Punjab and Haryana High Court reprimanded NMC | पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की एनएमसी को फटकार: पठानकोट के व्हाइट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन का मामला, निरीक्षण में निकली थी कमियां – Chandigarh News


पंजाब के पठानकोट स्थित व्हाइट मेडिकल कॉलेज को लगातार डिफॉल्टर पाए जाने के बावजूद छात्रों को प्रवेश देने पर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने एनएमसी पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि बार-बार चू

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बता दें कि, व्हाइट मेडिकल कॉलेज में 2021 और 2022 में दाखिला लिए गए दो बैचों को हाल ही में हाईकोर्ट के आदेश के बाद अन्य कॉलेजों में स्थानांतरित कर दिया गया था। यह पहली बार नहीं है जब इस कॉलेज के छात्रों को सत्र के बीच में ही स्थानांतरित किया गया हो। इससे पहले भी 2011, 2014 और 2016 में दाखिला लिए गए बैचों के छात्रों को कोर्स पूरा होने से पहले ही अन्य संस्थानों में भेजा जा चुका है।

संकाय और सुविधाओं की भारी कमी

डेढ़ साल के भीतर एनएमसी, विश्वविद्यालय और चिकित्सा शिक्षा निदेशालय द्वारा किए गए पांच निरीक्षणों में पाया गया कि कॉलेज में संकाय और रेजिडेंट डॉक्टरों की कमी 90% तक थी, वहीं अस्पताल में मरीजों की संख्या भी नगण्य पाई गई। इसके बावजूद, एनएमसी ने 2021 में 108 और 2022 में 150 छात्रों को प्रवेश देने की अनुमति दी, जो कि कॉलेज की बुनियादी ढांचे और संकाय में सुधार के झूठे दावों पर आधारित था।

माता-पिता की शिकायतें और एनएमसी की विफलता

कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों के माता-पिता ने लंबे समय से एनएमसी को सुविधाओं और शिक्षण की कमी की शिकायतें भेजी थीं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अनुमान के अनुसार, कॉलेज ने अब तक 30 करोड़ रुपए से अधिक की राशि एकत्र की है, जबकि छात्रों को बुनियादी सुविधाएं तक मुहैया नहीं कराई गईं। माता-पिता ने एनएमसी की आधार-सक्षम बायोमैट्रिक उपस्थिति प्रणाली, डिजिटल निरीक्षण और सीसीटीवी के माध्यम से निगरानी व्यवस्था की आलोचना करते हुए कहा कि यह प्रणाली पूरी तरह से विफल साबित हुई है।

उन्होंने मांग की कि एनएमसी को औचक निरीक्षण कर भौतिक सत्यापन करना चाहिए और निरीक्षण रिपोर्ट को सार्वजनिक करना चाहिए, जैसा कि पूर्ववर्ती मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) करती थी।

कोर्ट की सख्त टिप्पणी

कोर्ट ने कहा कि “समय आ गया है कि एनएमसी आत्मनिरीक्षण करे और गहराई से विचार करे कि कैसे सीमित अनुमतियां और अनंतिम मान्यताएं दी जा रही हैं।” कोर्ट ने कहा कि मेडिकल कॉलेजों को व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की तरह नहीं चलाया जा सकता और विशेषज्ञ निकायों को यह सुनिश्चित करने की बड़ी जिम्मेदारी है।

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