Poet Surendra Sharma jibe on politics baat kahunga khari khari | सुबह का भूला शाम को घर लौटे तो नेता!: एकरसता से बचने के लिए नेता दूसरी पार्टी के साथ लिव-इन में रहकर मन बहला लेता है – Uttar Pradesh News


शास्त्रों के अनुसार जो आत्मा मर नहीं सकती वह चुनाव के समय पर्यटन पर निकलती है। जिस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, वह आत्मा टाइम काटने के लिए इधर-उधर विचरने लगती है। आप ही सोचिए, यदि कभी न मरने वाली आत्मा थोड़ा-बहुत चलेगी-फिरेगी नहीं, तो उसका स्वास्थ्य

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अपच और पेट संबंधी दिक्कतों के साथ-साथ उसे गैस्ट्रिक ट्रबल हो सकती है। वह बीमार हो सकती है और बीमार होकर एकदिन मर सकती है। इसलिए शास्त्रों के वचन को सत्य करने के लिए आत्मा को वॉक करनी पड़ती है ताकि सेहतमंद रहे और अच्छे से जीवनयापन करे। वह वॉक करके एक दल से दूसरे दल पर लदने का प्रयास करती है और दल-दल भटकने के बाद सब जगह घूम-फिर के वापस अपने दल में लौट भी आती है।

मजे की बात यह है कि इससे उसकी ऊब कम होती है और उसकी बोरियत भी दूर हो जाती है। इस तरह की क्रियाओं से आत्मा की हेल्थ भी परफेक्ट रहती है और साथ ही शास्त्रों का नियम भी नहीं टूटता। राव वीरेंद्र सिंह के साथ हरियाणा में और अरविंदर सिंह लवली के साथ दिल्ली में यही हुआ है।

नियम आखिर नियम होता है। पहले के जमाने में नियमों की अनदेखी हो सकती थी, लेकिन आज के जमाने में नियम तोड़ना बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इसलिए आजकल जो होता है, वह नियमानुसार होता है। सभी नियमों के बड़े पाबंद हैं। जैसे आजकल के नियमों के अनुसार बहुविवाह का निषेध है। इसलिए जिस नेता की आत्मा ने जिस पार्टी के साथ एक बार संबंध जोड़ लिया है, वह उस संबंध को सात जन्मों तक निभाता है।

दूसरी ओर यह भी तो सत्य है ना कि आत्मा तो अमर है ना। इस लिहाज से उसका दूसरा जन्म होगा ही नहीं। इसलिए एकरसता से बचने के लिए नेता अपनी आत्मा को लेकर दूसरी पार्टी के साथ लिव-इन में रहकर थोड़ा मन बहला लेता है। विशेष बात यह है कि ऐसा करना पाप की श्रेणी में नहीं आता। क्योंकि ऐसे लिव-इन रिलेशन को किसी ग्रंथ में पाप की संज्ञा नहीं दी गई है।

आपने एक मशहूर कहावत तो जरूर सुनी ही होगी। ‘सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते।’ इसी कहावत का सम्मान करते हुए नेताजी सुबह-सुबह झोला-पट्टी लेकर दूसरे दलों की ओर निकल लेते हैं। दिन भर पीछे मुड़-मुड़कर अपने मूल दल को गाली-वाली देते रहते हैं और सारी पोल-पट्टियां भी खोलते हैं। जी भर कर अपने मन की बात करते हैं और शाम को कहावत का मान रखते हुए वापस लौट आते हैं।

मैं अक्सर सोचा करता था कि सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते तो और क्या कहते हैं? लेकिन अब जाकर मुझे समझ आया है कि सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते, नेता कहते हैं।

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