस में असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं। मगर, उनकी पार्टी अकाली दल- वारिस पंजाब दे ने अमृतसर के
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तरनतारन से आम आदमी पार्टी (AAP) विधायक कश्मीर सिंह सोहल का 27 जून को निधन हो गया था। जिसके बाद से यह सीट खाली हुई है। हालांकि यहां उपचुनाव की घोषणा होनी बाकी है।
इससे पहले जब अमृतपाल के समर्थकों और फरीदकोट से निर्दलीय सांसद सरबजीत सिंह खालसा ने 14 जनवरी को पार्टी की घोषणा की थी तो कहा था कि वह कोई उपचुनाव नहीं लड़ेंगे, उनका लक्ष्य 2027 का विधानसभा चुनाव है।
इस बारे में अमृतपाल के पिता तरसेम सिंह ने कहा-

ये सीट खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जहां से अमृतपाल सिंह खुद सांसद हैं। इसलिए हम चुनाव लड़ेंगे। पार्टी जल्द ही उम्मीदवार की भी घोषणा करेगी।
यह फैसला इसलिए भी अहम है क्योंकि पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में जीते अमृतपाल को तरनतारन विधानसभा सीट से 40% वोट मिले थे। प्रदेश सरकार में मंत्री होने के बावजूद यहां से AAP के उम्मीदवार लालजीत भुल्लर तो तीसरे स्थान पर रहे थे।

अमृतसर में मीडिया से बात करते सांसद अमृतपाल सिंह के पिता तरसेम सिंह।
2 कारण, जिससे सांसद अमृतपाल का पलड़ा भारी
- जेल में रहते सबसे ज्यादा अंतर से चुनाव जीता: अमृतपाल सिंह ने जेल में रहते हुए लोकसभा का निर्दलीय चुनाव लड़ा। उनके पास किसी तरह का कैडर या पार्टी का भी सहारा नहीं था। अमृतपाल ने खुद प्रचार तक नहीं किया। इसके बावजूद वह 1.79 लाख वोटों चुनाव जीते। पंजाब के 13 लोकसभा क्षेत्रों में जीत का यह सबसे बड़ा अंतर था।
- AAP तीसरे नंबर पर रही, अमृतपाल को यहां से सबसे ज्यादा वोट मिले: लोकसभा चुनाव के वक्त भी पंजाब में AAP की सरकार थी। आम आदमी पार्टी ने अपने मंत्री लालजीत भुल्लर को लोकसभा का उम्मीदवार बनाया था। जब चुनाव के रिजल्ट आए तो तरनतारन विधानसभा क्षेत्र से AAP उम्मीदवार भुल्लर तीसरे नंबर पर रहे। इस विधानसभा क्षेत्र से अमृतपाल सिंह को 40.79% यानी 44,703 वोट मिले। दूसरे नंबर पर कांग्रेस को उनसे आधी से भी कम यानी 20,193 और AAP को 18,298 वोट ही मिले थे।

अकाली दल की चिंता बढ़ाएगी अमृतपाल की पार्टी अमृतपाल की पार्टी की विधानसभा उपचुनाव में एंट्री अकाली दल के लिए सबसे ज्यादा चिंता बढ़ाएगी। इसकी वजह ये है कि पिछले 2 चुनाव में अकाली दल की बुरी तरह से हार हुई है। 2022 के चुनाव में तो अकाली दल 3 सीटों पर सिमट गया। इनमें मजीठा से पूर्व मंत्री बिक्रम मजीठिया की पत्नी गनीव कौर, लुधियाना के दाखा से मनप्रीत अयाली और बंगा से डॉ. सुखविंदर सुक्खी ने चुनाव जीता। इनमें से डॉ. सुक्खी AAP में शामिल हो चुके हैं। मनप्रीत अयाली भी पार्टी से नाराज हैं।
अकाली दल की इस कमजोरी के बीच अमृतपाल की पार्टी का उपचुनाव लड़ना सबसे अहम इसलिए है कि अकाली दल ने जिस पंथक पॉलिटिक्स की वजह से पंजाब में अपनी जगह बनाई, अमृतपाल की पार्टी का एजेंडा भी वही है। दोनों ही पार्टियां सिखों के हितों को लेकर काम करने का दावा कर रही हैं। चूंकि पंजाब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और गोलीकांड को लेकर लोगों की नाराजगी अभी तक अकाली दल से दूर नहीं हुई है। ऐसी सूरत में अगर लोग सिख पंथ की पॉलिटिक्स का विकल्प ढूंढेंगे तो अमृतपाल की पार्टी को फायदा हो सकता है। अगर पंजाब में AAP सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी हुई ताे भी उसका फायदा अमृतपाल को मिल सकता है।

