वरिष्ठ चित्रकार पुष्पा पांड़्या द्वारा आचार्य विद्यासागरजी महाराज के जीवन पर आधारित 50 फीट की पेंटिंग “ विद्याधर की जीवन गाथा” प्रमाणसागरजी महाराज के समक्ष प्रदर्शित की गई। पेंटिंग से पेपर कवर खोलते ही ख़चाख़च भरा पंडाल श्रद्धालुओं की तालियों से गूंज
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उन्होंने आचार्यश्री की जीवन गाथा को बतलाना प्रारम्भ किया तो पूरा मुनि संघ प्रमाणसागरजी महाराज, निर्वेग सागरजी महाराज, संधानसागरजी महाराज व सभी छुल्लकजी महाराज भावविभोर होकर सुनने लगे और पूरा जन मानस प्रसन्न हो गया।
अपनी पेंटिंग की जानकारी देतीं पुष्पा पांड्या
पुष्पा पांड़्या ने क़रीब दो साल के शोध कार्य केनवास पर तेलरंगों के जरिए उतारा है। उन्होंने आचार्यश्री के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई महावीरजी व भतीजे अक्षयजी से पूछकर स्कूल व घर आदि के चित्र मंगवाकर अध्ययन किया। पहली बार शांति सागरजी महाराज से कितने लोग मिलने गए थे, किस ट्रेन से वे अजमेर पहुंचे, किनके साथ उनका साइकिल चलाना, गुल्ली डंडा खेलना , नेमसागरजी महाराज की समाधि करवाना, मूंजिबंधन, पूरे परिवार का भोजन, शतरंज में जीतने पर मित्रों द्वारा कंधे पर बिठाना, खेल में लगे पीलू को आने पर मां का हाथ से भोजन करवाना, मित्र मारुति से पैसे लेकर बस से जयपुर जाना, देशभूषण महाराजजी से ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार करना, उनके संघ के साथ श्रवण बेलगोला विहार करना आदि उनकी पहली चित्र पट्टिका में कर्नाटक प्रदेश को शामिल किया है।
दूसरी पट्टिका में राजस्थान प्रवेश के साथ राजस्थानी संस्कृति व लाल पीले ब्राइट रंगों का रंग संयोजन देखने को मिलता है। दो दिन से रेल यात्रा के उपवासी का सेठी जी के यहां पारण कर ज्ञानसागरजी महाराज के दर्शन , विद्याधर नाम बताने पर महाराजजी ने कहा तुम तो विद्याधर हो ज्ञान प्राप्त कर उड़ जाओगे। उनका आजीवन वाहन त्याग करना, कई पंडितों के द्वारा हिंदी प्राकृत व संस्कृत ज्ञान, समाज के विरोध में सेठ भागचंदजी सोनी , गोद भराई, बिंदोरि, केश लोचन, दीक्षा, सोनी जी की हवेली जहां पहली बार आहार हुआ, बाजे से विहार, आचार्य पदारोहण, और ज्ञानसागरजी महाराज की समाधि, इन सभी प्रसंग़ में राजस्थान का पहनावा, धाधरा लुगड़ा, घूंघट, ग़हने, पगड़ी आदि देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।
विद्यासागरजी महाराज को लोगों ने देखा है, बहुत सी बातें पता है और कुछ नई बातें फ़िल्म की तरह सामने देखकर लोग़ गदगद हो रहे थे। इस बीच, कई बार तालियां बजी। एक जगह यह बताने पर कि मां दरवाज़े पर खड़ी है, जीवन भर प्रतीक्षा करती रही, पर वे गए तो दुबारा कभी सदलगा की ओर झांका भी नहीं। यह सुनकर कई महिलाएं रो पड़ी। कई लोगों ने पंडाल में तो कई ने घर पर देखा। उन्होंने आकर बताया कि ये देखकर हमें बहुत देर तक रोना आता रहा। दूसरे दिन विशेष कर लोग इस पेंटिंग को देखने इंदौर ही नहीं बल्कि उज्जैन, देवास, धार, महू से भी आए। वैसे आचार्यश्री की विनयांजलि के दिन 25 फ़रवरी को दोपहर 1 बजे कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा इस पेंटिंग के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन कर लोकार्पण किया गया था। उन्होंने भी आचार्यश्री की पूरी जीवन गाथा को बड़ी श्रद्धा के साथ ध्यानपूर्वक सुना और इतनी बड़ी पेंटिंग बनाने की बहुत सराहना की।