सभी पार्टियों के लिए सेमीफाइनल जैसा यह उपचुनाव…
आम आदमी पार्टी (AAP): साल 2022 में प्रदेश की 117 में से 92 सीटें जीतने वाली AAP को सरकार के 5 साल के कामकाज पर फिर से 2027 में चुनाव लड़ना है। हालांकि हाल ही में हुए जालंधर और लुधियाना के उपचुनाव AAP चुनाव जीती लेकिन यहां उनके सामने अमृतपाल की चुनौती नहीं थी। इस सीट पर भी उपचुनाव जीती तो पिछले 2 उपचुनाव में अकाली दल और कांग्रेस को हराने के बाद AAP के सामने अमृतपाल की चुनौती भी बेअसर साबित हो सकती है। हालांकि अगर AAP हार गई तो 2027 में सांसद अमृतपाल की पार्टी बड़ी चुनौती बनकर उभर सकती है।
कांग्रेस: कांग्रेस को सत्ता से हटाकर ही AAP ने सरकार बनाई थी। कांग्रेस में संगठन के भीतर की गुटबाजी पार्टी के लिए घातक साबित हो रही है। इसका खुला नजारा लुधियाना के उपचुनाव में देखने को मिला। जहां प्रदेश प्रधान राजा वड़िंग ने कैंडिडेट भारत भूषण आशु के घर पहुंचे तो वह नहीं मिले। वड़िंग का कहना था कि इस बारे में सूचना दी गई थी। इसके बाद यहां सांसद सुखजिंदर रंधावा ने कहा कि मुझे प्रचार के लिए नहीं बुलाया। इसके अलावा भी नेताओं के बीच अनबन रही, जिस वजह से कांग्रेस यहां AAP से हार गई। अगर तरनतारन में भी कांग्रेस हारी तो फिर उनके लिए 2027 का रास्ता मुश्किल हो सकता है।
अकाली दल: जालंधर और लुधियाना के उपचुनाव वाली सीटों पर सिख वोटरों के अलावा हिंदू वोटरों का भी प्रभाव था। मगर, तरनतारन सीट सिख वोटर बाहुल्य मानी जाती है। अगर अकाली दल यहां चुनाव जीतता है तो उसकी पंथक पॉलिटिक्स में वापसी मानी जाएगी। हालांकि अगर यहां भी हार गई तो फिर उनके लिए 2027 में फिर से आप या कांग्रेस का मुकाबला करना मुश्किल हो सकता है।
अकाली दल- वारिस पंजाब दे: सांसद अमृतपाल की पार्टी के लिए यह बड़ा मौका है। अगर वह चुनाव जीत जाते हैं तो फिर 2027 में पंजाब में पंथक पॉलिटिक्स का नया चेहरा सामने आ सकता है। ऐसी सूरत में एक तरफ अकाली दल को सबसे बड़ा झटका लगेगा तो दूसरी तरफ AAP और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है। हालांकि अगर उनकी पार्टी चुनाव हार जाती है तो फिर 2027 में बड़ी पार्टियों का मुकाबला करना मुश्किल हो जाएगा। इससे यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि 2024 में अमृतपाल गिरफ्तारी के बाद मिली सहानुभूति की वजह से जीत गए। अभी राजनीति में उनके लिए बहुत कुछ करना बाकी है।